श्री सुंदरम पब्लिक स्कूल में मनाया गया पहला वार्षिकोत्सव, मुख्य अतिथि डॉ अजय आर्य ने स्टूडेंट्स और पेरेंट्स को किया संबोधित
Education News : श्री सुंदरम पब्लिक स्कूल के प्रथम वार्षिकोत्सव में विद्यालय के छात्रों ने खूब रंग जमाया। गणेश वंदना सरस्वती वंदना ओ री चिरैया जैसे नृत्यों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम में डॉ अजय आर्य मुख्य अतिथि, राजकुमार वर्मा अध्यक्ष विशिष्ट अतिथि, मनहरण तूरकुले, विनोद गुप्ता, अल्ताफ कुरेशी सरपंच उपस्थित रहे।
विद्यालय के निर्देशक डॉ घनश्याम देवांगन, सतीश देवांगन, विशाल देवांगन, मन्नु देवांगन आदि ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन कुंज बिहारी साहू ने किया। विद्यालय के प्राचार्य होरीलाल कोसरे ने विद्यालय की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा, इस विद्यालय का मुख्य उद्देश्य संस्कारों के साथ शिक्षा देकर छात्र-छात्रों का सर्वांगीण विकास करना।
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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मनहरण तुरकुले ने कहा सभी अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए। क्योंकि बच्चे ही माता-पिता की असली संपत्ति है। कार्यक्रम के अध्यक्ष राज कुमार वर्मा ने अभिभावकों को संबोधित करते हुए कहा कि पहले साधन कम थे, व्यक्ति सुखी ज्यादा था। आज संसाधन बढ़ गए हैं और व्यक्ति दुखी ज्यादा है। इसलिए हम सबको आत्म मूल्यांकन करना चाहिए। जब तक हम बच्चों को संस्कृति के साथ नहीं जोड़ेंगे तब तक शिक्षा का उद्देश्य नहीं प्राप्त कर सकेंगे।
छात्रों ने बाबा घासीदास का के संदेशों को पंथी नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया और मनखे मनखे एक समान का संदेश दिया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ अजय आर्य ने कहा- कोई भी विद्यालय बड़े-बड़े भवनों से बड़ा नहीं होता। विद्यालय बड़ा होता है शिक्षकों के समर्पण त्याग और शिक्षकों के प्रति सद्भावना से। प्राचीन संस्कृति में शिक्षित व्यक्ति को द्विज कहा जाता था। वेदों के अनुसार आचार्य शिक्षक के लिए उपनयन करते हुए शिष्य को अपने गर्भ में धारण करके नया जन्म देता है। मां के गर्भ से मिला जन्म जनसाधारण है। आचार्य के गर्भ से मिला हुआ जन्म व्यक्ति को ज्ञान, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साथ-साथ लौकिक एवं पारलौकिक जीवन की सफलता के लिए प्रेरित करता है।
पूत कपूत तो क्यों धन संचय पूत सपूत तो क्यों धन संचय। धन संपदा वैभव सुख की गारंटी नहीं है। देश के कोने-कोने में जाने का अवसर मुझे मिला। मैं देखता हूं कि धनसंपदा वाले लोग ज्यादा दुखी हैं। माता-पिता को कंधा देने के लिए भी बच्चे नहीं आ पाते हैं। इसीलिए बच्चों को सामाजिक बनाइए। बड़ों का सम्मान करना सिखाइए। संस्कृत के ग्रंथ कहते हैं कि जब हम बड़ों को प्रणाम करते हैं, तो व्यक्ति को आयु विद्या यश और बल मिल जाता है।
मेरा मानना है कि जो बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी या अपने बुजुर्गों की गोद में खेलते हैं, वह बच्चे मानसिक तौर पर मजबूत होते हैं। ऐसे बच्चे कभी अवसाद या डिप्रेशन में नहीं जाते। शिक्षा का उद्देश्य मानव का निर्माण करना है। श्री सुंदरम पब्लिक स्कूल में श्री धन वैभव संपत्ति का प्रतीक है और सुंदर शब्द तन और मन को सुंदर करने की प्रेरणा देता है।
हाथों की बाहरी शोभा कंगन हो सकता है लेकिन उसके आंतरिक सुबह इस बात से है कि उस हाथ से कितना पुण्य कमाया गया। हमारा जीवन तब बेहतर हो जाता है जब हम खुश होते हैं, किंतु वही जीवन तब बेहतरीन हो जाता है जब हमारी वजह से कोई दूसरा खुश होता है। इसलिए जीवन ने बच्चों को बेहतरीन जीवन जीने की प्रेरणा दीजिए। बच्चों को प्रकृति और संस्कृति से जोड़कर रखिए। प्रकृति व्यक्ति को स्वस्थ रखेगी और संस्कृति उसके विचारों में पवित्रता बनाए रखेगी। (Education News)
धनेश कुमार सिन्हा दंपति को श्रेष्ठ पालक पुरस्कार दिया गया। सभी अभिभावकों और दर्शकों ने छात्रों द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम की प्रशंसा हुई। प्रथम वार्षिकोत्सव में बच्चों ने खूब रंग जमाया और लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। (Education News)