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गणेश विसृजन 19 सितम्बर 2021 : पंचक विसृजन में बाधक नहीं, जानें गणेश विसृजन का शुभ मुहूर्त एवं विधि

अनमोल न्यूज 24 

श्री गणेश विसृजन : 19 सितम्बर 2021, दिन- रविवार। मुहूर्त या शुभ बेला विसृजन की : गणेश जी बुद्धि विवेक देव है इसलिए बुध या गुरु की शुद्ध लग्न या होरा उपयुक्त समय होगा। सौभग्य से इस वर्ष शुद्ध लग्न एवं होरा उपलब्ध है। 

पंचक : विसृजन कार्य मे बाधक नही

“पंचक मे पांच कार्य ही मना या वर्जित है। विशेष तथ्य है कि देवशयनी एकादशी से विष्णु भगवान सहित समस्त देवी देवता शयन की अवस्था में होते हैं। इसलिए उनका स्पर्श शास्त्रों के अनुसार निषेध है वर्जित है। देवउठनी एकादशी तक ध्यान रखने की विशेष बात यह है कि ,जितनी भी मूर्तियां देव देवी की होती हैं उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। जुलाई से नवंबर तक प्रत्येक वर्ष देव एवं देवी शयन मुद्रा में होते हैं। इसलिए स्पर्श कर पूजा प्रार्थना वर्जित होने के कारण, पार्थिव स्वरूप में पूजा शिव जी, गणेश जी ,दुर्गा जी लक्ष्मी जी आदि की पार्थिव स्वरूप में की जाती है।

पार्थिव अर्थात मिट्टी बालू रेत आदि से हस्त निर्मित और इनकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। अर्थात इन मूर्तियों में संबंधित देव या देवी का आवाहन कर उन्हें जीवंत नहीं किया जाता है। प्रतीक की पूजा होती है। किसी भी दृष्टि से व्यक्ति परक, पंचक के दोष को देवी देवता में लागू नहीं करना चाहिए। यदि अति विशेष स्थिति मानते हैं तो भी यह पार्थिव प्राण प्रतिष्ठा विहीन गणेश जी शिवजी या दुर्गा देवी जी का करने की परंपरा है। इसलिए इसमें पंचक का विचार हास्यास्पद एवं अविवेकपूर्ण है।

(ध्यातव्य तथ्य- चौघडिया दिन के अशुभ काल का कुप्रभाव समाप्त नहीं कर पाता। काल, कुलिक, कंटक, कालवेला, गुलिक आदि अन्य दोष एवं निकृष्ट योग प्रभावी रहते है। अगर आपकी चन्द्र की दशा अन्तर्दशा चल रही तो अमृत चौघडिया वर्जित आदि)।

ज्योतिष के मुहूर्त चिंतामणि ग्रंथ मे गुरु लग्न शुद्ध समय को लाखों दोष को निराकृत करने वाला लिखा गया है। विवाह आदि के समय लग्न मुहूर्त को श्रेष्ठ मन गया। मुहूर्त-मर्मज्ञ पंडित विजेंद्र तिवारी द्वारा जनहित में प्रस्तुत-bhopal एवं बंगलौर के लिए मुहूर्त शेष नगर को , for Tokyo (-)0:18-12:59=12:41begining and (-)0:18-14:39 =14:21, as per Tokyo watch will be-12:41-14:21, end time, India) Delhi(+) 00:02, Mumbai, Surat (+)00:16, Ahmedabad( +) 00: 21, Amritsar(+)00:08, Channai – (-)00: 08, Raipur- CG (-)00:07 Jabalpur- (-)00:12, Patna – (-)00: 31, Calcutta -(-)00: 44,

World(+/- Hrs:Minute) :
Singapore(+)01:08, Kathmandu (-)00:15,
Tokyo (-) 00.:18, Paris (-)00:19,
London(+) 00:33, Toronto (+)00:21,
Moscow (-) 00:11 Taipei (+)00:09.

सामान्य रवि योग सूर्योदय से रात्रि 15:28 तक।
भद्रा योग- 17:26 से प्रारंभ। भूमि पर होने से कार्य विनाशनि है।
बुध की शुद्ध शुभ कन्या लग्न 06:16 से 08:04 तक।
गुरु की शुद्ध धनु लग्न 12:59से 14:39बजे तक।
जिन स्थानों पर सूर्य अस्त न हुआ हो उन स्थानों पर विसृजन कार्य 18:11 से 19:41 बजे तक गुरु की मीन लग्न मे किया जा सकता है।
(विसर्जन प्रचलित उद्देश्यपरकअशुद्ध)
चतुर्मास मे प्रतिमा स्पर्श वर्जित। देव शयन करते है। उनको स्नान आदि वर्जित। इसलिए july से देवउठनी एकादशी तक पार्थिव पूजा अर्थात अस्थायी (प्राण प्रतिष्ठा युक्त) मिट्टी, रेत, बालू से निर्मित शिवलिंग, दुर्गा गणेश आदि का निर्माण कर सृजन कर उनका ही विसृजन(नवरूप) करने का विधान है।

सृजन अर्थात उत्पन्न ,नया जन्म देने की क्रिया या भाव

विसर्जन हिंदी के अक्षरों से निर्मित शब्द ही नहीं है। अंग्रेजी भाषा में सर्जन शब्द अवश्य है। जिसका अर्थ है शल्यक्रिया करने वाला।
हिंदी एवं संस्कृत में सृजन शब्द है जिसका अर्थ निर्माण अर्थात रचना करना है। सृजन अर्थात उत्पन्न ,नया जन्म देने की क्रिया या भाव ,सृष्टि या उत्पत्ति से संबंधित है। उत्पादन की क्रिया को सृजन कहा गया है। रचना करने या बनाने की क्रिया या उससे संबंधित भाव ही सृजन है। सरल अर्थों में सृजन जन्म देने की क्रिया या उसका विचार है।

सृजना है उत्पन्न नया जन्म देने की क्रिया या भाव से संबंधित। निर्माण या रचना से संबंधित है ,जिसे अंग्रेजी भाषा में क्रिएशन कहा जाता है। एक अशुद्ध एवम स्थानिक, पारंपरिक रूप में अपभ्रंश “विसर्जन ” जिसका अर्थ समझा जाने लगा – छोड़ना, निकालना, परित्याग करना, जल में प्रवाह करना, विलीन करना, किसी देवी देवता की मूर्ति को पूजन के बाद जलाशय में छोड़ना, किसी का अंत, समाप्ति, जल में प्रवाहित करना अथवा उत्सर्जन आत्मक हैं। जबकि यह हिंदी शब्द ही नहीं है मूल शब्द सृजन सृजना ही है।

मूल शब्द के साथ उपसर्ग का प्रयोग होता है। जिसका अभिप्राय है कि “विशेष”। उपसर्ग विशेषता प्रदान करता है। मूल शब्द के पूर्व, उपसर्ग जुड़कर किसी भी शब्द के अर्थ को विशेषता प्रदान करता है। जैसे विख्यात, बिनती, विवाद ,विदेश, विलाप, विशुद्ध, विज्ञान, विशेष, विस्मरण, विराम, विभाग, विनय, विनाश आदि।

सृजन के पूर्व “वि” सृजन की विशेषता परिपक्वता पूर्णता या श्रेष्ठता का परिचायक है। ज्ञातव्य- किसी भी पदार्थ का विनाश या कोई पदार्थ संपूर्ण नष्ट नही होता उसका रूप आकार परिवर्तित होता है। (जैसे दूध, दही, मठा, घी आदि)।

श्री गणेश विसृजन की विधि

विसृजन संध्या पूर्व ही किया जाना ग्रंथ उक्त है। रात्रि मे अनुचित शास्त्र विरुद्ध है।(संदर्भ ग्रंथ- देवी भागवत पुराण) बड़े पात्र में पानी भरने जितनी अधिक नदी एवं सरोवर का जल उसमें मिश्रित कर सके उतना अच्छा है अथवा प्रमुख 7 नदियों का स्मरण करें गंगा यमुना गोदावरी सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी एवं उनको उस जल में आवाहन करें या ऐसा संकल्प विचार करें कि इस जल में गंगा यमुना गोदावरी आदि नदिया जल स्वरूप में उपस्थित हैं इसके पश्चात पार्थिव गणेश जी की प्रतिमा उस जल भरे पात्र में रखें प्रतिमा पर धीरे-धीरे जल छोड़ें एवं प्रतिमा गलने के बाद मिट्टी को शुद्ध सुरक्षित स्थान पर डाल दें अथवा किसी जल सरोवर में छोड़ देने का विधान है छोड़ते समय का मन्त्र :
ओम गच्छ गच्छ सरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर।
यत्र ब्रह्मादयो देवा : तत्र गच्छ हुताशन ।।
यान्तु देबगणा: सर्वे पूजाम आदाय मामकीम।
प्रमादात कुर्वताम् कर्म प्रच्यबेता ध्वरेषुयत।
संमरणादेव त्वदिष्णो: संपूर्ण स्यादिति श्रुति: ।।
यस्य स्मृत्या च नामोत्त्या तपो यज्ञ किया दिशु।
न्युनम संपूर्णताम याति सद्या वंदे तम अच्युतम।।
अस्मद अस्य हितार्थायईष्ट काम समृद्धि अर्थम पुनरआगमनाय च। ।
श्री गं गणपतये नमः।
प्रार्थना
अजं निर्विकल्पं निराकारमेकंनिरानन्दमानन्दमद्वैतपूर्णम्।
परं निर्गुणं निर्विशेषं निरीहंपरब्रह्मरूपं गणेशं भजेम।।
अर्थात-
अजन्मे, निर्विकल्प, निराकार, एक, आनन्दस्वरूप किन्तु आनन्दरहित, अद्वैत, पूर्ण,परम तत्व, निर्गुण, निर्विशेष, इच्छारहित और परब्रह्म रूपी गणेश का स्मरण करता हूँ।
पूजा आरती, पुष्प अर्पण कर साष्टांग दंडवत कर :
जानुभ्यां च तथा पद्भ्यांपाणिभ्यामुरसा धिया।
शिरसा वचसा दृष्ट्याप्रणामोsष्टाङ्ग ईरित:।।
अर्थात – जानु, पैर, हाथ, वक्ष, शिर, वाणी, दृष्टि और बुद्धि(शरीरके इन 08भाग/अंग से) किया गया डंडे या लाठी के समान सीधे प्रणाम क्रिया को साष्टाङ्ग प्रणाम कहा जाता है।

साथ ही आपको एक रोचक जानकारी देना चाहूंगा सामान्य रूप से विसर्जन से तात्पर्य होता है डूबाना, डूबा कर मारना, पानी से पूरी तरह ढक देना या जल मगनकर देना परंतु यह एक उद्देश्यपरक अर्थ है। सही अर्थों में ज्योतिष का एक सिद्धांत है कि अशुभ शब्दों को उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए जैसे कि दीया बुझा ना ना कहकर दीपक बढ़ाना, दुकान बंद करना नहीं कर के कह कर दुकान बढ़ाना या दुकान मंगल करना शब्द प्रयोग होते हैं। उस प्रकार ही विसर्जन शब्द यथार्थपरक ना होकर विसर्जन है अर्थात पुनर्निर्माण शुद्ध निर्माण और श्रेष्ठ निर्माण।

आलेख : पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी

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