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Sheetlashtami 25 March 2022: शीतलाष्टमी, बासी भोजन खाने की परम्परा अष्टमी को क्यों पड़ी, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Sheetlashtami 25 March 2022: शीतला अष्टमी 25 मार्च 2022, चैत्र-कृष्ण-पक्ष, वसंत -ऋतु, वैदिक मास- मधुमास।  दिन-शुक्रवार। तिथि-अष्टमी, नक्षत्र-मूल। चन्द्र गोचर -धनु। व्रत/पर्व :- शीतला अष्टमी, बसोडा / बसूरी अष्टमी, एक दिन पूर्व निर्मित भोजन या बिना अग्नि के प्रयोग के (तला, भुना वर्जित) निर्मित भोजन प्रयोग। (शीतलाष्टमी : चैत्र, वैशाख, जेठ, आषाढ़ – चार माह की अष्टमी) आलेख : पंडित वी.के. तिवारी ज्योतिषाचार्य।  

शीतला पर्व

“बासी- भोजन ” देवी को अर्पण एवं त्वचा रोग का शमन

शीतला शब्द से तात्पर्य है ठंडा अर्थात शीतल उष्णता से परे ताप रहित. शीतला पर्व वर्ष में कब-कब मनाया जाता है?
सामान्यतः यह पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. इसके अन्य नाम भी हैं बसोडा, लसोड़ा, बसौरा अर्थात यह नाम या यह शब्द बासी वस्तुओं या बासी भोजन से संबंधित होने के कारण नाम यह रखे गए हैं. बासी भोजन क्योंकि इस दिन घर में ताजा भोजन बनाना वर्जित है. 1 दिन पूर्व जो भोजन बनाएंगे, दूसरे दिन प्रातः मां शीतला देवी की पूजा कर उस बासी भोजन को ही शीतला देवी को अर्पित करने के बाद ,खाने की परंपरा है. 

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बासी भोजन खाने की परम्परा अष्टमी को क्यों पड़ी?

यह परंपरा इसलिए पड़ी क्योकि तिथि अष्टमी की अधिष्ठात्री देवी हैं. दुर्गा जी का स्वरूप मां शीतला देवी हैं. अष्टमी तिथि का निर्माण सूर्य चंद्रमा दोनों ग्रह की एक विशेष स्थिति में होने पर होता है. अष्टमी तिथि को सूर्य चंद्रमा का जनसामान्य पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है? इस रहस्य से ऋषि मुनि परिचित थे. इसलिए उन्होंने इस दिन ताजा भोजन वर्जित किया. ग्रीष्म ऋतु में संक्रमणक रोग सरलता से होते है. संक्रामक रोग आदि अथवा फोड़े फुंसी त्वचा रोग यथा चेचक, खसरा ग्रीष्म ऋतु में सरलता से होते है.

जो ठंडा भोजन या बासी भोजन करेगा उसको इस प्रकार के रोग ग्रीष्म ऋतु में नहीं होंगे अर्थात ग्रीष्म ऋतु में त्वचा रोग या चेचक संक्रामक रोग से सुरक्षा के लिए इसको प्रचलित किया गया. उत्त्पत्ति-पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शीतला जी की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी से ही हुई थी। ब्रह्मा जी ने माता शीतला को धरती पर पूजे जाने के लिए भेजा था। देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं। तब उनके पास दाल के दाने भी थे। नाम- शीतला माता के है? मां शीतला का वाहन सृष्टि में सबसे ज्यादा धैर्यवान है. गणेश जी की सर्वाधिक प्रिय दूब मां शीतला को बहुत पसंद है। माता शीतला सात बहन हैं- ऋणिका, घृर्णिका, महला, मंगला, शीतला, सेठला और दुर्गा.

अष्टमी तिथि को पर्व मानाने का कारण प्रमुख?

तत्कालीन समय या प्राचीन समय में सबसे पहले संक्रामक यह त्वचा रोग ग्रीष्म काल में सर्वाधिक कोमल त्वचा वाले बच्चों पर होते थे. इसलिए महिलाएं अपने बच्चों की आरोग्यता के लिए (रंगपंचमी से अष्टमी तक मां शीतला की पूजा कर बसुरा बनाकर पूजा जाता है)
इसमें चावल कढ़ी ,चने की दाल ,रबड़ी ,बिना नमक की पूरी या मीठी पूरी एक दिन पूर्व बनाकर रख लिए जाते हैं ,और दूसरे दिन मां शीतला देवी को अर्पित कर पूरे परिवार को ग्रहण करने के लिए प्रदान किए जाते हैं.

स्कन्द पुराण के अनुसार देवी का स्वरूप एवं वाहन

स्कन्द पुराण के अनुसार शीतला देवी का वाहन गदर्भ होता है. शीतला देवी हाथ में कलश झाड़ू और नीम के पत्ते रखती हैं एवं एक हाथ अभय मुद्रा में होता है. यह इन बातों को स्पष्ट करता है कि,खसरा चेचक या त्वचा रोग की अधिष्ठात्री अभय मुद्रा -से सुरक्षा प्रदान करने वाली अधिष्ठात्री शीतला देवी हैं. उनके हाथ में झाड़ू और कलश यह स्वच्छता पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश है.

कलश में पौराणिक आधार पर 33 कोटि देवी देवताओं का निवास होता है. अभय मुद्रा में होने के कारण यह माना जाता है कि जो इनका ध्यान इनकी पूजा या इनको भोजन समर्पित करता है वह त्वचा रोग से सुरक्षित रहता है. इनके साथ ज्वर जोर का दैत्य, देवी घंटाकर्ण, चौसठ योगिनी, त्वचा रोग के देवता सत्यवती देवी विराजमान मानी जाती हैं. इनके कलश में दाल के दानों के रूप में प्रतीकात्मक रुप से विषाणु नाशक स्वास्थ्यवर्धक शुद्ध जल होता है. इनके लिए स्कंद पुराण में शीतला अष्टक नाम का स्रोत स्त्रोत भी है. जिसे भगवान शिव जी ने जन कल्याण हेतु स्वयं निर्मित किया था.

शीतला देवी की पूजा वटवृक्ष के समीप के जाने का विधान है. यदि मंदिर या शीतला देवी की मूर्ति उपलब्ध नहीं हो तो बट वृक्ष के समीप भी इनकी पूजा की जा सकती है. इससे देवी धन-धान्य पूर्ण कर सूर्य चंद्र ग्रह जन्य आपत्ति विपत्ति की रोगदायी स्थिति को दूर रखते हैं. शीतला माता स्वच्छता के अधिष्ठात्री हैं. इसलिए संक्रामक रोग जो ग्रीष्म में ही पनपते हैं उनको दूर करने का विधान बताया गया है.
राजस्थान में महिलाओं का अधिकांश सोमवार या गुरुवार के दिन ही मां शीतला की पूजा करती है. वहां पर मां को गुड़ और रोटी अर्पित करने का विधान भी है. इनकी पूजा करने से पीत ज्वर, फ़ोड़े-फुंसी, नेत्र रोग, चेचक ,खसरा, पीलिया एवं ग्रीष्मकालीन ज्वर दाह व अन्य रोग नहीं होते हैं. इस प्रकार ऋतु के परिवर्तन का भी प्रभाव नहीं होता है.

शीतला माता के साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल है.

  •  पौराणिक आधार पर शीतला अष्टक स्त्रोत पढ़ने का विधान है परंतु यदि हम शीतला अष्टक स्त्रोत नहीं भी पढ़ पाते हैं या उतना समय का अभाव है तो एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र शीतला देवी का है- उत्तर दिशा की और मुँह कर देवी की पूजा की जाना चाहिए अथवा पूर्व भी शुभद है.
  •  चैत्र कृष्ण अष्टमी से आषाढ़ कृष्ण अष्टमी तक, के व्रत शीतला व्रत कहलाते हें. 

शीतला मंदिर स्थापना 

शीतला माता मंदिर की स्थापना कब हुई? 

  • 7400 साल पहले था दिल्ली में यह मंदिर। 1910 रेकॉर्ड के मुताबिक, करीब ढाई-तीन सौ साल पहले शीतला माता ने गुड़गांव गांव के सिंघा जाट नाम के व्यक्ति को सपने में दर्शन देकर गुरुग्राम में मंदिर बनाने को कहा। 
  •  1968 में अमेरिकन रिपोर्टर में एक रिसर्च पेपर का उद्धरण था की जर्मनी में एक शोध संस्थान में शीतला सप्तमी के भोजन का एब्सट्रैक्ट निकाला गया तो स्माल पाक्स का वैक्सीन तैयार हो गया था । तमाम वैज्ञानिक आश्चर्यचकित थे, भारतीय व्रत विशेष दिन भोजन की उत्कृष्ट उपयोगिता के लिए।
  •  बाद में 2002 में चार चीजें प्रमुख सिद्ध हुई। चावल, गुड़, दही, और भीगी हुई चने की दाल।
  •  है शीतली तू जगत माता, शीतली तू जगत पिता, शीतली तू जगत दात्री, शीतला देवी आपको बार बार नमो नमः. 
  •  ॐ श्रीगणेशाय नमः, ॐ श्री शीतलायै नम:.
  •  हाथ में जल लेकर- मन्त्र पढ़कर पृथ्वी पर छोड़ दे- विनियोग
  •  ॐ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः
  •  शीतला ध्यान : ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्, मार्जनी-कलशोपेतां, शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्।
  •  मानस-पूजन : ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः

मंत्र
इस मंत्र को 5, 7, 11 बार बोलें-
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः
ईश्वर उवाच
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्,
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम्
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम् ,
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः,
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः,
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य
च प्रनष्टचक्षुषः,पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ,
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ,
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते त्वामेकां,
शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्.
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता,
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ,
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु.
यः पठेत् तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् दातव्यं ,
च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै
इति श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्र संपूर्णम

सामान्य प्रचलित विधान

  •  मिट्टी के सकोरे में जल 1 दिन पहले जल भरने का प्रयोग है.
  •  ठंडे जल से स्नान करना चाहिए. 
  •  मिट्टी के किसी बर्तन में दही ,चावल, रबड़ी, शकरपारे, खीर, बाजरा आदि रखे जाते हैं.
  •  मेहंदी, काजल, हल्दी, मौली, पीले वस्त्र एवं शीतल जल का कलश रखना चाहिए.
  •  नमक का प्रयोग भोजन में नहीं होना चाहिए.
  •  मिट्टी का एक दीपक, दीपक में मौली की बत्ती बनाकर, दीपक में लगाना चाहिए.
  •  महिलाओं को चाहिए कि वे रोली और हल्दी मिश्रित कर अपने माथे पर टीका लगाएं.
  •  देवी मंदिर या पूजा वटवृक्ष के समीप या घर में भी पूजा की जा सकती है.
  •  देवी की मूर्ति को भी जल से स्नान करा सकते हैं.
  •  महिला उपयोगी वस्तु अर्पित की जाती है.
  •  कलश में बचा हुआ जल अपने ऊपर छिड़कने से शुद्धि प्राप्त होती है.
  •  इस वर्ष की तीन शीतला अष्टमी पूजा और शेष है. वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ शेष बचा हुआ है. आषाढ़ कृष्ण पक्ष की अष्टमी स्नान के उपरांत मन में यह विचार कर निवेदन कर सकते हैं- हे मां शीतला आप ग्रीष्म से उत्पन्न समस्त रोगों को नष्ट करें और इस घर को सुख समृद्धि ऐश्वर्य प्रदान करें.
  •  शीतला रोग जनित उपद्रव शांत कर आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य की अभिवृद्धि करे.
  •  कुलदेवी- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जाट और गुर्जर समेत कई समाजों में उनकी कुलदेवी के रूप में मान्यता है। यहां पर गुड़गांव : श्रीशीतला माता मंदिर से शहर की पहचान है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, जाट और गुर्जर समेत कई समाजों में उनकी कुलदेवी के रूप में मान्यता है।

इस संबंध में परंपरागत पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक कहानी प्रचलित है :- किसी गांव में प्राचीन काल में, ग्रामवासी शीतला माता की पूजा अर्चना कर रहे थे. ग्राम वासियों ने उन्हें गरिष्ठ तप्त, गर्म भोजन प्रसाद स्वरूप अर्पित किया. उस भोजन से मां शीतला का मुँह तप्त हो गया, जल गया और देवी मां कुपित, क्रोधित हो गई. अपनी कुपित दृष्टि से, क्रोध व क्रोधाग्नि से उन्होंने उस गांव में अग्नि का प्रवाह कर दिया. पूरा गांव के घर धु धु कर जल गए. केवल उस गांव में एक वृद्धा का घर सुरक्षित रहा. जब ग्राम वासियों ने जाकर वृद्धा से उसके घर के न जलने का रहस्य, पूछा तो उस वृद्धा ने बताया कि मां शीतला को गरिष्ठ, तप्त, भोजन गर्म भोजन खिलाने के कारण आप लोगों की यह स्थिति बनी. जबकि मैंने तो रात को ही भोग के लिए भोजन बनाकर रखा था वही ठंडा बासी भोजन मां शीतला को अर्पित किया. इसलिए उन्होंने मेरा घर प्रसन्न होकर जलने से सुरक्षित कर दिया. अंततः ग्रामवासियों ने मां शीतला से क्षमा याचना की और रंग पंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन से अर्थात सूर्य -चंद्रमा के सयोंग से निर्मित अष्टमी तिथि को बसोडा एवं शीतला मां की पूजन का संकल्प सदैव के लिए ले लिया.

विशेष संकलित
चैत्र अष्टमी तिथि को गुड़ में पका चावल एक कटोरी , दही एक कटोरी , तथा एक कटोरी चने की भीगी दाल ( तीनों को मिलाकर लगभग 250 ग्राम) इन तीनों को मिला कर खा लिया जाए और 24 घंटे तक आपके पेट में कोई भी गर्म पेय अथवा खाद्यपदार्थ न जाने पाए तो ऐसे विशिष्ट बैक्टीरिया का उत्पादन हो जाता है जो एंटीबाडीज का काम करते हैं और पूरे साल भर आप सभी तरह के हानिकारक वायरस से सुरक्षित हो जाते है।

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