गर्भावस्था में खून के थक्के जमने की बीमारी थ्रोम्बो एम्बोलिक में लो मॉलिक्युलर वेट हेपरिन कारगर

पं. जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय में गर्भवती एवं प्रसूति के लिए आधारभूत गहन चिकित्सा देखभाल पर आधारित दो दिवसीय कार्यशाला का समापन

रायपुर :  प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग (Department of Obstetrics and Gynecology) तथा एनेस्थीसिया एवं क्रिटिकल केयर विभाग के संयुक्त तत्वावधान में डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के टेलीमेडिसिन हाल में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन चिकित्सा महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. तृप्ति नागरिया ने बताया कि महिलाओं में वेजाइनल डिलीवरी के दौरान शिशु को चोट न लगे इस बात का ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए उन्होंने जच्चा-बच्चा के कृत्रिम मॉडल के जरिये सुरक्षित प्रसव कराने के सही तरीकों के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी।

Department of Obstetrics and Gynecology

वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. आशा जैन ने ”गंभीर रूप से बीमार गर्भवती महिलाओं के गर्भस्थ शिशु के स्थिति की जांच’’ विषय पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि जब भी बच्चादानी में संकुचन होता है तो शिशु की धड़कन बढ़ती है किंतु संकुचन हटते ही यह सामान्य हो जाती है। जब धड़कन बढ़ने की बजाय घटने लगे तो यह गर्भस्थ शिशु की गंभीर स्थिति को दर्शाता है। ऐसे में जल्द ही सिजेरियन डिलीवरी कर शिशु को बचाया जा सकता है। उन्होंने एंटीनेटल सीटीजी यानी गर्भावस्था में शिशु के हृदय गति के सम्बन्ध में कार्डियोटोकोग्राफी के बारे में विस्तार से जानकारी दी। (Department of Obstetrics and Gynecology)

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नई दिल्ली से आये मेहमान प्रवक्ता डॉ. सिमांत कुमार झा एवं डॉ. प्रफुल्ल अग्निहोत्री ने बताया कि कई बार प्रसव के तुरंत बाद प्रसूता की मौत हो जाती है। अचानक होने वाली ऐसी घटना में मृत्यु के कारणों का पता नहीं चल पाता जबकि इसका कारण गर्भावस्था में थ्रोम्बोएम्बोलिक रोग भी हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान थ्रोम्बोएम्बोलिज्म का रिस्क सामान्य महिलाओं की तुलना में ज्यादा होता है। वह इसलिए क्योंकि बच्चादानी शरीर की वेनकेवा (शरीर की बड़ी नस जो शरीर के अन्य क्षेत्रों से हृदय तक रक्त पहुंचाती है) पर दबाव डालती है जिससे खून का प्रवाह कम हो जाता है। इसके साथ ही रक्त के थक्के बनने की प्रक्रिया भी गर्भावस्था में हार्मोन के प्रभाव से असंतुलित हो जाती है। ऐसे में थ्रोम्बोलिज्म की स्थिति निर्मित होने से गर्भवती एवं प्रसूता के मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है। गर्भावस्था की बढ़ती हुई तिमाही के दौरान इसके रिस्क बढ़ने लगते हैं। आजकल मेडिकल साइंस की तरक्की की बदौलत गर्भावस्था की इस समस्या को एडवांस दवाईयां जैसे लो मॉलिक्युलर वेट हेपरिन (एल.एम.डब्ल्यू.एच./कम आणविक भार हिपेरिन) नामक खून को पतला करने की दवाई देकर नियंत्रित किया जा सकता है।

विभागाध्यक्ष स्त्री रोग विभाग डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया कि गर्भवतियों में होने वाले थ्रोम्बोलिज्म के लिए दवाओं के ज्यादा विकल्प नहीं होते इसलिए लो मॉल्यूक्युलर वेट हेपरिन ही दिया जा सकता है। इसको देते समय इस बात का ध्यान भी रखना पड़ता है कि गर्भवती महिला के रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या 75 हजार से ऊपर होनी चाहिए।

मातृ मृत्यु दर एवं हृदयाघात विषय पर चिकित्सा महाविद्यालय के एनेस्थेसिया एवं क्रिटिकल केयर की प्रोफेसर डॉ. जया लालवानी ने एवं एक्यूट किडनी इंजरी पर डॉ. सरिता रामचंदानी ने भी कार्यशाला को संबोधित किया। डॉ. ज्योति जायसवाल के अनुसार गर्भवती एवं प्रसूताओं के गहन चिकित्सा देखभाल की दिशा में यह कार्यशाला सभी मेडिकल स्टूडेंट एवं प्रोफेशनल्स के लिए काफी उपयोगी साबित होगा। कार्यशाला की निदेशक पं. जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय की अधिष्ठाता एवं वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. तृप्ति नागरिया रहीं जबकि समन्वयक डॉ. जया लालवानी एवं डॉ. ज्योति जायसवाल रहीं। (Department of Obstetrics and Gynecology)

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