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Padmavati : राजिम अर्थात कमलक्षेत्र की दिव्य पुंज – पद्मावती, पढ़ें यह पूरा लेख

Padmavati (पद्मावती) : छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध धर्म नगरी राजिम जिसे कमलक्षेत्र तथा पद्मावती पुरी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इनके प्रत्येक नामों के पीछे इनका अपना एक विशिष्ट इतिहास है। इतिहास के पृष्ठों से इनके एक नाम पद्मावती पुरी के नामकरण का रहस्य प्रस्तुत है।

प्राचीन काल में गुजरात (गुर्जर देश) राज्य के वासव्य नगर में परम पुण्यात्मा, धर्मात्मा तथा धनों में कुबेर के समान धनवान वैश्य विजयानंद रहते थे। पुत्र पौत्रों से युक्त परिवार के साथ अपने रत्नजड़ित महल में सुखपूर्वक रहते थे। विजयानंद की पत्नी भगवान की भक्ति करने वाली, विभिन्न व्रतों का परायण करने वाली तथा रूप, गुण, शील से युक्त पतिव्रता तथा धार्मिक नारी थी, जिनका नाम पद्मावती था। पद्मावती (Padmavati) अपना समय परिवार सेवा के साथ-साथ भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए आनंद पूर्वक बिताती थी।

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एक दिन एक विद्वान उनके निवास पर भेट करने की इच्छा से आया। विजयानंद और पद्मावती एकांत में चिंतन कर रहे थे। द्वारपाल ने विजयानंद को विद्वान के आगमन की सूचना दी। विजयानंद ने सहर्ष विद्वान को यथोचित आसन देकर सत्संग किया। विजयानंद ने विद्वान से अपने जीवन की सभी उपलब्धियों की प्रतिपूर्ति होने के बावजूद शांति और सुख की कमी बताते हुए सुखमय जीवन तथा मोक्ष का मार्ग पूछा। विद्वान कमलक्षेत्र की विभिन्न कथाओं का वर्णन करते हुए पुण्य प्राप्ति के लिए राजिमलोचन की भूमि कमलक्षेत्र को साक्षात् बैकुंठ के समान बताते हुए इसी क्षेत्र में निवास करने की सलाह दी।

विजयानंद धर्मपत्नी पद्मावती (Padmavati) तथा पुत्र-पौत्रों के साथ चित्रोत्पला नदी के तट पर स्थित कमलक्षेत्र (जिसे ब्रह्म कमल भी कहते हैं) में आकर निवास करने लगे। अपने पुस्तैनी व्यवसाय तेल निकालने का कार्य भी लोकसेवा की भावना से धर्ममय होकर करने लगा। नित्य पूजन-कीर्तन के साथ-साथ दीन-दुखियों की सेवा तथा विद्वानों के लिए भोजन, परिधान एवं आवास आदि की व्यवस्था करते हुए विजयानंद सपरिवार अपने जीवन का पुण्य अर्जित करने लगा।

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कालांतर में विजयानंद व धर्मपरायण माता पद्मावती की सपरिवार निःस्वार्थ लोकसेवा की भावना को देखकर चतुर्भुज भगवान नारायण अत्यंत प्रसन्न हुए तथा दर्शन देकर मनोवांछित वर माँगने का आग्रह किया; किन्तु विजयानंद ने पत्नी और परिवार सहित प्रभु से अनपायनी भक्ति व चरण सेवा की माँग की। भगवान नारायण ने विजयानंद व उनकी पत्नी पद्मावती की निःस्वार्थ भक्ति, लोभरहित निर्मल मन व सेवा से अत्यधिक प्रभावित होकर कहा कि हे विजयानंद तुम धन्य हो, जो तुम्हें धर्म परायण, निर्लोभी, निःस्वार्थी, सेवाभावी और पतिव्रता नारी मिली है। पद्मावती तुम्हारे जीवन में अनमोल रत्न के समान है। तुम और तुम्हारे धर्म पथ की अनन्य सहयोगी तुम्हारी पत्नी अपने पुनीत कर्मों के कारण इतिहास में सदैव स्मरणीय रहोगे। कमलक्षेत्र का मान तुम दोनों की उपस्थिति से कई गुणा बढ़ा है अतः इस क्षेत्र को तुम्हारी पत्नी पद्मावती के नाम से पद्मावती पुरी के नाम से भी जाना जाएगा। भगवान नारायण विजयानंद और पद्मावती की मनो-इच्छा के अनुरूप माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को मोक्ष प्रदान करके अपने साथ अपने रथ पर बैठाकर बैकुंठ धाम ले गए।

इस प्रकार राजिम के वर्तमान नाम से लेकर प्राचीन नाम तक के इतिहास में तेली समाज की उपस्थिति रही है। माता पद्मावती कमलक्षेत्र तथा तेली जाति का यश, गौरव व मान बढ़ाने वाली दिव्य पुंज है। यह हमारे तेली समाज के लिए अत्यंत गौरव की बात है। जय राजिमलोचन भगवान।
कथा स्रोत एवं संदर्भ ग्रंथ – पं चंद्रकांत पाठक काव्यतीर्थ कृत श्रीमदराजीवलोचनमहात्म्य

आलेख :
विरेन्द्र कुमार साहू बोड़राबांधा (पाण्डुका)

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