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जिला प्रशासन का दमनकारी आदेश, मौन सत्याग्रह का आवेदन किया खारिज

महासमुन्द जिले में प्रशासनिक अड़ियलपन का नमूना देखिए। तीन दिन पहले दिए गए मौन सत्याग्रह (silent satyagraha) प्रदर्शन आवेदन को आज दोपहर में खारिज कर दिया गया। आवेदक आनंदराम पत्रकारश्री ने बताया कि अतिवादी और स्वेच्छाचारी रवैया अपना रहे जिला प्रशासन के कतिपय अधिकारी अब दमनकारी रणनीति पर उतारू हो गए हैं। लोकतांत्रिक ढंग से शांतिपूर्ण मौन प्रदर्शन की स्वीकृति भी नहीं दे रहे हैं।

आनंदराम पत्रकारश्री ने बताया कि उन्होंने राज्य शासन द्वारा निर्धारित प्रारूप में 27 अप्रैल को विधिवत आवेदन किया था। जिसमें 1 मई से मांगें पूरी होने तक अनिश्चित कालीन मौन सत्याग्रह (silent satyagraha) की अनुमति चाही गई है। इस पर जब तीन दिन बाद भी स्वीकृति की सूचना नहीं मिली तो उन्होंने 29 अप्रैल को देर शाम 6.45 बजे तक लम्बी प्रतीक्षा के बाद कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी निलेश कुमार क्षीरसागर से भेंट की। इस दौरान प्रेस क्लब के महासचिव रविन्द्र विदानी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सीनियर जर्नलिस्ट मनोहर सिंह राजपूत भी बाईट लेने कलेक्टर कक्ष में पहुंचे हुए थे। उनके समक्ष हुई चर्चा में जिला दण्डाधिकारी ने साफ तौर पर कहा कि आपका आंदोलन एक मई को है, उसके पहले आपको अनुमति संबंधी आदेश मिल जाएगा।


अवकाश के दिन जारी हुआ ऐसा आदेश

आज 30 अप्रैल को शनिवार अवकाश के दिन दोपहर में व्हाट्सएप से एक आदेश पिछली तारीख 29 अप्रैल का डला हुआ पत्र मिला। जिसमें अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी द्वारा उल्लेख किया गया है कि “आपके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ बिलासपुर में याचिका दायर की गई है। माननीय न्यायालय से अंतिम आदेश प्राप्त नहीं है। अतः माननीय उच्च न्यायालय में विषय sub-judice होने के कारण तथा माननीय न्यायालय की अवमानना की संभावना को देखते हुए आपका आवेदन अस्वीकार किया जाता है।”
प्रेस कार्यालय तोड़ने के दौरान न्यायालय की अवमानना के समय चुप्पी और भविष्य में कथित अवमानना की संभावना सम्बन्धी आदेश समझ से परे है।

इसलिए अनुमति देने से कर रहे इंकार !

यहां गौरतलब है कि न तो आवेदक आनंदराम पत्रकारश्री ने उच्च न्यायालय बिलासपुर में कोई याचिका दायर की है। और न ही कोई न्यायालयीन आदेश है, जिसकी अवमानना मौन सत्याग्रह से हो रही है। मौन सत्याग्रह आयोजन का उद्देश्य प्रशासनिक आतंकवाद पर विराम और व्यापक जनहित की मांगों पर शासन-प्रशासन का ध्यानाकर्षण कराना है। राज्यपाल के आदेश की अवज्ञा कर जिले के कुछ अधिकारी 8 महीने बाद भी नर्रा कांड की दण्डाधिकारी जांच संस्थित नहीं किए हैं। इसलिए वास्तविकता से जनसामान्य का ध्यान भटकाने और सत्याग्रह को प्रारंभ होने नहीं देने की नीयत से आवेदन को अस्वीकृत किया गया है।

हर हाल में करूंगा मौन सत्याग्रह : आनंद

आनंदराम पत्रकारश्री ने अपना संकल्प दोहराते हुए कहा कि प्रशासन की इस दमनकारी नीति से उनका सत्याग्रह प्रभावित होने वाला नहीं है। पूर्वाग्रह से ग्रसित इस आदेश के बावजूद वे एक मई को अपने निवास पर ही सुबह 10 से शाम 6 बजे तक मौन सत्याग्रह करेंगे। और दो मई को अनुमति के लिए पुनः आवेदन करेंगे। जिससे कि मौन सत्याग्रह (silent satyagraha) प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से कर सकें। आत्मबल की वृद्धि और सत्य की स्वीकारोक्ति के लिए यह प्रदर्शन करने की बात उन्होंने कही है। वे अपने मौन सत्याग्रह के संकल्प पर अडिग हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट न्यूज वेबसाइट पर खबर वायरल होने के बाद बड़ी संख्या में लोग मौन सत्याग्रह को समर्थन दे रहे हैं।

इसे भी पढ़ें- Mahasamund News : प्रशासनिक अतिवाद और स्वेच्छाचारिता के विरोध में एक मई से अनिश्चितकालीन मौन सत्याग्रह

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