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Modi Govt 8 Years: 8 साल में मोदी सरकार ने लिए कई बड़े फैसले, जिन्होंने हर भारतीय को प्रभावित किया

Modi Govt 8 Years: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने केंद्र की सत्ता में अपने 8 साल पूरे कर लिए हैं। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी और 2019 में दोबारा प्रधानमंत्री बने। पिछले 8 साल (Modi Govt 8 Years) में दोनों लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड जीत हासिल हुई। अब आने वाले 2024 चुनावों की पार्टी तैयारियां कर रही है। इस दौरान मोदी का कार्यकाल काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। एक ओर भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकोनॉमी के तौर पर उभरा, वहीं देश की आर्थिक हालत पर कोरोना का काला साया भी पड़ा। लेकिन 8 साल (Modi Govt 8 Years) पूरे होने के मौके पर अगर पीछे मुड़कर देखा जाए तो मोदी सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो जिन्हें ऐतिहासिक माना गया, हालांकि इनमें से ज्यादातर को लेकर विवाद जरूर हुआ और कुछ फैसलों से सरकार की किरकिरी भी हुई।

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Modi Govt 8 Years: 8 साल में मोदी सरकार ने लिए कई बड़े फैसले

नोटबंदी का फैसला
मोदी सरकार ने आते ही जो सबसे बड़ा फैसला लिया था, वो नोटबंदी का फैसला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया। प्रधानमंत्री के इस फैसले की चर्चा पूरी दुनिया में हुई। इस फैसले से पूरे देश में हलचल मच गई। जिनके पास पुराने नोट थे, उनके तमाम काम अटक गए। सरकार ने 500 और 2000 के नए नोट जारी किए। इन्हें हासिल करने के लिए पूरा देश लाइन में लग गया। लोगों ने बैंकों के बाहर डेरा डाल दिया और कई किलोमीटर तक लाइने लगनी शुरू हो गईं। इस दौरान कई लोगों की मौत भी हुई। आम लोगों पर इसका सबसे ज्यादा असर देखा गया। इस फैसले से सरकार की खूब आलोचना भी हुई। लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि इससे काले धन पर बड़ा प्रहार किया गया। हालांकि बाद में ये बात सामने आई कि पुरानी करेंसी लगभग पूरी तरह वापस आ गई थी, जिससे विपक्ष ने एक बार फिर मोदी सरकार को घेरा। इस फैसले से देश में डिजिटल पेमेंट का चलन तेजी से शुरू हुआ।

कृषि कानून लागू और फिर वापसी
5 जून 2020 को सरकार ने तीन कृषि कानून जारी किए। महज 2 महीनों के बाद ही देश में इन कानूनों को लेकर उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया था। भारी विरोध के बावजूद इन्हें संसद के दोनों सदनों से पास कराया गया और राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बना दिया गया। लेकिन इसके बाद देशभर के किसान संगठनों ने दिल्ली की सीमाओं को घेर दिया। करीब 1 साल तक चले किसान आंदोलन ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया और आखिरकार मोदी सरकार को अपने ये कानून वापस लेने पड़े। आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली आयोजित हुई, जिसमें जमकर हंगामा हुआ था। आखिरकार 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया था।पहले कृषि कानूनों को लाना और फिर उन्हें निरस्त करने के फैसले को इस सरकार का एक बड़ा और विवादित फैसला माना गया। (Modi Govt 8 Years)

आर्टिकल 370 पर लिया ऐतिहासिक फैसला
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटाने की मांग पिछले कई दशकों से चली आ रही थी। तीन तलाक की तरह ही अनुच्छेद 370 का मसला भी भारत की आजादी के साथ ही शुरू हुआ था। 1948 में जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय से पहले विशेषाधिकार की शर्त रखी थी। बीजेपी ने कई बार इसे अपने घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया और कहा कि वो अगर सत्ता में आते हैं तो जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया जाएगा। इसके बाद जब 2014 में बीजेपी सत्ता में आई तो इसे लेकर काम शुरू हो गया। जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा होने के बाद भी अलग ही रहा। राज्य का अपना अलग संविधान बना। वहां भारत के कुछ ही कानून लागू होते थे। 2019 में चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया। फैसले से ठीक पहले तमाम स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर लिया गया, वहीं कई दिनों तक इंटरनेट जैसी सेवाएं बंद रहीं। ये सरकार का काफी बड़ा और चौंकाने वाला फैसला था, जिसे लेकर खूब हंगामा भी हुआ, लेकिन सरकार अपने फैसले पर टिकी रही।

तीन तलाक कानून पर फैसला
तीन तलाक कानून बनाना मोदी सरकार का मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ा फैसला था। इससे उन तमाम महिलाओं को राहत मिली, जिन्हें तुरंत तीन बार तलाक बोलकर छोड़ दिया जाता था। तीन तलाक को लेकर भारत में बहस काफी पुरानी रही है। इसकी शुरुआत 1985 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से होती है। तीन तलाक की बहस 2016 में फिर गर्म हो गई। कानून बनने के बाद अब ये महिलाएं अपने हक के लिए लड़ सकती हैं और कानूनी तरीके से ही उन्हें तलाक दिया जा सकता है। 1 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने तीन तलाक विधेयक को पारित कराया था। इसे लेकर थोड़ा विरोध जरूर हुआ, लेकिन समाज के बड़े तबके ने इसका समर्थन किया और इसे बड़ा फैसला बताया।

नागरिकता (संशोधन) कानून पारित
पड़ोसी देशों में प्रताड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन अल्पसंख्यकों का मसला काफी लंबे समय से भारत में उठता रहा है। पहले इन देशों में प्रताड़ना का शिकार हुए अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत में नागरिकता लेने के लिए 11 साल बिताने पड़ते थे। इससे पहले उन्हें देश में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिलती थीं। जनवरी 2019 में इससे जुड़ा बिल लोकसभा से नागरिकता (संशोधन) कानून पारित किया। इस कानून पर संसद से लेकर सड़कों तक खूब बवाल हुआ। दरअसल मोदी सरकार ये कानून उन समुदायों के लिए लाई थी, जिन्हें पड़ोसी मुल्कों में सताया जा रहा है। राज्यसभा में पास होने से पहले ही 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया। लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल भी रद्द हो गया। 17वीं लोकसभा के गठन के बाद मोदी सरकार ने नए सिरे से इस बिल को पेश किया। 10 दिसंबर 2019 को ये बिल लोकसभा और 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पास हो गया। 10 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया गया। सरकार का कहना था कि वो ऐसे तमाम नागरिकों को भारतीय नागरिकता देगी। लेकिन इसमें हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी ही शामिल थे। यानी मुस्लिमों के लिए नागरिकता का प्रावधान नहीं था। जिसे लेकर विवाद शुरू हुआ। विपक्षी नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ बताया, वहीं मुस्लिम समुदाय ने सीएए के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। इसी कानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में कई महीने तक लंबा विरोध प्रदर्शन चला। 10 जनवरी 2020 को कानून लागू हुआ, लेकिन अब तक इसके नियमों को अधिसूचित नहीं किया गया।

एक टैक्स सिस्टम जीएसटी हुआ लागू
केंद्र सरकार ने एक जुलाई 2017 को गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को लागू कर दिया। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2000 में पूरे देश में एक टैक्स लागू करने का फैसला लिया था। तमाम चुनौतियों के बावजूद सरकार जीएसटी को लेकर आई और इसे बड़ा कदम बताया गया। इससे पूरे देश में एक टैक्स सिस्टम लागू हुआ। जिसके तहत सीधे तय कर दिया गया कि आधा जीएसटी केंद्र के हिस्से में और आधा राज्यों को जाएगा। कई व्यापारी संगठनों ने सरकार के इस फैसले का विरोध भी किया। मार्च 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने जीएसटी लागू करने के लिए जरूरी संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया, पर राज्यों के विरोध की वजह से वह अटक गया। 

पीओके (POK) में हुआ सर्जिकल स्ट्राइक 
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद उरी में बड़ा आतंकी हमला हुआ। 18 सितंबर 2016 की सुबह आतंकी भारतीय सेना के कैंप में घुसे और सोते हुए जवानों पर हमला बोल दिया। इस आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए और कई घायल हुए। हमले को लेकर पूरे देशभर में गुस्सा था। लेकिन किसी को भी ये नहीं पता था कि अगले 10 दिन में इस हमले का बदला ले लिया जाएगा। उरी का बदला लेने के लिए भारतीय जवानों ने पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में घुसकर आतंकियों को निशाना बनाया। यहां मौजूद तमाम आतंकी लॉन्चपैड को तबाह कर दिया गया। साथ ही करीब 40 से ज्यादा आतंकी इस हमले में मारे गए। इस फैसले ने मोदी सरकार का कद और ऊंचा करने का काम किया और सरकार की जमकर तारीफ हुई। 

राम मंदिर निर्माण
भारत की आजादी से पहले से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का अंत 9 नवंबर 2019 को हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना। उधर मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया गया। राम मंदिर का एक और फायदा केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी रामायण सर्किट योजना को होने का अनुमान है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश में उन सभी स्थानों को जोड़ना है, जहां-जहां भगवान राम गए थे और जो रामायण से जुड़ी पौराणिक कथाओं की वजह से प्रसिद्ध हैं। स्वदेश दर्शन योजना के तहत पर्यटन मंत्रालय की ओर से जो 13 थीम आधारित पर्यटन सर्किट्स विकसित किए जाने हैं, उनमें से रामायण सर्किट एक है। (Modi Govt 8 Years)

Modi Govt 8 Years : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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