CM भूपेश बघेल ने पुलिस अकादमी में किया नेताजी बोस की प्रतिमा का अनावरण

Unveiling of Bose Statue: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य पुलिस अकादमी में भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने अकादमी के नव निर्मित बैरक का भी लोकार्पण किया। इस मौके पर राज्य के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, नगरीय प्रशासन मंत्री शिव कुमार डहरिया, पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा, राज्य पुलिस अकादमी के निदेशक रतन लाल डांगी समेत पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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गौरतलब है कि मुख्यमंत्री भूपेश  बघेल ने राज्य पुलिस अकादमी को एक नई पहचान दिलाने के उद्देश्य से इसका नामकरण महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर किया था। छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थित राज्य पुलिस अकादमी अब नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर जानी जाती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रशिक्षु उप पुलिस अधीक्षकों के बारहवें दीक्षांत परेड समारोह के दौरान अकादमी परिसर में प्रतिमा का अनावरण करने के साथ ही नव निर्मित बैरक का लोकार्पण किया। (Unveiling of Bose Statue)

बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर 23 जनवरी 2021 को अपने निवास कार्यालय में आयोजित समारोह में चंदखुरी स्थित राज्य पुलिस अकादमी का नामकरण देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम पर करने की घोषणा की थी। इस दौरान नवा रायपुर स्थित राज्य योजना आयोग कार्यालय में नेताजी के नाम पर बने ब्रेनस्टार्म सेंटर का वर्चुअल लोकार्पण भी किया था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया। (Unveiling of Bose Statue)

 

उन्होंने कहा था कि दुनिया का भ्रमण कर आजाद हिंद फौज की स्थापना की। वे युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनके स्मरण से ही जोश का संचार हो जाता है। उन्होंने कहा कि पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण लेने वाले पुलिस अधिकारी उनसे प्रेरणा लेकर उनके आदशो पर चलने के लिए प्रेरित होंगे। बताया जाता है कि आजाद हिंद फौज के बनने में जापान ने बहुत सहयोग किया था। आजाद हिंद फौज में करीब 85 हजार सैनिक शामिल थे। इसमें एक महिला यूनिट भी थी, जिसकी कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन थी। पहले इस फौज में वे लोग शामिल किए गए, जो जापान की ओर से बंदी बना लिए गए थे। बाद में इस फौज में बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए। साथ ही इसमें देश के बाहर रह रहे लोग भी इस सेना में शामिल हो गए। (Unveiling of Bose Statue)

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