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Rath Ashtami 9 फरवरी 2022: आज हैं रथ अष्टमी, राजिम के इतिहास में इसका बड़ा महत्व, पढ़ें यह लेख

Rath Ashtami 9 फरवरी 2022: आज माघ शुक्ल अष्टमी तिथि है इसे राजिम के इतिहास में “रथ अष्टमी” (Rath Ashtami) के नाम से जाना जाता है। राजिमलोचन मंदिर की भित्ति में कलचुरी कालीन एक शिलालेख जड़ा हुआ है। इस शिलालेख के अनुसार रतनपुर के कलचुरी राजाओं के सामंत जगपाल देव ने माघ शुक्ल अष्टमी (रथ अष्टमी Rath Ashtami) कलचुरी संवत 896 दिन बुधवार तदनुसार 3 जनवरी ईसवी सन 1145 में जगपालपुर में राम का सुंदर मंदिर का निर्माण कर लोकार्पित किया था।

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कलचुरी सामंत जगपाल देव का उल्लेख शास्त्रों में नहीं है लेकिन इतिहास में जनश्रुतियों के रूप में अवश्य मिलता है। किवदंतियों / जनश्रुतियों में जगपाल देव की अनेक कहानियां हैं, जिसके अनुसार वे दुर्ग के राजा थे और उनकी रानी का नाम झंकावती था। जगपाल देव का महल राजिम के निकट कर्रा या रक्का गांव में था। दुर्ग की राजकुमारी से विवाह उपरांत वह दुर्ग में निवास करने लगा लेकिन प्रतिदिन राजिमलोचन का दर्शन करने राजिम आता था।

इतिहास के अनुसार त्रिपुरी के कलचुरी राजा गांगेय देव के उत्कल विजय अभियान में तुम्माण के कलचुरी राजा कमलराज सहयोगी था। उस अभियान में उसे “साहिल्ल” नामक योद्धा मिला था, जो उसके साथ तुम्माण चला आया था। साहिल्ल के मूल स्थान को लेकर इतिहासकारों में मतैक्य नहीं है; कुछ मानते हैं कि उसका मूल स्थान पूर्वी घाट के भंज राज्य के वड़हर में था लेकिन कुछ बघेलखंड के मिर्जापुर के दक्षिण में होना मानते हैं। साहिल्ल का छोटा भाई वासुदेव के तीन पुत्र भाईल, देसल और स्वामिन हुए। जगपाल देव रानी उदया का पुत्र था जो देसल या स्वामिन की पत्नी थी (स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है)। जगपाल देव के तीन छोटे भाई गजाला, जैत सिंह एवं देवराज थे।

सामंत जगपाल देव ने कलचुरी राजा रत्नदेव द्वितीय (ई सन 1115 से 1137 ) और कलिंग के चोडगंग राजा अनंतवर्मन के बीच तलहारी मंडल में शिवरीनारायण के निकट हुए युद्ध में अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। रणभूमि में अस्त्र-शस्त्रों की मार से उसका शरीर सिंदूर के समान लाल हो गया था तब वह “जगत सिंह” (पृथ्वी का सिंह) के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। जगपाल देव कलचुरी राजा पृथ्वी देव, जाजल्लदेव एवं रत्नदेव का सामंत रहा और अपने भाइयों के साथ पराक्रम से मयूरिकों, सावंतों, तामण्डल, राठ, टेरा, तलहरी, सरहरागढ़, मचका-सिहावा, काकरेय, कांतार, भ्रमरवद, कुसुमभोग, कांदाडोंगर इत्यादि राज्यों को जीतकर कलचुरी राज्य का विस्तार किया था।

राजिमलोचन मंदिर के शिलालेख में संस्कृत के 17 श्लोक हैं। 12 वें श्लोक के अनुसार जगपाल देव ने जगपालपुर बसाया था तथा 14 वें श्लोक के अनुसार उसने वहां राम का सुंदर मंदिर बनवाया था। इस शिलालेख के अनुसार जगपाल देव पंचहंस परिवार के राजमाल गोत्र का था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसने जो नगर बसाया था उसका नाम राजमालपुर था, जो कालांतर में अपभ्रंश होकर राजम और राजिम कहलाया। इतिहासकारों ने जगपालपुर / राजमालपुर को राजिम के नाम से चिन्हित किया है और वर्तमान राम-जानकी मंदिर को जगपाल देव द्वारा निर्मित राम मंदिर माना है। राम मंदिर का शिलालेख राजिमलोचन मंदिर की भित्ति में कब और किसने लगाया ? यह अनुत्तरित है। इस शिलालेख के अनुसार कलचुरी संवत 896 में माघ शुक्ल अष्टमी दिन बुधवार अर्थात ईसवी सन 1145 में 3 जनवरी के दिन मंदिर का लोकार्पण किया गया था।

राजिम में प्रचलित जनश्रुतियों में हैहयवंशी राजा जगतपाल और कलचुरी सामंत जगपाल देव के बीच कहानी गडमड हो गई है और इन्हें राजिम तेलिन भक्तिन माता से जोड़ा गया है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि कांकेर के कंडरा राजा जिसने राजिमलोचन मंदिर के विग्रह को बलपूर्वक ले जाने का प्रयास करने तथा उस विग्रह के राजिम में पुनः लौट आने की घटना को तेलिन भक्तिन माता और जगपाल देव से जोड़ा जाता है लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार कांकेर में धर्मदेव नामक कंडरा राजा 13 वीं सदी में अर्थात जगपाल देव के डेढ़-सौ साल बाद हुआ था।

राजिम से संबंधित पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्यों की अनुपलब्धता के कारण राजिम का रहस्य बहुत गहरा है और बिखरी कड़ियों को जोड़ना शोधार्थियों के लिए चुनौती भरा काम है।

आलेख संकलन : 
प्रोफ़ेसर घनाराम साहू रायपुर (छ.ग.)
मो. 09826113191

प्रोफेसर घनाराम साहू

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