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श्राद्ध (पितर) पक्ष : जानिए कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध, उनका क्या हैं महत्व और विधि, पढ़ें पूरी जानकारी

श्राद्ध (पितर) पक्ष का प्रारंभ :- 20 सितम्बर 2021, दिन – सोमवार। श्राद्ध क्या, यह क्यों मनाया जाता हैं, कब इसे मनाते हैं और यह कितने प्रकार का होता हैं। पितृ पूजन विधि को श्राद्ध कहा जाता हैं।

पितृ ऋण/दोष से मुक्ति या पितर प्रसन्नता का उपाय

श्राद्ध, श्रद्धा से किए गए (श्राद्ध पक्ष में तिथि विशेष पर) शास्त्रीय विधि से पितरों को तृप्त करना होता हैं। पितरों से (पूर्वज मृतकों) से क्या सम्बन्ध हमारा और कितनी पीढ़ी तक?

हमारे शरीर का निर्माण शुक्र (पुरुष ग्रंथि के स्त्राव )से हुआ है। शुक्र के 84 अंश होते हैं। 56 अंश हमारे पूर्वजों के होते हैं और शेष 28 अंश हमारे अपने होते हैं। पूर्वजों से प्राप्त 56 अंश में से 21 अंश माता-पिता से, 15 अंश बाबा/दादा (पिता के पिता ) से और शेष 20 अंश पूर्व के पूर्वजों (प्रपितामह, प्रपितामही) से आते हैं। इस नियम से  सातवीं पीढ़ी तक यह क्रम/संचालन क्रिया/श्रंखला निरंतर/अनवरत चलती है।

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मृतको का, पितरों का श्राद्ध क्यों ?

प्राण उत्सर्जन से, मृत्यु। मृत्यु से भौतिक शरीर समाप्त विखंडित होता है यह लौकिक मृत्यु होती है, आत्मा की मृत्यु नहीं होती है। पृथ्वी तत्व का लोप एवं वायु तत्वधारी इच्छा-शरीर स्वतः क्रियाशील हो जाता है। इच्छा शरीर समाप्त/विखंडित होकर अंततः सूक्ष्म शरीर में क्रियाशील होता है। 

मृत्यु के बाद, इच्छा शरीर (नया शरीर मिलने के पूर्व तक क्रियाशील ) हमारे कार्यकलापों का अवलोकन करता रहता है। उनके लिए किया जाने वाले शस्त्र विहित, निदेशित हमारे कार्य, उनको आनंद, प्रसन्नता देते है। इसलिए उनकी अपेक्षाओं, इच्छाओं की प्रति पूर्ति के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए।

श्राद्ध कर्म क्या और क्यों करे ?

पितृऋण/ पितृदोष से मुक्ति के लिए, हमारा शारीर इन पूर्वजो/पितरों से निर्मित/सृजित इसलिए उनका का ऋण चुकाना हमारा नैतिक एवं वैदिक धर्म का दायित्व है। इस दायित्व का निर्वहन का उपाय या विधि “श्राद्ध” कर्म  है। पितृऋण/पितृदोष के कारण उत्पन्न बाधाओं और समस्याओं को रोकने हेतु श्राद्ध कर्म उल्लेखित हैं।

श्राद्ध पक्ष में कब श्राद्ध तिथि क्या मानी जाना चाहिए ? किस तिथि को मृतक की श्राद्ध है ? 

मृत्यु दिन की तिथि को ही मृतक का श्राद्ध करना चाहिए| श्राद्ध करता को, अपने जन्म दिन पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। चतुर्दशी तिथि को मृत व्यक्ति का श्राद्ध, चतुर्दशी पर नहीं किया जाना चाहिए। (धर्मसिंधु के अनुसार)। पूर्णिमा को मृत व्यक्ति का श्राद्ध पूर्णिमा को नहीं वरन श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। मूकबधिर (गूंगे बहरे पितृ) का श्राद्ध, पूर्णिमा तिथि श्राद्ध। नवमी तिथि को नारी वर्ग। द्वादशी को संयासी।अकाल मृत्यु चतुर्दशी।

सूतक से मुक्ति/सूतक से निवृत्ति कब होती है ?

सपिण्डन कार्य संपन्न होने के बाद ही  सूतक से निवृत्ति, मुक्ति होती है। (संदर्भ गरुड़ पुराण – 13 अध्याय)

पितामह (बाबा/ दादा ) जीवित है पिता की मृत्यु होने पर सपिण्डन कार्य कर सकते हैं।  पिता का पिंड का मेलन प्रपितामह (परदादा) के पिंड से कर सपिन्दन कार्य कर सकते हैं। माता की मृत्यु की स्थिति में उनके पिंड को पितामही (माँ की सास के पिंड में) मिलाकर  सपिन्दन क्रिया पूर्ण की जा सकती है। 

मत्स्य पुराण 03 प्रकार के श्राद्ध हैं :- 1. नित्य (प्रतिदिन),  2. नैमित्तिक (विशेष उद्देश्य के लिए) 3- काम्य (मनोकामना हेतु) श्राद्ध कहते हैं। 

यम स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन हैं :– 1. नित्य, 2. नैमित्तिक, 3. काम्य, 4. वृद्धि व 5. पार्वण। 

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1. नित्य श्राद्ध:- प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहा जाता है। जल इस श्राद्ध को सम्पन्न (विश्वेदेवों को स्थापित किये बिना) करते है। 

2. एकोद्दिष्ट /नैमित्तिक श्राद्ध :श्राद्ध यह किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। (विश्वेदेवों को स्थापित किये बिना)

3. काम्य श्राद्ध :- कामना विशेष की  पूर्ति के लिए किया जाता है।

4. वृद्धि श्राद्ध/ नान्दी श्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध :- प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में -पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि में भी पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। प्रतिदिन दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है।

5. पर्व की तिथि को पार्वण श्राद्ध :- पितृपक्ष, अमावास्या या किसी पर्व की तिथि आदि पर जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहलाता है। ( विश्वेदेव स्थापना कर संपन्न  होता है!)

6. सपिण्डन श्राद्ध :- सपिण्डन श्राद का अर्थ होता है पिण्डों को मिलाना, प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। यही सपिण्डन श्राद्ध कहलता है।

7. गोष्ठी श्राद्ध :- समूह में किया जाता है उसे ही गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं। 

8. शुद्धयर्थ श्राद्ध :- शुद्धि के निमित्त किया जाता है।

9. कर्माग श्राद्ध :- प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध किया जाता है।  

10. यात्रार्थ श्राद्ध :- तीर्थ यात्रा या  विदेश यात्रा  उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है।

11. पुष्ट्यर्थ श्राद्ध :- श्राद्ध शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाता हैं। 

 

आलेख : पंडित वी. के. तिवारी – ज्योतिषाचार्य 

पंडित वी. के. तिवारी

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