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देव दिवाली महोत्सव, कार्तिक पूर्णिमा में दीप दान का हैं विशेष महत्व, जानें स्नान मंत्र व पूजा समय

19 नवम्बर शुक्रवार 2021 :  देव दिवाली महोत्सव काशी। कार्तिक पूर्णिमा- दीप दान,पुनर्जन्म कष्ट मुक्ति दिन। (Day of liberation from the suffering of rebirth) विश्व स्वामी कार्तिकेय एवम कृत्तिकाओं के स्मरण- दर्शन पूजा का पर्व। “संदर्भ साभार- ब्रह्म, मत्स्य पुराण, हेमाद्रि, काशी खंड”। पावन पर्व- संध्या समय मत्स्य अवतार हुआ। गुरु नानक जी की जयंती, मनवादी तिथि, कृत्तिका पर चंद्र ग्रह विशेष योग है।

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ग्रह एवम तिथि स्थिति

दिन शुक्रवार, पूर्णिमा तिथि 14:29 तक, कृतिका नक्षत्र रात्रि 4:30 तक ,वव करण ,चंद्र प्रातः 8:15 के पश्चात वृषभ राशि में प्रवेश, छात्र योग, चंद्र उदय रात्रि 5:12 एवं अस्त 6:54 बजे दिन।

महाकार्तिकी : कृतिका नक्षत्र पूर्णिमा के दिन होने से इस पूर्णिमा को महा कार्तिकी की संज्ञा प्रदान की गई है। कार्तिक पूर्णिमा को बोलचाल की भाषा में “कार्तिकी” अथवा “कतिकी “भी आंचलिक भाषा में प्रयोग किया जाता है। इस दिन तीर्थ स्नान, दान, होम, यज्ञ,  उपासना आदि के अनंत फल विभिन्न पुराणों में बताए गए हैं। पुनर्जन्म के कष्ट से मुक्ति के लिए संध्या समय दीपदान का विशेष महत्व है।

मंत्र दीप दान

कीटा : पतंगा मश्काश्च वृक्षे जले स्थले ये विचरंति जीवा:।
दृष्ट्वा प्रदीपम न ही जन्म भागिनी अस्ते  मुक्त रूपा हि भवंति तत्र।।
ऐसा बोलकर दीपक चतुर्मुखी या चार बत्ती वाला प्रज्वलित कर करना चाहिए। घी का श्रेष्ठ। इसके अभाव मे तिल या महुए का तैल उपयोगी है। कृतिका की पूजा का महत्व है। 6 तपस्विनी कृतिका का नाम लेना चाहिए क्योंकि इन कृतिकाओं ने स्वामी कार्तिकेय की रक्षा मातृ वत की है। कृतिकाओं के नाम है -शिवा, संभूति, प्रीति, संतति, अनुसूया और क्षमा। इनका स्मरण कर, अपनी कामना या अपने कष्टो से मुक्ति की याचना करे। द्वार पूजा- समय-  18:11से 18:51एवम  19:27 से 23:31तक। (भविष्य पुराण)।

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स्नान

गंगा जल या गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है तथा संध्या समय दीपदान करना चाहिए। भविष्य पुराण मे पुष्कर तीर्थ या  जल से स्नान का महत्व सर्वाधिक दर्शित है। मुख्य द्वार पर स्वस्तिक निर्माण कर,दोनों ओर दीप रखे। दीप वर्तिका की दिशा उतर मे हो।कार्तिकेय के लिए, जल, अग्नि, तलवार या चाकू एवम  बाली युक्त अन्न द्वार व पर रखे। इन वस्तु पर सुगंध, रोली, चावल अर्पित करें। (ब्रह्म पुराण)। कार्तिकेय गायत्री मंत्र- ‘ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात’।

श्री कार्तिकेय स्तोत्र

स्कंद उवाच –
योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निन्दनः।
स्कंदः कुमारः सेनानी स्वामी संभवः॥1॥
गंगमयस्तम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिध्वजः।
वायरकारिरुमापुत्रः क्रोधीश षडानः॥2
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः।
सनत्कुमारोक् भोग मोक्षफल परिवारः॥3॥
पूर्वजन्म मार्गकृत्।
सर्वागमप्रणेता चमत्कृत प्रदर्शनः 4॥
अष्टविंशतिनामानि मदीनिति यः पठे।
प्रत्युषं श्रद्ध्य टाइटो वाचस्पति:भवेत् ॥5॥
महामनाति मम नामानुकीर्तनात्।
महाप्रज्ञामवापनोति नात्र कार्य विचार  । 6

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