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Numerology Knowledge Part-01: अंक विद्या का ज्ञान, 0 से 9 अंक का महत्व एवं ग्रहों का सम्बन्ध, पढ़ें यह लेख

Numerology Knowledge Part-01: पहले हम यह जान लेते हैं कि अंको की उत्पत्ति कैसे हुई।  वर्तमान के अंक ज्योतिष में जिस विवेचन या विधा को देख रहे हैं, वह कैसे आया था, मुलत: संख्या के गणित का ही विशेष प्रकार का फलित है। किंतु संख्या शब्द ज्योतिष  के परिप्रेक्ष्य को प्रकट नहीं कर पाता,  इसलिए इसे संख्या ज्योतिष के स्थान पर अंक ज्योतिष या अंक विज्ञान के नाम से जानते हैं। अंक विज्ञान एवं अंक की शक्ति भाग-01 का जनहित में द्वारा ज्योतिष द्वय सुश्री सुमन कायस्थ एवं ज्योतिष शिरोमणि वी. के. तिवारी द्वारा विशेष लेख। (1972 से कुंडली, वास्तु, मुहूर्त, अंक विद्या, रत्न परामर्श, मुहूर्त)

(Numerology Knowledge Part-01)

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अंको के अनुसार ग्रहों का प्रभाव जानने का सही तरीका

अंको से बनने वाले यंत्र निर्विवाद रूप से अंको की शक्ति तथा प्रकृति को सिद्ध करते हैं। ज्योतिष एवं वहां के अन्य प्रसंगों में संख्या के आधार पर समाधान ढूंढने की पद्धति भी अंकों के महत्व को प्रतिपादित करती है। अपने आप में अंको की एक विशिष्ट पद्धति है। अंक या संख्या का शब्द एवं क्रिया से घनिष्ठ संबंध है। 0 निराकार ब्रह्म या अनंत का प्रतीक है। शून्य से सृष्टि की उत्पत्ति हुई है एवं 0 में ही सब कुछ विलीन हो जाता है। यह शून्य सूक्ष्म से सूक्ष्म  एवं बृहद आकार है।

0 की शक्ति सबसे बड़ी है। और इस 0 को हमारे ऋषि-मुनियों ने खोजा, जिसे आज पूरा विश्व मानता है। हम आज कंप्यूटर के युग में पहुंच गए हैं और इस कंप्यूटर का आधार भी हमारा 0 ही है। जिसे कंप्यूटर की भाषा में कहा जाता है ( DOT) 0 से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई और सृष्टि एक कहलाई अर्थात इस सृष्टि को संचालित करने वाली कोई एक शक्ति है जो अदृश्य है एवं सृष्टि का संचालन कर रही है।  उसे हमने  ब्रह्मा की संज्ञा प्रदान की। ब्रह्मा एक है एवं उसे पुकारने के नाम अनेक हैं। मानव ने जब आंखें खोली सूर्य एवं चंद्र दो तारे आकाश में दिखाई दिए। प्रकाशित तारे दो ही हैं, जो नियमित मनुष्य का मार्गदर्शन करने की क्षमता रखते हैं।

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Numerology Knowledge Part-01

अंक 1 (अधिष्ठाता सूर्य)

सूर्य दिन मे उदय होता है। आते उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। और एक संख्या का प्रतिनिधित्व मिला। सूर्य का आत्मा से संबंध है। यह व्यक्ति की आत्मशक्ति का ज्ञान कराता है। सूर्य को पुरुष ग्रह के रूप में स्वीकार किया गया।

अंक 2 (अधिष्ठाता चंद्र)

चंद्रमा रात्रि मे प्रभावी,  दो की संख्या चंद्रमा की हुई। चंद्र का मानसिक सुखों से संबंध है।यह मानव को मन की विचार शक्ति प्रदान करता है। द्वितीय नारी है, चंद्र को  स्त्री ग्रह माना गया और चंद्र की कलाओं की तरह ही नारी की कलाएं हैं।  जिस तरह चंद्र 27 दिन में सभी नक्षत्रों का भोग करता है उसी तरह नारी भी 27 दिन के पश्चात शुद्ध होती है।

अंक 3 (अधिष्ठाता गुरु)

जब मानव ने आकाश, पृथ्वी, एवं जल को देखा तो उसे ब्रह्म शक्ति का ज्ञान हुआ।  और तीन की संख्या प्रचलन में आई, और इसका स्वामित्व गुरु को प्रदान किया गया।  गुरु का जीव से संबंध है,  यह सृष्टि के फैलाव तथा जीव आत्मा के प्रसार  के ज्ञान का बोध कराता है।

अंक 4 (अधिष्ठाता राहु)

मानव को,  चार दिशाएं दिखाई दी,  जिसे चार की संख्या उदित हुई।यह चारों दिशाएं हमारे चारों वेदों का, चारों उपदेशों का, चारों तरफ के आदमियों का अर्थात चारों वर्णों को का प्रतिनिधित्व करती है,  उसे राहु के नाम दिया गया। जो परिवर्तन आक्रामकता का द्योतक है।  मानव पर जब भी विपत्ति आती है, चारों ओर से ही आती है,  भौतिक सुखों से संबंध है,  यह भौतिक जगत में शरीर को जीवनी शक्ति प्रदान करते हैं। मनुष्य की जागृत आदि चार अवस्थाएं  इससे प्राप्त होती है। चारों धाम,  चारों तीर्थ, इसी संख्या में समाहित हैं,  अनमय, मनोमय, विज्ञान में, और आनंदमय  हमारे चार कोष है,  जो मानव शरीर में स्थित है,

अंक 5 (अधिष्ठाता बुध)

मानव ने, जीवन में अपनी मूलभूत आवश्यकता में पांच तत्वों को पहचाना। आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी उनके गुणों को शब्द,  स्पर्श, रूप, रस एवं गंध को जाना। उसने इनके अलग-अलग पांच देव निरूपित किए।  और 5 के अंक की पहचान हुई, देव विद्या, बुद्धि एवं वाणी के दाता हैं। पांच की संख्या का अधिपत्य युवराज को प्रदान किया गया। बुध का संबंध बौद्धिक सुखों से है ।यह बुद्धि एवं विवेक का ज्ञान कराते हैं। पांचवी संख्या हमारी पंच शक्ति, पंच रतन, सम्मोहन आदि, पंच कामदेव, पंच कला, पंच मकार, पंचभूत, पंचप्राण  आदि का सृजन करती है।

अंक 6 (अधिष्ठाता शुक्र)

मानव रस मैं लीन हुआ और 6 रसायनों  मधुर,अमल,लवण, कटु ,कस,  का ज्ञान प्राप्त हुआ। यही हमारे 6 दर्शन शिक्षा,  कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद एवं ज्योतिष अथवा वेदांत संख्या, मीमांसा, वैश्विक,  न्याय एवं तर्क है। वसंत आदि छह ऋतु 6 आमोद आदि गुण 6 कोष, 6 डाकिनी, 6 मार्ग, छे षटकोण यंत्र, एवं छे आधार है,  छे की संख्या शुक्र ग्रह को प्राप्त हुई। विद्या से लेकर शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या से लेकर तंत्र मंत्र एवं 64 कलाओं के जानकार थे। जो शुक्र ग्रह के प्रभाव में दर्शित होता है शुक्र बौद्धिक सुख प्रदान करता है। इसका मानव की भावना एवं संवेदना पर सीधा असर होता है। समग्र ऐश्वर्या वीर्य या ज्ञान और रूप इन्हीं गुणों की समस्ती को कहते हैं।

अंक 7 (अधिष्ठाता केतु)

जब उसने निरंतर अकाश मंडल को निहारा, तो उसे सप्त ऋषि यों के दर्शन हुए,  यही हमारे उच्च श्रेणी के सतलोक।  नदियों को देखा नदियों की धाराओं को देखा।  संगीत के सात सुरों को पहचाना,  और 7 के अंक का अविष्कार हुआ,  यही  अंक 7 का अधिष्ठाता केतु माना गया है इसलिए कुछ ग्रंथों में केतु को मोक्ष का प्रतीक माना गया है। बौद्धिक सुख प्राप्त करता है। यह मनुष्य को कल्पना शक्ति प्रदान करता है, सप्त की संख्या हमारे सप्त लोग, सप्त ऋषि,  सप्त समिधा,  अग्नि, सूर्य के सप्त घोड़े, सात रंग एवं सप्त धातुओं का प्रतिनिधित्व करती है।

अंक 8 (अधिष्ठाता शनि)

इन सब की रक्षा हेतु मानव ने अष्ट भैरव,  अष्ट सिद्धि,  अष्ट पीठ, आदि की उपासना की।   यह 8 शनि प्रभावित अंक कहलाया। जो सबको या तो कष्ट देता है या कष्ट से मुक्ति देता है। शनि का संबंध भौतिक सुखों से है। शनि के पास शरीर को  खराब करने की शक्तियां रहती है। हमारे 8 ही वसु, अष्ट माताएं, अष्ट नाड़ी,  एवं मर्म, अष्टगंध इत्यादि तथा  घृणा,  लज्जा, शौक, कुल, शील, एवं जाति है इन अष्ट पाशो मैं जीव बंधा हुआ है, और जो इन से मुक्त है,वह सदाशिव है।

अंक 9 (अधिष्ठाता मंगल)

मानव ने विभिन्न रूपों में नौ देवियों, नो रतनो, नौ निधियों, नौ रसों, नो प्राण, नो कुमारी को देखा और नव आत्मक सभी वर्ग तथा मंडल इस नो के अंक से संचालित होते हैं, यह 9 का अंक स्वतंत्र अंक कहलाया  और इसका अधिष्ठाता मंगल ग्रह बना, जो ग्रह मंडल का सेनापति है।  मंगल का आत्मा से संबंध है।  यह स्वतंत्र भावना का ज्ञान कराता है।हम किसी भी संख्या को कहीं तक ले जाएं उस का कुल योग 9 से अधिक नहीं हो सकता है।

(Numerology Knowledge Part-01)

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