आज कमरछठ, क्या है हलषष्ठी में पसहर चांवल का महत्त्व, जाने नियम…

Harchat 2023 : छत्तीसगढ़ में माताएं अपनी संतान की समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में कई व्रत और त्यौहार हैं, पर इस अंचल में दो व्रत ऐसे हैं जिन पर महिलाओं की सबसे ज्यादा आस्था है। एक तीजा और दूसरा कमरछट या हलषष्ठी। हलषष्ठी के व्रत की पूजन विधि और इसके नियम शुरू से सबके कौतुहल का विषय रहे हैं।

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मान्यतानुसार इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। हल को वे अपने अस्त्र के रूप में कँधे पर धारण किये रहते थे, इसलिय पूजा के बाद व्रत पारणा में भी हल से उपजे अन्न का उपयोग नहीं किया जाएगा। न ही हल चले स्थानों पर जाया जाता है। (Harchat 2023)

हलषष्ठी व्रत (Harchat 2023) के नियम

आज के दिन भैंस के अलावा किसी भी अन्य जानवर का दूध व दुग्ध उत्पाद महिलाओं के लिए वर्जित होता है, चाय भी वो भैंस के दूध से बनी ही पी सकती हैं।

महिलाओं का किसी भी ऐसे स्थान पर जाना वर्जित होता है जहां हल से काम किया जाता हो, यानि खेत, फॉर्म हाउस, यहां तक की अगर घर के बगीचे में भी यदि हल का उपयोग होता है तो वहां भी नहीं।

आज के दिन महिलाएं टूथ-ब्रश और पेस्ट की बजाये खम्हार पेड की डंगाल का दातुन करती हैं, खम्हार ग्रामीण अंचल व जंगलों में पाया जाने वाले पेड़ की एक प्रजाति है।

सभी महिलाएं एक जगह एकत्रित होती हैं, वहां पर आंगन में एक गड्ढा खोदा जाता है जिसे “सगरी” कहा जाता है।

महिलाएं अपने-अपने घरों से मिटटी के खिलौने, बैल, शिवलिंग, गौरी- गणेश इत्यादि बनाकर लाती हैं जिन्हें उस सगरी के किनारे पूजा के लिए रखा जाता है।

उस सगरी में बेल पत्र, भैंस का दूध, दही, घी, फूल, कांसी के फूल, श्रींगार का सामान, लाई और महुए का फूल चढ़ाया जाता है, महिलाएं एक साथ बैठकर हलषष्ठी माई के व्रत की कथाएँ सुनती हैं।

उसके बाद शिव जी की आरती व हलषष्ठी देवी की आरती के साथ पूजन समाप्त होता है।

पूजा के बाद माताएं नए कपडे का टुकड़ा सगरी के जल में डुबाकर घर ले जाती हैं और अपने बच्चों के कमर पर से छह बार छुआति हैं, इसे पोता मारना कहते हैं।

पूजा के बाद बचे हुए लाई, महुए और नारियल को महिलाएं प्रसाद के रूप में एक दूसरे को बांटती हैं और अपने- अपने घर लेकर जाती हैं।

घर पहुंचकर, महिलाएं फलाहार की तैयारी करती हैं। फलाहार के लिए पसहर का चावल भगोने में बनाया जाता है, इस दिन कलछी का उपयोग खाना बनाने के लिए नहीं किया जाता, खम्हार की लकड़ी को चम्मच के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।

छह प्रकार की भाजियों को मिर्च और पानी में पकाया जाता है, भैंस के घी का प्रयोग छौंकने के लिए किया जा सकता है पर आम तौर पर नहीं किया जाता।

इस भोजन को पहले छह प्रकार के जानवरों के लिए जैसे कुत्ते, पक्षी, बिल्ली, गाय, भैंस और चींटियों के लिए दही के साथ पत्तों में परोसा जाता है। फिर व्रत करने वाली महिला फलाहार करती है। नियम के अनुसार सूर्यास्त से पहले फलाहार कर लेना चाहिए।

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