भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे भक्त, जानिए क्यों निकाली जाती है ये यात्रा
पुरी
कोरोना संक्रमण के कारण इस बार भी भगवान जगन्नाथ की 12 जुलाई से शुरू होने वाली रथ यात्रा में भक्तों को शामिल होने का अवसर नहीं मिल पाएगा। यह उत्सव कोविड-19 संबंधी प्रोटोकॉल के सख्त अनुपालन के बीच केवल पुरी में आयोजित होगा। केवल चयनित कोविड निगेटिव और टीके की दोनों खुराकें ले चुके सेवकों को ही ‘स्नान पूर्णिमा और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने की अनुमति होगी। इस यात्रा से जुड़ी सभी तैयारियों को समय से पूरा कर लिया गया है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हिंदूओं के लिए धार्मिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। भगवान जगन्नाथ विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। हर साल अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथपुरी की रथ यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है।
जानिए रथ यात्रा के पीछे की मान्यताएं
इस रथ यात्रा को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था। इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अंत में गरुण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं।
ऐसे निकलती है यात्रा
इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इन सभी प्रतिमाओं को रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं। यात्रा के तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। आपको बता दें, भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं।
इन पुराणों में है जिक्र
इस रथ यात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है। इसलिए हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
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