जीवन मर्यादा के भीतर रचा जाए समकाल का कथा साहित्य: थापा

Pandit Madhavrao Sapre: पंडित माधवराव सप्रे जयंती पर गुरुकुल महिला महाविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ आलोचक सूरज बहादुर थापा ने कहा कि जीवन की मर्यादाओं को तार तार करके कोई विमर्श अथवा अस्मिता का जागरण नहीं किया जा सकता है। क्रांति जमीनी स्तर पर बदलाव के बाद आती है। स्त्री विमर्श कोई फैशन नहीं है।‌ समारोह की अध्यक्षता डॉ परदेशी राम वर्मा ने की। छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, गुरुकुल महिला महाविद्यालय और छत्तीसगढ़ मित्र द्वारा पं माधवराव सप्रे जयंती पर आयोजित समारोह में हिंदी कथा साहित्य का समकाल वीषय पर चर्चा हुई।

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मुख्य अतिथि डॉ सूरज बहादुर थापा का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ संध्या गुप्ता ने किया। अध्यक्ष डॉ परदेशी राम वर्मा का स्वागत डॉ विद्यानंद सिंह, डॉ सुशील त्रिवेदी का स्वागत भातखंडे ललित संगीत शिक्षण समिति की सचिव शोभा खंडेलवाल, डॉ सुरेश शुक्ला आदि ने किया।‌ प्रारंभ में छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान के महासचिव डॉ सुधीर शर्मा ने पं माधवराव सप्रे जयंती की पृष्ठभूमि और छत्तीसगढ़ मित्र के प्रकाशन की ऐतिहासिक महत्ता का जिक्र किया। स्वागत भाषण देते हुए गुरुकुल महिला महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ संध्या गुप्ता ने कहा कि गुरुकुल परिसर की ऐतिहासिक महण है और हमारे समय के साहित्यकार और कलाकार यहां आ चुके हैं। (Pandit Madhavrao Sapre)

मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राध्यापक और आलोचक डॉ सूरज बहादुर थापा ने कहा कि समकाल की एक निश्चित सीमा होती है। समकालीन कहानी में दलित, स्त्री और विविध विमर्श नये संदर्भों के साथ प्रस्तुत हुए हैं।कथा साहित्य ने अधिकारों की लड़ाई के लिए हिंसा के बजाय गांधीवादी संघर्ष को चुना है। शिवमूर्ति की एक कहानी इसका उदाहरण है।जीवन की मर्यादाओं को तार तार करके कोई विमर्श अथवा अस्मिता का जागरण नहीं किया जा सकता है। क्रांति जमीनी स्तर पर बदलाव के बाद आती है। स्त्री विमर्श कोई फैशन नहीं है। (Pandit Madhavrao Sapre)

वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि आज की कहानियां विवाद को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है। भाषा के स्तर पर पतन हो रहा है। ओल्ड के बजाय बोल्ड का सहारा लिया जा रहा है।भाषाविद डॉ चित्तरंजन कर ने कहा कि आज का समय चुनौती पूर्ण है। विमर्श अच्छे उद्देश्य के लिए प्रारंभ हुआ था, पर यह अतिवाद का शिकार हो रहा है।अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार डॉ परदेशी राम वर्मा ने कहा कि हिंदी की कहानी ने लो को जीवित रखा है। पर आज प्रेमचंद की कहानियों का विस्तार नहीं हो पा रहा है।

कमलेश्वर कहते थे कहानी झूठ को भी सच करने की कला है। गुलेरी जैसे कहानीकार पैदा नहीं हो रहे हैं। प्रेम के स्पंदन को लेकर युद्ध कथा रची गई। समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ सुशील त्रिवेदी और अजय तिवारी थे।समाजसेवी डॉ अरूण छाबड़ा का सम्मान किया। इस अवसर पर अक्षरा पत्रिका भोपाल को पं माधवराव सप्रे साहित्यिक पत्रिका सम्मान प्रदान किया गया और छत्तीसगढ़ मित्र के कहानी विशेषांक का विमोचन किया गया।श्रीमती शोभा खंडेलवाल ने आभार व्यक्त किया। (Pandit Madhavrao Sapre)

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