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मंगलवार 16 नवम्बर 2021 शांति – निराजन द्वादशी व्रत : इस व्रत का ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को दिया था, पढ़ें यह पौराणिक कथा

मंगलवार 16 नवम्बर 2021 शांति – निराजन द्वादशी व्रत : रोग एवं कष्ट मुक्तद (भविष्य पुराण संदर्भ ग्रंथ से साभार)। किसको और क्यो करना चाहिए : परिवार, नगर, प्रदेश, देश प्रमुख को करना चाहिए। अपने आश्रितों के आरोग्य, सुख, शांति एवम समृद्धि के लिए। मिथुन, कर्क राशि, जिनके नाम घ, छ, क, ह, ड, से प्रारंभ हो ऐसे व्यक्ति, नगर, कंपनी, देश, स्थान आदि को अवश्य संभावित रोग एवम कष्ट से सुरक्षा के लिए यह व्रत करना चाहिए।

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कथा एवं विधि

जगत पालक विष्णु जी को उनकी निद्रा से जगाने के पश्चात जगत पोषक विष्णु जी की पूजा, अन्न दान का विशेष महत्व है। भगवान श्री कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को इस व्रत के विषय में विवरण प्रदान किया गया। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को स्नान उपरांत विष्णु जी का स्मरण एवं उनकी पूजा करें। अग्नि में चावल, शहद, मिश्री, काले तिल, जौ, कमल गट्टा, गूगल, गाय का शुद्ध घी मिलाकर हवन करना चाहिए।

बड़े (जो अवस्था में बड़े हो) विशिष्ट रिश्तेदारों या ब्राह्मणों को 2, 5, 8, 11 की संख्या में उनको भोजन कराये या उनको भोजन या भोजन सामग्री दान करें। श्रेष्ठ सन्यासियों को भोजन कराना भी अति उत्तम माना गया है। इसके पश्चात भोजन करना उचित माना गया है। जिन सनातन धर्म के व्रत धारियों ने जो पदार्थ विगत 4 माह में परित्याग किये, उनका भी दान करना चाहिए। इसके पश्चात उन वस्तुओ को ग्रहण या प्रयोग प्रारंभ करे।

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निराजन द्वादशी व्रत कथा :

प्राचीन काल में राजर्षि अजपाल  एक राजा थे ।त्रेता के महान पंडित लंका धीश रावण का कार्य काल था। एक बार प्रजा द्वारा अपने दुख कष्टों को दूर करने के लिए राजा अजपाल से प्रार्थना की गई। राजर्षि राजा अजय पाल ने गंभीरता पूर्वक विचार कर नीराजन शांति का अनुष्ठान प्रारंभ किया। उद्भट महत्वा कांक्षी  रावण ने देवताओं को भी जीत कर अपनी सेवा में नियुक्त कर लिया था। चंद्रमा को छत्र, इंद्र को सेनापति, वायु को स्वच्छता या धूल, सफाई, वरुण को जल व्यवस्था कार्य, कुबेर को धन रक्षा और यम को शत्रु पर नियंत्रण कार्य दायित्व सौंप रखे थे।

रावण की इच्छा के अनुसार ही मेघ बृष्टि करते, वायु प्रवाह, रावण की सुख शांति के लिए सप्त ऋषि एवं ब्रह्मा भी कामना करते थे। गंधर्व गाना गाते एवं अप्सराएं नृत्य प्रस्तुत करती, गंगा आदि नदियों को जलपान कराने, विश्वकर्मा शिल्प, दूसरे राजा नगर की सेवा में तत्पर रहते।

एक दिन रावण ने प्रशस्ति नाम के प्रतिहार से पूछा “आज मेरी सेवा के लिए कौन-कौन आया है?” – प्रशस्ति प्रतिहार निशाचर ने कहा –
प्रभु, आपकी सेवा मे सभी राजा गण जैसे नल, अर्जुन, ययाति, भीम, राघव, मान्धाता आदि राजा उपस्थित हुए हैं। केवल एक राजर्षि अजपाल आपकी सेवा में उपस्थित नहीं हुए हैं।

रावण ने क्रुद्ध भाव से रोष पूर्वक राक्षस धूम्राक्ष से कहा – “जाओ और अजपाल को मेरी सेवा मे आने के लिए कहो अन्यथा मैं तुम्हें मृत्युदंड दे दूंगा। “रावण का ऐसा आदेश सुनकर धूम्राक्ष पक्षीराज गरुड़ के समान तेज गति से राजर्षि राजकुल अजपाल के पास पहुंचा और जिस प्रकार से उसको रावण ने आदेशित किया था वह पूरी बात सकारण बताई।

राजर्षि अजपाल ने धूम्राक्ष से कहा- तुम लंकेश्वर के पास जाओ और मेरे आने में असमर्थता के विषय में उनको अवगत करा कर अपना दूध संबंधित कार्य दायित्व का पालन करो। धूम्राक्ष  के जाने के पश्चात राजर्षि अजपाल ने “ज्वर” को बुलाकर कहा – तुम लंकेश्वर रावण के पास उसकी सभा में जाओ और वहां सभी को अपने ज्वर की शक्ति प्रभाव से परिचित कराओ।

अजपाल के द्वारा निर्देशित “ज्वर” ने, राक्षस राज रावण सहित समस्त सभासदो को जोर से प्रकंपित कर दिया। सभी शीत ज्वर से कांपने लगे। रावण ने उस परम भयंकर “ज्वर” को आया देख कर कहा – राजर्षि अजपाल ने आपको भेजा है। मुझे कोई आपत्ति नहीं, मुझे आजपाल की सेवा की कोई जरूरत भी नहीं है। उसी बुद्धिमान राजा अजपाल के पास तुम वापस चले जाओ। इस प्रकार लंका मे  सभी रोगों को नष्ट करने वाली शांति स्थापित हुई। राजर्षि अजपाल के “शांति नीराजन” व्रत एवम विष्णु जी पूजा से  राज्य की, प्रजा के कष्ट, रोग दूर हुए।

विधि व शुभ मुहूर्त  

शुभ मुहूर्त 18.03 से 19.01 बजे तक हैं। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को सायन् काल भगवान विष्णु की पूजा,सहित ब्राह्मणों के द्वारा विष्णु का हवन करें। विष्णु जी की प्रसन्नता के लिए से सायन काल के समय पीले रंग की वर्तिका, अरंड तेल युक्त दीपक प्रज्वलित करे, समस्त इष्ट सहित, विष्णु जी की आरती करें।  चंदन, पुष्प  अर्पित करें। विष्णु जी के साथ श्री लक्ष्मी, सूर्य, चंद्र, ब्रह्मा, शंकर, गौरी, यक्ष, गणपति, नवग्रह, माता-पिता, नाग, गाय,घोड़े आदि सभी का निराजन करें। सिंदूर एवं वस्त्र अर्पण करे।

भगवन विष्णु जी के मन्त्र

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

  •  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
  •  ॐ आं संकर्षणाय नम:।
  •  ॐ अं प्रद्युम्नाय नम।
  •  श्री विष्णु भगवते वासुदेवाय।
  •   ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय
  •  ॐ हूं विष्णवे नम:।

दीपक प्रज्वलित करते समय मन्त्र :- ‘शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा। शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।। दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:। दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।। ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं फट् स्वाहा।

विशेष :

  •  अरंडी तैल का दीपक।
  •  चार बत्ती।
  •  2 तिल,  2 महुए तैल का दीपक। (चार बत्ती)
  •  पीतल या तांबे का दीपक हो। इसके अभाव मे मिट्टी का दीपक।
  •  अरंडी (एरंड, वर्धमान) दवाई की दुकान से भी ले सकते है।

आलेख : पंडित वी.के. तिवारी ज्योतिषाचार्य

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