डॉ स्नेहलता पाठक की पुस्तक लोकतंत्र का स्वाद का हुआ विमोचन, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय हुए शामिल

Chhattisgarh News : आज रायपुर छत्तीसगढ़ में डॉ स्नेहलता पाठक की पुस्तक लोकतंत्र का स्वाद का विमोचन हुआ। इस पुस्तक विमोचन पर दिल्ली के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा, कि विरोध की आग व्यंग्य को जन्म देती है। व्यंग्य हमारे समय का आईना है। यह असत्य के छद्म को सामने लाता है। व्यंग्यकार लगातार चुनौतियों का सामना करता है। लेखिका इस पुस्तक में विस्तार से व्यंग्य प्रवाहित करती हैं, केवल टिप्पणियों का सहारा नहीं लेती। समूचा सामाजिक परिवेश इस संग्रह में विद्यमान है। (Chhattisgarh News) 

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समारोह के अध्यक्ष डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा कि व्यंग्य लेखन अध्ययन की मांग करता है लेकिन आज के लेखक बहुत कम पढ़ते हैं। व्यंग्य त्रिभंगी होता है, वह सीधे बात नहीं रखता। व्यंग्य साहित्य में विचलन की मांग करता है। धारदार भाषा व्यंग्य का हथियार है। समीक्षक शीलकांत पाठक ने पुस्तक पर कहा, कि अनेक विषयों को केंद्र में रखकर लेखिका ने सार्थक रचा है। व्यंग्य की तीखी मार है और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग है। इन व्यंग्यों में देश के बिखराव का दंश भी है। नाट्यलेखक अख्तर अली ने कहा कि डॉ पाठक की रचनाओं में ठोस चिंतन है, विचारधारा का समर्थन है। समाज की विसंगतियों को प्रस्तुत कर सुधार के लिए उपाय सुझाती हैं।

वरिष्ठ लेखक और संपादक सुभाष मिश्र ने कहा कि पत्रकारिता में व्यंग्य की बड़ी भूमिका होती है। भारतेंदु का व्यंग्य अंधेर नगरी आज भी सामयिक है। इसी तरह डॉ पाठक की दृष्टि न केवल अपने समय का मूल्यांकन करती है, बल्कि भविष्य का संकेत भी देती है। समाज की चमड़ी इतनी मोटी हो चुकी है वह अब व्यंग्य की मार को सहज ले लेती है। आज का समय गंभीरता का समय नहीं है। व्यंग्य व्यक्ति पर नहीं, प्रवृत्ति पर प्रहार करता है। (Chhattisgarh News) 

लेखक रवि तिवारी ने कहा कि लोकतंत्र का स्वाद राजनैतिक दलों को सत्ता के समय ही अच्छा लगता है। लेखिका ने यह स्थापित किया कि व्यंग्य लेखन पुरुषों की बपौती नहीं है। व्यंग्य लेखक स्वयं तमाम प्रकारों के संघर्षों का अनुभवी होता है, यह अनुभव उसे संवेदना के साथ व्यंग्य दृष्टि देता है। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि इस पुस्तक में लेखिका के व्यंग्यानुभव का अमृत रस है। साहित्य स्मृतियों के कोठार में रखा धन है। यह अपने समय और भविष्य का पथप्रदर्शक भी है। व्यंग्य का असर तात्कालिक नहीं बल्कि कालजयी होता है। रचना हर समय नवीनता का बोध कराती है। इस संग्रह की रचनाएं भी बहुत दूर तक असर करने वाली हैं।

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समारोह के अंत में मुख्य अतिथि डॉ प्रेम जनमेजय का अभिनंदन किया गया। समारोह का संचालन डॉ सुधीर शर्मा ने और आभार प्रदर्शन लेखिका डॉ स्नेहलता पाठक ने किया। समारोह में जस्टिस नीलम सांखला, सुभाष मिश्र, डॉ जे आर सोनी, अर्चना पाठक, रचना मिश्र, युक्ता राजश्री, रवि तिवारी, डॉ आलोक शुक्ला, संजीव ठाकुर, डॉ के के अग्रवाल, राजशेखर चौबे, उर्मिला उर्मि, कोमल राठौर, राजेन्द्र ओझा, डॉ मृणालिका ओझा, डॉ डी के पाठक, नेहा दीवान, आदि उपस्थित थे।

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