Hartalika Teej: हरतालिका तीज कल, भोलेनाथ और मां पार्वती की होती है पूजा

Hartalika Teej: छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हरतालिका तीज का बहुत ही महत्व हैं। इस बार हरतालिका तीज कल यानी 30 अगस्त को है। इस दिन मां पार्वती और भोलेनाथ को 16 प्रकार की पत्तियां अर्पित करने का विशेष महत्व है। इन पत्तियों से सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। हिंदू धर्म में सुहागिन स्त्रियों के लिए हरतालिका तीज का व्रत बहुत मायने रखता है। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन महिलाएं हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रख भोलेनाथ और मां पार्वती की विधिवत पूजा कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।

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हरतालिका तीज पर प्रदोष काल पूजा का मुहूर्त 30 अगस्त 2022 शाम 06.33 से रात 08.51 तक है। हरतालिका तीज व्रत के प्रभाव से महिलाओं को पति की दीर्धायु, परिवार के सुख-शांति और सुयोग्य वर प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन पूजा में 16 प्रकार की इच्छपूर्ती पत्तियां महादेव-मां पार्वती को जरूर चढ़ाना चाहिए। इससे गौरीशंकर जल्दी प्रसन्न होते हैं। (Hartalika Teej)

हरतालिका तीज की पूजा विधि

हरतालिका तीज की पूजा में बेलपत्र, तुलसी, जातीपत्र, सेवंतिका, बांस, देवदार पत्र, चंपा, कनेर, अगस्त्य, भृंगराज, धतूरा, आम पत्ते, अशोक पत्ते, पान पत्ते, केले के पत्ते, शमी के पत्ते भोलेनाथ और पार्वती को विशेषतौर पर चढ़ाना चाहिए। बिल्वपत्र – सौभाग्य, जातीपत्र – संतान सुख, शमी के पत्ते- धन और समृद्धि, पान के पत्ते – परस्पर प्रेम में वृद्धि, केले के पत्ते – सफलता, सेवंतिका -दांपत्य सुख, आम के पत्ते – मंगल कार्य के उपयोग होते हैं। (Hartalika Teej)  

हरतालिका तीज पर रखें निर्जला व्रत 

हरतालिका तीज पर निर्जला व्रत रखें। 16 श्रृंगार कर शिव-पार्वती का पूजन करें। इस दिन खासकर रात्रि जागरण करें और रातभर प्रभू का कीर्तन करें। हरतालिका तीज व्रत का पारण अगले दिन महादेव और मां पार्वती की प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद करें। मान्यता है कि तीज के दिन देवी गौरी अपने मायके (माता पिता के घर) आती है। अगले दिन भगवान गणेश, उनके पुत्र, माता गौरी को पिता के या अपने घर कैलाश पर्वतपर वापस ले जाने आते हैं। (Hartalika Teej)

हरकाली व्रत के बारे में जानकारी

हर काली व्रत कथा का उल्लेख भविष्य पुराण में भी प्राप्त होता है। राजा युधिष्ठिर द्वारा भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न किया जाता है – हे भगवान भगवती हर काली देवी कौन है एवं इनके पूजन से नारियों को क्या फल प्राप्त होता है? श्री कृष्ण भगवान द्वारा बताया गया “महाराज दक्ष प्रजापति की एक कन्या थी । उनका रंग नील कमल के समान नीली आभा के साथ काला था। काली नाम से पद गया था। इनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। भगवान शिव मंडप में विष्णु जी के साथ विराजित थे। उस समय शिवजी ने भगवती काली को कहा “प्रिय गौरी यहां आओ” उनका या व्यंग वचन सुनकर भगवती क्रोधित हो गई। (Hartalika Teej)

शिव जी ने मेरा कृष्ण वर्ण देखकर परिहास किया और मुझे गोरी कहा है। अब मैं अपने शरीर को अग्नि में समाहित कर दूंगी। शिव ने काली को अग्नि में प्रवेश से रोकने का प्रयास किया, परंतु देवी ने अपने शरीर की हरित वर्ण की कांति हरि दूर्वा आदि त्याग कर। अग्नि में समर्पित हो गयी। और आगामी जन्म में हिमालय की पुत्री रूप में गौरी नाम से प्रकट होकर शिवजी की तपस्या कर उन्हें प्राप्त किया। जिस दिन शिव जी ने उन्हें स्वीकार किया था उस दिन से ही उनका नाम हर काली हो गया।

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