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Makar Sankranti : मकर संक्रांति की पौराणिक कथा, पढ़ें यह पूरा लेख

संपूर्ण भारत वर्ष में लोकप्रिय मकर संक्रांति पर्व एवं सबद्ध घटनाएं

1- सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश के दिन,असुर अंत एवम युद्ध अंत की घोषणा भगवान विष्णु जी द्वारा -भगवान विष्णु द्वारा अंतिम रूप से असुरों का अंतएवम युद्ध समाप्ति की घोषणा की गयीथी। भगवान विष्णु द्वारा असुरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया गया था।  समाज के अभिशाप असुरों का अंत हुआ था।

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2- गंगा स्नान का विशेष महत्व संक्रांति के समय स्नान का विशेष महत्व ग्रंथो मे वर्णित है।मकर संक्रांति के दिन ही देवी भागीरथी , गंगा जी अपने भक्त भागीरथ का अनुगमन करते हुए कपिल मुनि के आश्रम पधारी। इसके पश्चात् सागर में समाहित हुई थी।

इस दिन गंगा जी पृथ्वी पर अवतरित, पधारी थी ।इसलिए इस  दिन गंगा जी में स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन ही ऋषि भागीरथ ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था। गंगा देवी द्वारा उनका तर्पण स्वीकार किया गया।

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3- काले तिल का महत्व कथा सूर्य देव की दो पत्नी थी। एक संज्ञा एवं दूसरी छाया। एक बार सूर्य देव द्वारा अपनी पत्नी छाया को दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज  के साथ प्रेम में व्यवहार में भेदभाव  या अंतर करते हुए देख लिया था।

इस बात से सूर्य देव आहत हुए। छाया और उनके पुत्र शनि को अपने परिवार से बहिष्कृत  कर दिया था।इस अपमान से क्रोधित शनिदेव और उनकी मातृ छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया था।सूर्यदेव कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गए ।अपने पिता सूर्य को   कुष्ठ रोग से पीड़ित  देखकर उनके पुत्र यमराज को हार्दिक दुख हुआ ।यमराज ने अपने पिता के रोग मुक्ति के लिए तपस्या प्रारंभ की ।

सूर्यदेव कुष्ठ रोग से ग्रस्त हो गए ।अपने पिता सूर्य को   कुष्ठ रोग से पीड़ित  देखकर उनके पुत्र यमराज को हार्दिक दुख हुआ ।यमराज ने अपने पिता के रोग मुक्ति के लिए तपस्या प्रारंभ की ।सूर्य जब अपनी पत्नी छाया के श्राप से  कुष्ठ ग्रस्त हुए तो क्रोध मे अपने पुत्र शनि के घर (जिस घर का नाम कुंभ था। 12 राशियों में या एक राशि कही जाती है )को अपने तेज प्रदीप्त प्रभाव से जला दिया।कुंभ घर जल जाने के कारण, शनिदेव और उनकी माता छाया को विभिन्न प्रकार के दुसाध्य अनपेक्षित कष्ट भोगने को विवश होना पड़ा ।

यमराज,अपनी सौतेली मां एवं अपने भाई शनि के कष्ट और दुख देख द्रवित दुखी हुए।यमराज ने  सौतेली मां एवं अपने भाई शनि के कष्ट  पर कृपा करने के लिए ,पिता सूर्य देव से  अनुनय विनय की गयी ।

पुत्र यमराज के बार बार निवेदन करने पर पिता सूर्य देव  पुत्र शनि के घर कुंभ स्थल पर पहुंचे । समस्त स्वाहा हो चुका था, पुत्र शनि एवम पत्नी को अति विपन्न अवस्था मे देख कर दुखी हुए।

शनि द्वारा,पूज्य पिता को देख कर हर्ष हुआ,स्वागत को आतुर हो उठे। शनि के पास अपने पिता के स्वागत के लिए या उनकी कृपा प्राप्ति के लिए कुछ शेष नहीं था ।

केवल काले तिल ही शेष थे ।संकोच के साथ आनंद अश्रु के साथ काले तिल के द्वारा ही अपने पिता का स्वागत किया गया।पुत्र के स्वागत एवं  सुविचार जानकर  सूर्य देव प्रसन्न हुए।पिता सूर्य ने पुत्र को तत्काल,दूसरा एक घर प्रदान किया ।जिसका नाम मकर रखा गया। यह घर सूर्य देव के आशीर्वाद से सभी प्रकार के धन, धान्य एवम वेभव से परिपूर्ण हो गया।शनि को काले तिल के कारण ही पिता की कृपा प्राप्त हुई। इसलिए जब  सूर्य मकर राशि पर ,पुत्र शनि के घर आता है तो काले तिलों केआ महत्व देते है।

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4- अजेय योद्धा भीष्म द्वारा प्राण परित्याग का सुदिन-महाभारत काल में भीष्म पितामह के द्वारा अपने शक्ति सामर्थ्य और वरदान की शक्ति के द्वारा अपने प्राण दक्षिणायन समाप्त होने तक रोक रखे थे।अपने प्राण त्यागने के पूर्व सूर्य देव के मकर राशि में आने की प्रतीक्षा की थी।उत्तरायण में सूर्य प्रवेश,मकर संक्रांति के दिन ही  प्राण परित्याग किए थे।  यह मान्यता है की उत्तरायण काल में प्राण त्याग करने वाली आत्मा स्वर्ग लोक जाती हैं। आत्मा जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाती हैं।

आलेख : पं. वी.के. तिवारी ज्योतिषाचार्य

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