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Organizing a Symposium: नागरिक स्वतंत्रता के प्रबल हिमायती थे डॉ. लोहिया : अभिषेक रंजन

Organizing a Symposium: डॉ. लोहिया विचार समूह द्वारा सर्किट हाउस रायपुर, छत्तीसगढ़ में डॉ. राममनोहर लोहिया की स्मृतियों की सार-संभाल कैसे हो? विषयक एक परिसंवाद का आयोजन और डॉ. लोहिया की अगुवाई में हुए गोवा मुक्ति संग्राम पर केंद्रित एक लघु फ़िल्म- 18 जून 1946 प्रदर्शित की गई। संगोष्ठी के आयोजक डॉ. धीरेन्द्र साव ने अपने वक्तव्य में कहा कि छत्तीसगढ़ से डॉ. लोहिया का गहरा नाता रहा है। प्रदेश के कई बड़े समाजवादी मसलन जीवनलाल साव, पुरुषोत्तम कौशिक समेत कई नेताओं का डॉ. लोहिया से करीबी संबंध रहा। उन्होंने कहा कि डॉ. लोहिया विचार समूह हर महीने इस प्रकार की वैचारिक गोष्ठी आयोजित करेगा। मुख्य अतिथि एवं वक्ता अभिषेक रंजन सिंह ने कहा कि आज़ाद भारत में डॉ. लोहिया से बड़ा कोई मौलिक चिंतक नहीं था। उनके मुताबिक,  छत्तीसगढ़ खासकर महासमुंद समाजवाद की प्रयोगशाला थी। 

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नागरिक अधिकारों के सवाल पर डॉ. लोहिया ने जितना संघर्ष किया, देश में उसकी दूसरी मिसाल नहीं है। बात चाहे भारत की आज़ादी का हो या फिर गोवा मुक्ति संघर्ष की। अभिषेक रंजन ने कहा कि देश में लोहिया साहित्य की मांग बढ़ रही है खासकर युवाओं में, लेकिन डॉ. लोहिया के नाम पर सत्ता की राजनीति करने वाले समाजवाद की वैचारिक थाती सहेज पाने में नाकाम रहे, नतीज़तन समाजवादी पृष्ठभूमि से जुड़े दल आज अप्रासंगिक हो चुके हैं। जबकि डॉ. लोहिया के समय (Organizing a Symposium) मैनकाइंड, जन, संघर्ष और चौखम्भा जैसी पत्रिकाएं समाजवादी कार्यकर्ताओं के लिए वैचारिक ऊर्जा प्रदान करती थी। 

 

अभिषेक रंजन ने बताया कि डॉ. राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन डॉ. लोहिया के दुर्लभ एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों का संकलन कर हिंदी व अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में पुनर्प्रकाशित कर रहा है।  भा.प्र.से. के पूर्व अधिकारी के.बी.एस रे. की भी गरिमामयी उपस्थिति रही, जिन्होंने स्वयं पर जे.एन.यू. में अपनी शिक्षा से लेकर अब तक डॉ. लोहिया के प्रभाव और उनकी बौद्धिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण की चर्चा की। वक्ताओं में प्रो. घनाराम साव ने गोवा आंदोलन में छत्तीसगढ़ के सेनानियों की सहभागिता पर प्रकाश (Organizing a Symposium) डाला।

सविता पाठक ने कहा कि डॉ. लोहिया के करीबी रहे कमल नारायण शर्मा के सुझाव पर ही लोहिया द्वारा दाम बांधो नीति को लेकर आंदोलन चलाया। साथ ही उज्ज्वला योजना, महिलाओं को समानता तथा भारत-पाक महासंघ की परिकल्पना लोहिया की थी। उन्होंने छत्तीसगढ़ में तब के अनेक जीवंत समाजवादी आंदोलनों का उल्लेख करते हुए लोहिया के विचारों को आज भी प्रासंगिक (Organizing a Symposium) कहा और उनके प्रचार प्रसार का बीड़ा युवावर्ग को उठाने का आह्वान किया।

इन्होंने रखें अपने विचार 

वरिष्ठ समाजवादी नेता फ़ज़ल हुसैन पाशा ने महासमुंद क्षेत्र में समाजवादी आंदोलनों का लंबा इतिहास बताते हुए कहा कि वर्तमान युवापीढ़ी उचित मार्गदर्शन के अभाव में दिशाहीन हो रही है। नशे की लत ने युवावर्ग को आत्म केन्द्रित बना दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज दुबे ने युवावर्ग को जोड़ने डॉ. लोहिया के समाजवादी चिंतन को स्कूल कालेज तक पहुंचाने की बात कही। परिसंवाद में ठाकुर रामगुलाम सिंह,  दाउललाल चंद्राकर, नारायण साहू, डॉ. पीयूषी साव और अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे।

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