लोकरंजनी के गायक डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर ने कहा- दिल्ली के लालकिला और राजिम महोत्सव मंच में कोई फर्क नहीं

Lokranjani Karykram : 31 जनवरी को दिल्ली के लालकिला में प्रस्तुति देना का अवसर मिला। वहां की मंचीय व्यवस्था और राजिम की खासियत में समानता नजर आई। मुझे कोई फर्क नहीं लग रहा। माईक कलाकारों की जान होती है हमारी आवाज को आम दर्शकों को पहुंचते है। इतने बढ़िया संयोजन ने दिल जीत लिया। उक्त बातें न्यू चंगोराभाठा रायपुर लोक रंजनी के लोकगायक डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर ने मीडिया से कही। उन्होंने बताया कि प्रस्तुति देने के लिए हर कलाकार को कला संस्कृति की समझ होनी चाहिए। लोक रंजनी में छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति, लोकगीत, लोकनृत्य की समृद्धशाली परंपरा को बचाकर रखे हुए है। हमारा प्रयास होता है कि दर्शक अपने परिवार के साथ बैठकर पूरा कार्यक्रम देखे। वर्तमान में सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में लोग कुछ भी परोस रहे है, यह ठीक नहीं है। सन् 2002 में लोकरंजनी अस्तित्व में आया इससे पहले मैं रायपुर की चित्रोत्पला संस्था से जुड़ा रहा। राजा फोकलवा और दशमत कैना पर खूब काम किया, नतीजा देश-विदेश में चर्चा रही।

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डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर ने बताया कि लोकरंजनी के माध्यम से असम में छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करने का अवसर मिला। वहां आदिवासी परंपरा ने विवाह बंधन का मंचन को बहुत सराहना मिली। चंद्राकर ने आगे बताया कि हमारे टीम में 32 कलाकार है। देश के बड़े से छोटे महोत्सव जिनमें चक्रधर समारोह, बिलासा महोत्सव, सिरपुर महोत्सव, राज्योत्सव आदि में निरंतर मौका मिल रहा है।

Lokranjani Karykram : ऐश्वर्या राय ने की थी तारीफ

उन्होंने बताया कि शीघ्र जर्मनी के बर्लिन शहर में कार्यक्रम देने की बात चल रही है। हमने बहुत सारे शार्ट फिल्मों में भी काम किया है। जिनमें प्रमुख रूप से द गोल्ड एंड चिकन स्टोरी जिसे अमेरिका में सम्मानित किया गया। सन् 2018 में युवाओं के भटकाव पर क्लिप जारी हुआ जिसे कांस फिल्म फेस्टीवल में स्थान मिला। अभिनेत्री ऐश्वर्या राय ने इनकी तारिफ की थी। छत्तीसगढ़ी फिल्म चक्कर गुरूजी के, कबीर, परोसी भांटो में मुझे अभिनय करने का अवसर मिला जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। उन्होंने नये कलाकारों को संदेश देते हुए कहा कि कलाकार को कला संस्कृति के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देना चाहिए। वैसे छत्तीसगढ़ सरकार कलाकारों को खोज-खोजकर मौका दे रहीं है।

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छत्तीसगढ़ी परिधान से दमक रहे लोक कलाकार

यहां प्रस्तुत होने वाले प्रत्येक कलाकारों की वेशभूषा छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के अनुरूप लोगों को खासा प्रभावित कर रही है। लोक कलाकार डॉ. पुरूषोत्तम चंद्राकर छत्तीसगढ़ी परिधान में दमक रहे थे। उन्होंने हाथ की कलाई पर कड़ा, गले में सुतिया, सिर पर पागा तथा कौड़ी पहने हुए थे।

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