Akshaya Tritiya 3 May 2022 : अक्षय तृतीया का हिन्दू धर्म में क्या हैं महत्व, पढ़ें यह पौराणिक कथा
Akshaya Tritiya 3 May 2022 : अक्षय तृतीया का व्रत 3 मई 2022, दिन – मंगलवार, वैशाख माह, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथि। व्रत/पर्व – देवी गौरी पूजा, अन्नपूर्णा देवी अवतरण, भगवान परसुराम जयंती। पुराण संदर्भ – नारद, भविष्य, मत्स्य – महत्व, सनातन धर्म की महत्वपूर्ण तिथि – अखा तीज / अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya)।
भगवान परसुराम जयंती :- नर-नारायण, रेणुका पुत्र परशुराम, हयग्रीव अवतार हुए थे। ऋषि जमदग्नि ने चंद्रवंशी राजा की पुत्री रेणुका से विवाह उपरांत पुत्र के लिए यज्ञ सम्पन्न किया, जिससे प्रसन्न इंद्रदेव के वरदान से अक्षय तृतीया को तेजस्वी पुत्र, भगवान विष्णु के छठवे अवतार ने जन्म लिया। ऋषि जमदग्नि और रेणुका ने अपने पुत्र का नाम परशुराम रखा था। द्वापर एवं त्रेता युग तक भगवान परशुराम जीवित रहे। भगवन विष्णु के चरणों से गंगा जी प्रथ्वी पर अवतरित हुई थी। न माधव समो मासों ,न कृतेन युगम समम। न च वेद समम शास्त्रं, न तीर्थ गंगयाम समम (वैशाख के समान कोई माह नहीं, सतयुग के समान कोई कोई युग नहीं, वेद के समान कोई कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई कोई तीर्थ नहीं।
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अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) का महत्व
- अक्षय तृतीया को त्रेतायुग आरंभ हुआ था।
- अक्षय तृतीया को ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लेखन किया था।
- अक्षय तृतीया को ही ,महाभारत में “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी। युधिष्ठिर राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दान करते थे।
- अक्षय तृतीया के दिन –श्रीकृष्ण मित्र, सुदामा पहुंचे। विपन्न, निर्धन सुदामा के पास भेंट देने के लिए कुछ नहीं था, केवल शेष चार चावल ही थे, जो उन्होंने लज्जित, हीन एवं संकोच भाव से, बाल सखा परन्तु नृप श्रेष्ठ कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये।
- भगवन श्री कृष्ण ने बाल सखा सुदामा के दान से अभिभूत हो कर, उनकी निर्धनता दूर कर, झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर सर्वसुविधा युक्त कर दिया।
- अक्षय तृतीया को ही, पांडव पत्नी द्रोपदी का चीर हरण का कुत्सित, निंदनीय प्रयास दुशाशन ने किया था। भगवान् श्री कृष्ण ने अक्षय-साड़ी दान कर, द्रोपदी की प्रतिष्ठा रक्षा की।
जैन धर्म-“आहराचार्य”
भगवान ऋषभदेव प्रथम 24 वे तीर्थंकर, जो भगवान आदिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। जैन भिक्षु ऋषभदेव ने ही जैन धर्म में “आहराचार्य”- जैनी साधुओं तक आहार (भोजन) पहुंचाने की विधि अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) को ही” प्रचलित की थी। जैन भिक्षु, कभी स्वयं के लिए भोजन नहीं मांगते/बनाते, जो भी श्रद्धा से जो मिले वे उसका आहार करते हें।
प्रदेशो में प्रचलित मान्यता
- पंजाब :- अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन शुभ-अशुभ ज्ञान प्रथा प्रचलित है। जाट परिवार का पुरुष ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाता है, मार्ग में जितने अधिक जानवर एवं पक्षी मिलते हैं, उतने ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन मानते है।
- बंगाल :- अक्षय तृतीया को ही, व्यापारी वर्ग बहीखाता/ स्थानीय भाषा में”हल-खता’शुरू करते है गणेश –लक्ष्मी की पूजा कर, उत्तर भारत की दीपावली पर बहीखाता पूजा जैसे।
- उड़ीसा :- अक्षय तृतीया को ही जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा समारोह उत्सव होता है एवं किसान अक्षय तृतीया के दिन खेत में जुताई शुरू करते
- शिवपुरम (दक्षिण भारत) नामक स्थान पर विपन, निर्धन कुबेर ने अपनी पूजा से भगवन शिव को प्रसन्न कर, धन एवं संपत्ति पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा। शिव जी ने कुबेर को लक्ष्मीजी की पूजा का परामर्श दिया।
- उस काल से आज तक अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन लक्ष्मी पूजन प्रचलित है । लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी कुबेर भी बने होते है।
- नए वस्त्र, आभूषण, उद्घाटन, प्रवेश, प्रारंभ आदि कार्य सफल होते है।
- वर्ष की तेजी मंदी का ज्ञान इस दिन ग्रहों की स्थिति से ज्ञात किया जाता है।
- पितरों को जल तिल अर्पण दक्षिण दिशा में मुह कर, index फिंगर एवं thumb के मध्य से, देवताओं को पूर्व में मुह कर, उँगलियों के अग्र भाग से एवं ऋषि वर्ग को उत्तर में मुह कर, उगलियों को उपर हथली की और मोड़ कर, लिटिल फिंगर के निचले भाग से देना चाहिए। उनसे पाप की क्षमा एवं सुखद जीवन की याचना करना चाहिए।
- बद्रीनारायण जी के पट इस तिथि को ही खोलने की परम्परा है।
- वृन्दावन में बिहारी जी चरण कमल दर्शन वर्ष में एक बार इस दिन ही परम्परा प्रचलन है।
- शालिग्राम एवं विष्णु जी को तुलसी अर्पण।
- लक्ष्मी मन्त्र एवं पूजा विशेष महत्व।
भविष्य पुराण :-
यत किंचित दीयते दानं, स्वल्पम वा बहु।
तत सर्वं अक्षयं यस्मात तेनेयम अक्षया स्मृता।।
पुण्य, मंगल, दान, यज्ञ, मन्त्र जप, आदि कार्यों का अक्षय (कभी समाप्त न होने वाला) अनंत गुना परिणाम मिलता है।
सनातन धर्म -ज्योतिष महत्व :-
प्रारब्ध जनित पाप, दोष पूर्ण कृत्यों से, होने वाले संभावित कष्टों, बाधाओं से सुरक्षा प्रदान करने की विद्या ज्योतिष है। सिंह, धनु एवं कुम्भ राशी में जन्म वालो के लिए वर्ष में सर्वश्रेष्ठ अवसर, दिन अक्षय तृतीया है। इन रशि वालो द्वारा किया गया दान, शुभ कर्म, उनकी विघ्न-बाधा से रक्षा आगामी 11 माह की 23 तृतीया तक करेगा। वस्तु, वस्त्र, स्वर्ण क्रय का कोई निदेश किसी ग्रन्थ में नहीं है। सभी व्यक्तियों को अवश्य अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए।
कार्य सिद्धि –सफलता संयोग :-
स्थर नक्षत्र-रोहणी, अर्थात जल एवं मन कारक चन्द्र उच्च शक्तिपूर्ण सक्षम एवं शुक्र एश्वर्या, भोग, आकर्षण सर्जक मीन उच्च राशी, तथा शनि कुम्भ अपने घर में विराजित हैं।
कलश मंत्र :-
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र सम आश्रिता:।
मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
श्वेत कमल के फूल या श्वेत पुष्प धूप, चंदन इत्यादि अर्पण। प्रसाद में जौ या जौ या गेहूं के सत्तू का भोग अर्पण, प्रसाद वितरण एवं भक्षण।
दान :-
ब्राह्मण या देवी मंदिर में या कन्या को वस्त्र, दक्षिणादे।
फल-फूल, वस्त्र, गौ, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, जुटे, चप्पल, चावल, नमक, ककडी, खरबूजा ,चीनी, आदि दान।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। यह तिथि सनातन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर शुभ कार्य करना बेहद लाभदायक होता है क्योंकि इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन दान-पुण्य, जप और तप करते हैं। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर घर में नई चीजें लानी चाहिए इससे घर में अक्षय वृद्धि होती है तथा सुख-समृद्धि बनी रहती है। मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया पर सोना खरीदना भी बेहद लाभदायक होता है। कहा जाता है कि अक्षय तृतीया पर पूजा के साथ कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।
अक्षय तृतीया की व्रत कथा (भविष्य पुराण) :-
धर्मदास नाम का एक वैश्य , बहुत दानी था। किसी पंडित ने उसे बताया, अक्षय तृतीया कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर देवताओं और ब्राह्मणों की पूजा करने से तथा दान करने से अक्षय फल होता है। धर्मदास वैश्य प्रत्येक, (पत्नी धरमदास के दान कर्म से परेशान थी, वह बहुत विरोध करती तो भी) प्रत्येक वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को, सत्तू, चना, गेहूं, दही, गुड़ आदि दान करता रहा। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। फिर व्रत दान के कारण राजयोग प्रबल हुआ। उसका जन्म राज परिवार में हुआ, द्वारका के कुशावती नगर का शासक बना था। कथा प्रचलित हैकि त्रिदेव भी उसके मंगल पूजा कर्म में पधारते थे। यही धर्मदास कालान्तर में आगामी जन्म में सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्द हुआ।
जैनधर्म –अक्षय तृतीया कथा-“पारणा”
संसारिक मोह – माया त्याग कर, भगवान् ऋषभदेव, अपने 101 पुत्रों राज्य बाँट कर प्रस्थित हो गए। छः महीने तक निराहार तपस्या की। वे आहार की प्रतीक्षा करने लगे। लोगों ने ऋषभदेव उनको पहचान कर, उन्हें सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, हाथी, घोड़े, कपड़े, पुत्री तक दान में दी। संत ऋषभदेव को केवल भोजन चाहिए था। निराश, ऋषभदेव फिर साल तपस्या लीं हो गए। तत्कालीन राजा श्रेयांश, जो किसी के मन की बात जानने की विद्या में दक्ष थे ने ऋषभदेव के मन की बात कर, आग्रह पूर्वक गन्ने का रस पिलाकर, अक्षय तृतीया के दिन व्रत तुड़वाया। उस दिन से तीर्थंकर ऋषभदेव के उपवास का महत्व समझ कर, जैन धर्मी अक्षय तृतीया के दिन उपवास रखकर गन्ने के रस से अपना उपवास तोड़ते हैं “पारणा” कहते हैं।
- विष्णु, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा कुबेर गणेश पूजा।
- चावल, श्वेत- पुष्प, वस्त्र, दान।
- इमलीधूप, कपूर सत्तू दान, भोग।
- ग्रीष्म के कुप्रभाव से रक्षा वाली वस्तुएं दान –चावल, नमक आवश्यक, मीठा शरबत, आधुनिक पंखे, शू, छाते, लू से सुरक्षा की औषधि।
- शुभ मुहूर्त दोपहर -12:40 तक।
- मन्त्र :-
ॐ गं गणपतये नम:।
ॐ विष्णवे नम:।
ॐ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नम:।।
अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्यसिद्ध्य भिक्षां देहि च पार्वती ।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय नमः॥
यक्षाय कुबेराय वैश्रवंणाय नम: ,धन धान्य अधिपतये।
धन धन्य समृद्धि में देहि दापय स्वाहा।
ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
परोरजसे साव दोम ,अपो ज्योति रसोमृतं।
आलेख : पंडित विजेंद्र तिवारी (ज्योतिषाचार्य)