‘धर्मांतरितों को आरक्षण नहीं’ के मतैक्य के साथ संपन्न हुआ दो दिवसीय विमर्श

Gautam Buddha University Conclave: ग्रेटर नोएडा में विश्व संवाद केंद्र और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन हो गया। ‘धर्मांतरण कर मुसलमान या ईसाई बन गए अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। धर्मांतरण और आरक्षण पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र में जस्टिस (सेवानिवृत्त) शिवशंकर ने कहा कि कनवर्जन का मतलब होता है एक फेथ (आस्था) को पूरी तरह छोड़कर दूसरी आस्था को अपनाना, और जब अपनी पुरानी आस्था को छोड़ दिया तो उसके अंतर्गत मिलने वाले आरक्षण या अन्य लाभ की मांग क्यों?।

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डिक्की के चेयरमैन पद्मश्री मिलिंद कांबले ने कहा कि जिनका कम प्रतिनिधित्व था, उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था। किंतु, उसका लाभ जिन्हें मिलने चाहिए था, उनसे छीनकर धर्मांतरित लोग (ईसाई और मुस्लिम) ले गए। अभी भी उस पर डाका डालने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरितों को आरक्षण देने के नाम पर कुछ लोग देश में पॉलिटिकल पावर हथियाना चाहते हैं। धर्मांतरित लोगों को अपने अधिकारों का रोना अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष रोना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री सुरेंद्र जैन ने कहा कि मीम-भीम का नारा अनुसूचित समाज को समाप्त करने का षड्यंत्र है। (Gautam Buddha University Conclave)

उन्होंने कहा कि उनके मन में अनुसूचित जाति के कल्याण की भावना नहीं है, उनका उद्देश्य केवल अपनी संख्या बढ़ाना है। यदि वास्तव में अनुसूचित जाति के हितों की चिंता होती तो अपने (ईसाई और मुस्लिम) संस्थानों में उन्हें आरक्षण का लाभ प्रदान करते, अल्पसंख्यकों को मिलने वाली स्कॉलरशिप में धर्मांतरितों को लाभ देते। उन्होंने कहा कि ये साल स्वामी दयानंद जी का 200वां जयंती वर्ष भी है। स्वामी जी ने कहा था कि अस्पृश्यता अवेद है, यानि वेदों में कहीं वर्णित नहीं है। उन्होंने कहा कि धर्मांतरितों को आरक्षण के विषय पर कोई एक व्यक्ति निर्णय नहीं लेगा, पूरा देश निर्णय लेगा। इसलिए इस कॉन्क्लेव के माध्यम से एक विषय प्रारंभ हुआ है, इस विषय पर राष्ट्र व्यापी चर्चा होनी चाहिए। (Gautam Buddha University Conclave)

इस दो दिवसीय विमर्श के व्यापक परिणाम सामने आएंगे। उन्होंने शिक्षाविदों, विधिवेत्ताओं, और समाजशास्त्रियों से आह्वान किया कि इस विषय को देशव्यापी चर्चा के केंद्र में लाएं। इससे पूर्व के सत्रों में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष अरुण हल्दर ने कहा कि “शोषित-पीड़ित समाज को आगे लाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था हुई थी। जाति आधारित आरक्षण से पिछड़ा समाज आगे आए यह के लिए था”। उन्होंने कहा कि लोभ-लालच और दबाव से धर्मांतरित लोगों को आरक्षण दिया गया, तो यह गलत होगा। (Gautam Buddha University Conclave)

प्रोफेसर एससी संजीव रायप्पा ने अपना पेपर प्रस्तुत करते हुए कहा कि कंवर्टेड लोग अधिक प्रोटेक्टेड होते हैं, हम एससी लोग अनसंग हीरोज हैं। धर्मांतरित लोगों को आरक्षण देने से धर्मांतरण बढ़ेगा। कंवर्टेड एससी सर्टीफिकेट में अपना नाम नहीं बदलते हैं, आरक्षण का लाभ लेते रहते हैं। उन्होंने कहा कि धर्मांतरित लोग उसी गांव में रहकर वहाँ के मूल धर्म वाले लोगों पर दबाव डालेंगे, डराएंगे, धमकाएंगे, तो वो लोग कहां जाएंगे। दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श में सात पूर्व न्यायाधीशों, सात विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति और उप- कुलपति, 30 प्रोफेसर समेत लेक्चरर, आठ बड़े अधिवक्ता और 30 से अधिक विविध सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लेकर समुद्र मंथन नहीं, अपितु दधि मंथन किया, जिससे शीघ्र ही उत्तम परिणाम सामने आएंगे। (Gautam Buddha University Conclave)

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