कार्तिक शुक्ल पक्ष में बैकुंठ चतुर्दशी का हैं विशेष महत्व, जानें पूजन विधि व कथा

18नवम्बर :

वैकुंठ चतुर्दशी, पाषाण चतुर्दशी एवम ब्रहम कूर्च । 

कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का विशेष महत्व है विभिन्न पुराणों में पृथक पृथक रूप से इस दिन के महत्व का वर्णनहै ।

ज्योतिषकिस नाम एवम राशि के लिए विशेष उपयोगी- 

तुला एवं मकर राशि वाले उक्त वर्णित पूजा विधान वाले व्रत का उपयोग करते हैं तोज्योतिष की दृष्टि से आगामी 1 माह तक चतुर्दशी संबंधित संभावित विघ्न बाधा तनाव कष्ट से मुक्त होने के योग संयोग बनेंगे ।

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अथवा जिनका नाम ज, ख,ग र,त अक्षर से प्रारंभ हो, उनके लिए विशेष उपयोगी बैकुंठ चतुर्दशी एवं पाषाण चतुर्दशी के उल्लेखित पूजा विधान या कर्म उपयोगी सिद्ध होंगे।

1- बैकुंठ चतुर्दशी संदर्भ ग्रंथ सनत कुमार संहिता सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए विश्वेश्वरी एवं विश्वेश्वर देव का पूजन तथा व्रत करना चाहिए ।

सामान्य रूप से 11 बार या कम से कम 5 बार

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बोले- 

विश्वेश्वराय नमः ।

विश्वेश्वरी देव्यै नमः ।

अंत मे एक बार, “रूपम देहि, जयम देहि यशो देहि, द्विषो जहि। सर्व वांच्छाम परिकल्पय

सर्व सिद्धम च सर्व सफलताम देहि में नमः।

कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी नरक चतुर्दशी शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी बैकुंठ चतुर्दशी कहलाती है।

यह चतुर्दशी तिथि अरुणोदय व्यापिनी ग्रहण करने के निर्देश हैं ।

रात्रि में भगवान विष्णु की कमल पुष्पों से पूजा करना चाहिए ।इसके पश्चात भगवान शंकर की पूजा की जाती है।

अर्धरात्रि के पश्चात या दूसरे दिन शिवजी का पुनः पूजन करने का विधान है ।

यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें शिव एवं विष्णु दोनों की पूजा करने का विधान है ।

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 कथा : 

 एक बार भगवान विष्णु जी महादेव की पूजा के लिए काशी पधारे ।मणिकर्णिका घाट पर उन्होंने स्नान कर निर्णय किया कि 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ का पूजन करेंगे।

शिवजी के अभिषेक के बाद जब पुष्प अर्पण करने लगे तो एक कमल का पुष्प उन्हें कम दिखा क्योंकि भगवान शिव ने उनकी भक्ति एवं श्रद्धा की परीक्षा के लिए एक कमल पुष्प वहां से कम कर दिया था।

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भगवान श्री हरि विष्णु को 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे उन्होंने ऐसा संकल्प किया था।

एक पुष्प की कमी ज्ञात होने पर श्री हरि विष्णु ने सोचा कि मेरे नेत्र कमलनयन है।

एक कमल के स्थान पर मैं अपनी एक आंख ही विश्वनाथ शिव को अर्पित कर देता हूं ।ऐसा सोचकर वे जैसे ही अपनी कमल जैसी अपनी आँख चढ़ाने के लिए तत्पर हुए।

देवों के देव महादेव प्रकट हुए और विष्णु जी से बोले आप के समान संसार में दूसरा कोई मेरे प्रति श्रद्धा युक्त भक्त नहीं है ।

“आज यह कार्तिक सुदी चतुर्दशी, अब “बैकुंठ चतुर्दशी “के कह लाएगी ।ईस दिन मेरा पूजा जो करेगा उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। “भगवान शिव ने विष्णु जी को कांति मान सुदर्शन चक्र प्रदान किया और कहा कि यह राक्षसों का काल या अंत करने बाला अस्त्र होगा और त्रिलोक में इसके समान कोई दूसरा अस्त्र नहीं होगा।

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2- पाषाण चतुर्दशी:सौंदर्य, समृद्धि प्रद

(Beauty & Wealth godess Gauri Day) 

( संदर्भ ग्रंथ देवी पुराण) 

पाषाण चतुर्दशी के दिन जो के आटे से चौकोर आकार की रोटी (गोल नहीं) बनाकर इस रोटी का भोग नैवेद्य स्वरूप गौरी देवी को अर्पण करना चाहिए एवं इस प्रकार के आकार की एवं जो के आटे की रोटी ही उस दिन खाना चाहिए। इससे सौंदर्य सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है ।

ब्रहम कूर्च कर्म –

 गौ माता आधारित – पाप, ताप, रोग नाशक कर्म।

(संदर्भ ग्रंथ हेमाद्री )

यह कर्म यह किंचित कष्ट साध्य सामान्य व्यक्ति के लिए कठिन है। गोपालको या गौशालाओं पर आश्रितों के लिए सरल है। ब्रहम कूर्च गौशालाओं के माध्यम से अन्यजन भी लाभ उठा सकते हैं ।

इसमें उपवास करना होता है ।

नवग्रह एवं देवताओं इष्टदेव का स्मरण करना चाहिए।

प्रातः तिल एवं जल से पितरों को दक्षिण मुख होकर प्रदान कर तृप्त करना चाहिए।

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मंत्र– पित्रेभ्य नम:।

1- कपिला गाय- गौ मूत्र।

2- श्वेत गाय- का दूध ।

3- कृष्ण रंग गाय का – गोमय।

4- पीली/लाल गाय का दही।

5- सफेद- काली या दो रंग की गाय का घी।

उक्त सभी पदार्थो को एकत्र कर छान ले। कुश/डाभ से स्पर्श जल।

रात्रि 19.41से 01:31तक इसको पीना चाहिए। 

आरोग्य, शक्ति, पौरुष वृद्धि एवम पाप नष्ट होते है।

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