आदर्श विद्यालय देवेंद्र नगर ने मनाया स्वर्ण जयंती महोत्सव

Adarsh Vidyalay devendra Nagar Raipur : शिक्षा, संस्कार और साक्षरता के उन्नयन का प्रतीक आदर्श विद्यालय देवेंद्र नगर ने अपनी स्थापना के 50 गौरवशाली वर्षों का जश्न स्वर्ण जयंती महोत्सव के रूप में मनाया। रायपुर केरला समाजम् द्वारा 1974 में स्थापित इस विद्यालय ने अपने स्वर्णिम इतिहास को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित भव्य समारोह में पुनः स्मरण किया।

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महोत्सव का आयोजन दो सत्रों में किया गया। सुबह 10:00 बजे “मिलाप” सत्र में 1986 से 2023 तक के भूतपूर्व छात्र-छात्राओं ने अपने गुरुओं को सम्मानित करते हुए पुराने दिनों को जीवंत किया। छात्रों ने अपनी यादों को साझा किया और शिक्षक-शिष्य परंपरा का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया।

शाम 5:00 बजे से “स्वर्णिमा” महोत्सव का शुभारंभ

पारंपरिक दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना से हुआ। मुख्य अतिथि गिरीश चंदेल (चांसलर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय), विशिष्ट अतिथि डॉ. विजय खंडेलवाल (जिला शिक्षा अधिकारी) और रायपुर केरला समाजम् के अधिकारीगण ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

50 वर्षों की उपलब्धियों का स्मरण

महोत्सव में “आदर्शिका” स्मारिका का विमोचन किया गया, जिसमें विद्यालय की 50 वर्षों की यात्रा को दर्शाया गया। शैक्षणिक और खेलकूद में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्रों को सम्मानित किया गया।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियां और गौरवगाथा

कार्यक्रम में विद्यालय के छात्रों ने “गोल्डन जुबली जर्नी स्किट”, “भारत दर्शन”, “रिदम ऑफ केरला”, “वुमेन एम्पावरमेंट” और “प्राइड ऑफ छत्तीसगढ़” जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कक्षा 12वीं के छात्रों द्वारा प्रस्तुत “भांगड़ा” नृत्य ने समां बांध दिया।

अतिथियों का उद्बोधन और प्रेरणा

मुख्य अतिथि गिरीश चंदेल ने आदर्श विद्यालय (Adarsh Vidyalay devendra Nagar Raipur) के प्रयासों की सराहना करते हुए इसे शिक्षा और संस्कार का उत्कृष्ट केंद्र बताया। विशिष्ट अतिथि डॉ. विजय खंडेलवाल ने कहा कि यह विद्यालय प्राचीन और आधुनिक शिक्षा का अद्भुत संगम है। रायपुर केरला समाजम् के अध्यक्ष श्री विनोद पिल्लई ने संस्थापक सदस्यों और शिक्षकों के योगदान को सराहा।

समापन संदेश

विद्यालय (Adarsh Vidyalay devendra Nagar Raipur) की प्राचार्या सुमन शानबाग ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सभी का आभार व्यक्त किया और विद्यालय की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। यह महोत्सव न केवल अतीत का उत्सव था, बल्कि भविष्य के प्रति नव ऊर्जा और प्रेरणा का प्रतीक भी बना।

विद्यालय का संदेश रहा – “विद्या दीपस्य प्रकाशो न केवल अंधकारं अपितु आत्मस्वरूपं प्रकाशयति।”

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