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Gurughasidas Jayanti 18th December: सदगुरु घासीदास समता और समानता के थे सूत्रधार : घनाराम साहू

Gurughasidas Jayanti 18th December: सदगुरु घासीदास सामाजिक समरसता के अग्रदूत ही नहीं वरन समता और समानता के सूत्रधार भी थे। रतनपुर राज्य 16 वीं सदी से स्वतंत्रता पर्यंत भीषण आपदा से ग्रसित था। पड़ोसी राज्यों के संरक्षण में गोंड़मारू सेना, रोहेल्ला, पिंडारी इत्यादि के लुटेरे गांव के गांव लूटमारी कर भाग जाते थे। जब सन 1818 में कर्नल एग्न्यू रतनपुर राज्य में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीक्षक बनकर आए तब तक राज्य के 1300 निर्जन हो चुके थे। ऐसे संकट काल में गुरु घासीदास का जन्म हुआ था। बाल्यकाल में उनके पालन-पोषण करने का सौभाग्य करुणा साहू नामक महिला को मिला था और प्रौढ़ अवस्था में दुर्ग के भेंड्रा ग्राम के रजमन साहू का साथ मिला था।

गुरु घासीदास के नव दर्शन में शोषित-पीड़ित जनता को सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक आश्रय मिला था। गुरु घासीदास के प्रचंड आवेग से प्रभावित होकर सभी जातियों के मनीषियों ने सतनाम पंथ को अंगीकार कर “वर्ण और जाति के कठघरे को लांघकर” जाति विहीन समाज रचना के यज्ञ में आहुति दिया था। गुरु घासीदास का पूरा जीवन सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक भेदभाव का संगठित प्रतिकार करने में व्यतीत हुआ था और उसका प्रतिसाद “सतनाम पंथ” के रूप में आलोकित हुआ था। ब्रिटिश काल में उजाड़ हो चुके सैंकड़ों ग्रामों को पुनः आबाद कर उत्पादक बनाने में सतनाम पंथ अनुयायियों का अविस्मरणीय योगदान रहा है।

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प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन सन 1857 की विफलता के बाद भी गुरु घासीदास के संदेशों ने स्वतंत्रता प्रेमियों को जीवंत बनाए रखा था इसीलिए उन्हें अंग्रेजों के अत्याचार को अधिक झेलना पड़ा था। विदेशी राज शक्ति के प्रभाव और दबाव में क्रांतिकारी सतनाम पंथ के अनुयायियों को समाज की मुख्य धारा से विलग अस्पृश्य बना दिए गए फिर भी स्वतंत्रता आंदोलन में संख्या बल के साथ अग्रणी भूमिका निभाते रहे। (Gurughasidas Jayanti 18th December)

मैं सदगुरु घासीदास की जयंती पर्व की पूर्व संध्या पर मानवतावादी विचारधारा के समर्थकों को शुभकामनाएं देता हूं।

घनाराम साहू सह प्राध्यापक
रायपुर (छ.ग.)

Ghanaram Sahu Raipur

सदगुरु घासीदास ने मनुष्यों में समानता, सत्य, अहिंसा और परोपकार का संदेश दिया था। उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को समाज को बौद्धिक रूप संगठित करने समर्पित किया था। उनके बड़े पुत्र अमरदास अध्यात्म मार्ग में चलकर ध्यान, योग और समाधि को जन जन तक पहुंचाया था और छोटे पुत्र बालकदास ने शोषण, अत्याचार और अनाचार के प्रतिकार के लिए जन संगठन का निर्माण किया था। गुरु घासीदास प्रवर्तित सतनाम पंथ सुसंगठित करने अनुयायियों को छड़ीदार, भंडारी, महंत, राजमहंत और दीवान में सामर्थ्य अनुसार विभाजित कर सीढ़ीदार व्यवस्था बनाया था । इस प्रकार गुरु घासीदास की प्रेरणा से पंथ के अनुयायी सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक लड़ाई लड़ सके थे। सतनाम पंथ में पंथी नृत्य संगीत के माध्यम से मनुष्य को ऊर्जावान का माध्यम था लेकिन मनोरंजन का साधन बन गया है। समाज को बलवान बनाने के लिए गुरु घासीदास के बताएं मार्ग अनुसार स्वस्थ विकास के लिए ध्यान, योग, समाधि के साथ-साथ आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए स्थानीय संसाधनों का संतुलित विकास समय की आवश्यकता है।

रामशरण टंडन : अध्यक्ष मिनी माता फाउंडेशन (पंजीकृत) रायपुर।

“मनखे मनखे एक समान” का अमर संदेश देने वाले, सामाजिक एकता और समता के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले, छत्तीसगढ़ की धरती को प्रेम रूपी दीपक से प्रकाशित करने वाले सतनाम पंथ के सर्जक, जन जन को सत्य रूप परमात्मा का संदेश देने वाले, करुणामय सद्गुरु गुरु घासीदास जी की 267 वीं जयंती के पावन अवसर पर प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं!

पं. घनश्याम प्रसाद साहू
सामाजिक चिंतक, रायपुर

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