छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर लिया प्रण, राजकाज की भाषा और प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनने तक नंगे पांव रहने व बाल पर कंघा नही करने

रायपुर : 28 नवंबर छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर प्रदेश के मूर्धन्य साहित्यकार फिल्मकार पत्रकार गजेंद्ररथ वर्मा ने मातृभाषा के लिए एक बड़ा प्रण लेते हुए छत्तीसगढ़ी राजभाषा को राजकाज की भाषा और प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनने तक नंगे पांव रहने बाल पर कंघा न करने का प्रण लिया।

उनका मानना है कि लंबे समय से मातृभाषा की लड़ाई जारी है प्रदेश निर्माण को 21 साल हो चुके हैं छत्तीसगढ़ी में साहित्य बन रहा है, फिल्में बन रही है, गद्य और काव्य में काम हो रहा है। इसके बाद भी प्रदेश की सरकार इसे सम्मान नहीं दे पा रही है। केंद्रीय शिक्षा नीति का अधिपालन भी नहीं हो रहा है ऐसे में गजेंद्ररथ ने मातृभाषा को मान दिलाने के लिए, छत्तीसगढ़ी को छत्तीसगढ़ की राजकाज की भाषा बनाने की मांग करते हुए यह प्रण लिया है।

बता दें कि गजेंद्ररथ वर्मा छत्तीसगढ़ फिल्म एसोसिएशन के प्रवक्ता है, राजभाषा मंच से जुड़े हुए हैं और लगातार छत्तीसगढ़ी राजभाषा को उसका मान दिलाने के लिए लड़ रहे हैं। उनका मानना है कि आज 28 नवंबर को राजभाषा दिवस हम इसलिए मना रहे हैं क्योंकि हमारी मातृभाषा को अब तक सम्मान नहीं मिला है।

इस दिवस को मनाने में हमें कतई खुशी नहीं है क्योंकि जब तक हमारी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को राजकाज की भाषा ना बनाई जाए तब तक छत्तीसगढ़िया पहचान को अक्षुण नहीं रखा जा सकता।

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हमारी भाषा हमारी पहचान है। उनका यह भी मानना है कि जिस तरह से भारत माता के बहुत से संतानों में सभी संतानों की अपनी मातृभाषा है वैसे ही इन संतानों में महतारी छत्तीसगढ़ मां भारती की दुलौरिन बेटी है तो फिर क्यों उनके राज्य भाषा से उन्हें संवारा नहीं जा रहा, क्यों हमारी पहचान हम से छीनी जा रही है, क्यों छत्तीसगढ़ी राजकाज की भाषा नहीं है। इन सभी सवालों को लेकर यह प्रण उन्होंने तब तक के लिए लिया है जब तक की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को उसका सम्मान ना मिल जाए। उसे राजकाज की भाषा न बना दिया जाए उसे प्राथमिक शिक्षा का माध्यम ना बना दिया जाए।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माण से जुड़े एक लेखक निर्देशक और फिल्म निर्माता के रूप में गजेंद्र रथ ने लंबा संघर्ष छत्तीसगढ़ी के लिए किया है। वह प्रदेश के प्रतिष्ठित चैनल में छत्तीसगढ़ी प्रभाग के कर्ता-धर्ता रह चुके हैं। छत्तीसगढ़ी में कविता लिखते हैं छत्तीसगढ़ी में कहानियों का लेखन करते हैं और लगातार छत्तीसगढ़िया जन मन में अपनी मातृभाषा का अलख जगा रहे हैं।

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उनका मानना है कि जब तक छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ जनता अपनी भाषा को सम्मान नहीं देंगे तब तक इसे राजकाज की भाषा नहीं बनाया जा सकता हैं। उन्होंने जनता से अपील की कि ज्यादा से ज्यादा अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को प्राथमिकता दें। उन्होंने इस बात पर विरोध भी जताया कि जिस प्रकार छत्तीसगढ़ के स्कूलों में गुजराती उड़िया और बंगाली भाषा को पढ़ा या जा रहा है।

यह हमारी मातृभाषा से दोहरा व्यवहार है। हम जब तक अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा का ज्ञान ना करा दें तब तक उन्हें और दूसरे प्रदेश की भाषाओं को लादना हमारी मातृभाषा को दोयम दर्जे में रखना है।

उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई की छत्तीसगढ़ी निम्न और अनपढ़ों की भाषा मानी जाती है। अगर ऐसा है तो फिर हमारे प्रदेश के मुखिया भी इस भाषा से संवाद करते हैं। ऐसे में जल्द से जल्द मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को राजकाज की भाषा बनाई जाए। प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाया जाए जिसके बाद छत्तीसगढ़ उत्तरोत्तर विकास करेगा यहां की आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा ही पहचान के साथ अपना भविष्य उज्जवल करेगी।

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गजेंद्र रथ वर्मा ने पढ़े लिखे युवाओं माताओं बहनों से यह अपील भी की कि वे ज्यादा से ज्यादा छत्तीसगढ़ी को कामकाज में आपसी वार्तालाप में उपयोग करें जिससे छत्तीसगढ़ी का प्रचार होगा लोग छत्तीसगढ़ी में संवाद करने के लिए आगे आएंगे और प्रदेश की जनता में इस भाषा के लिए जो हीन भाव है वह दूर होगा।

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