जानिए क्यों मनाया जाता है दशहरा, महत्व और पूजा विधि भी जानें

Dussehra: नवरात्रि के नौ दिवसीय पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। वहीं दशहरा का पर्व शारदीय नवरात्रि के दसवें दिन मनाया जाता है। इस साल दशहरा 5 अक्टूबर 2022 को मनाया जा रहा है। दशहरे पर भगवान राम की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में विजयादशमी को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। तभी से लोग हर साल लोग आश्विन मास के शुक्‍ल पक्ष की दशमी को दशहरे के रूप में मनाते हैं। इस दिन रावण के पुतले का दहन करके दशहरे का त्‍योहार मनाया जाता है।

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दशहरा पर देश भर में जगह-जगह पर रावण के पुतले जलाए जाएंगे। मान्‍यता है कि 14 साल के वनवास के दौरान लंकापति रावण ने जब माता सीता का अपहरण किया तो भगवान राम ने हनुमानजी को माता सीता की खोज करने के लिए भेजा। हनुमानजी को माता सीता का पता लगाने में सफलता प्राप्‍त हुई और उन्‍होंने रावण को लाख समझाया कि माता सीता को सम्‍मान सहित प्रभु श्रीराम के पास भेज दें। रावण ने हनुमानजी की एक न मानी और अपनी मौत को निमंत्रण दे डाला। (Dussehra)

मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम ने जिस दिन रावण का वध किया उस दिन शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि थी। राम ने 9 दिन तक मां दुर्गा की उपासनी की और फिर 10वें दिन रावण पर विजय प्राप्‍त की। इसलिए इस त्‍योहार को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। रावण के बुरे कर्मों पर श्रीरामजी की अच्‍छाइयों की जीत हुई, इसलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन रावण के साथ उसके पुत्र मेघनाद और उसके भाई कुंभकरण के पुतले भी फूंके जाते हैं। (Dussehra)

पुराणों में विजयादशमी को मनाने के पीछे एक और मान्‍यता यह बताई गई है कि इस दिन मां दुर्गा ने चंडी रूप धारण करके महिषासुर नामक असुर का भी वध किया था। महिषासुर और उसकी सेना द्वारा देवताओं को परेशान किए जाने की वजह से, मां दुर्गा ने लगातार नौ दिनों तक महिषासुर और उसकी सेना से युद्ध किया था और 10वें दिन उन्‍हें महिसाषुर का अंत करने में सफलता प्राप्‍त हुई। इसलिए भी शारदीय नवरात्र के बाद दशहरा मनाने की परंपरा है। इसी दिन मां दुर्गा की मूर्ति का भी विसर्जन किया जाता है। (Dussehra)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दशहरे का पर्व एक अबूझ मुहूर्त है। यानी इसमें मुहूर्त देखें बिना ही सभी प्रकार के शुभ कार्य और खरीदारी की जा सकती है। दशहरा पर्व पर शास्त्र पूजा भी की जाती है। ज्योतिषियों के मुताबिक दशमी तिथि के संयोग में विजय मुहूर्त में भगवान श्री राम, वनस्पति और शस्त्र पूजन होगा। फिर इसके बाद दशहरे की शाम को रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है। ज्योतिष शास्त्र में विजयादशमी को अबुजा मुहूर्त माना जाता है। यानी इस दिन सभी प्रकार के शुभ मुहूर्त करने होते हैं। इस दिन दशहरे पर संपत्ति, सोने के आभूषण, कार, मोटरसाइकिल और सभी प्रकार की खरीदारी की जाती है। (Dussehra)

विजयादशमी पूजा और महत्व

  • दशहरा पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को दोपहर में मनाया जाता है। अपराजिता पूजा दोपहर में की जाती है।
  • विजयादशमी पर अपराजिता का विशेष स्थान है।
  • विजयादशमी के दिन घर के पूर्वी हिस्से की सफाई कर चंदन का लेप लगाकर अष्टदल चक्र बना लें।
  • इसके बाद देवी अपराजिता की पूजा करने का संकल्प लें।
  • अपराजिताय नमः, जयायै नमः और विजयायै नमः मंत्रों से षोडशोपचार की पूजा करें।
  • विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने का विधान है और विजय मुहूर्त के दौरान पूजा करने या शुभ कार्य करने का विधान है।
  • ऐसा माना जाता है कि भगवान राम रावण को मारने के लिए इसी मुहूर्त में युद्ध शुरू करते हैं।
  • फिर विजयादशमी पर आयुध (हथियार) की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन क्षत्रिय, योद्धा और सैनिक अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। वहीं ब्राह्मण इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।
  • इस दिन रामलीला मंचन का समापन होता है। असत्य पर सत्य की जीत का पर्व रावण, कुंभकर्ण और मेधानाथ के पुतले जलाकर मनाया जाता है।

विजयादशमी के दिन असत्य पर सत्य की जीत के उत्सव के रूप में रावण दहन का पुतला मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, भगवान राम ने विजयदशमी पर युद्ध शुरू किया था। फिर इस तिथि पर भगवान राम ने धर्म की रक्षा और सत्य की जीत के लिए शास्त्र पूजा की। तभी से हर साल विजयादशमी का त्योहार मनाया जाता है। फिर दशहरा का त्योहार धर्म की रक्षा, शक्ति के प्रदर्शन और शक्ति के मिलन का प्रतीक है। इसके अलावा दशहरा नकारात्मक शक्तियों पर सकारात्मक शक्तियों की जीत का प्रतीक है। (Dussehra)

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