गंगू तेली उर्फ गांगेय देव की पुण्यतिथि पर विशेष आलेख
Gangu Teli : गंगू तेली उर्फ गांगेय देव की पुण्यतिथि : हैहय-कलचुरीवंशी प्रतापी राजा गांगेय देव की 22 जनवरी को पुण्यतिथि है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया के दिन ईसवी सन 1041 में बनारस में निधन हुआ था। गांगेय देव के पुत्र लक्ष्मी कर्ण (कर्ण देव) ने गांगेय देव की मृत्यु के ठीक एक वर्ष उपरांत उनके पुण्य स्मरण में बनारस से ताम्र शासन जारी किया था।
गांगेयदेव लोक में “गंगू तेली” (Gangu Teli) के नाम से स्थापित हैं इसलिए इन्हें जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा रहती है। गांगेयदेव त्रिपुरी (अब जबलपुर के निकट तिपरी कस्बा है) के हैहयवंशी नरेश कोकल्ल के पुत्र थे। वे ईसवी सन 1015 में सिंहासनारूढ़ हुए और 1041 तक चक्रवर्ती शासक रहे। इन्होंने गंगा-यमुना घाटी के राज्यों से लेकर ओडिशा-तेलंगाना के समुद्र पर्यंत अपने राज्य का विस्तार किया था। इनके राजत्वकाल में सन 1027 में महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ और कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार राजा राज्यपाल ने समर्पण कर दिया था। इस घटना से हैहय, चंदेल, परमार, चालुक्य, चोल राजा संगठित होकर कन्नौज पर आक्रमण किये फलस्वरूप गजनवी वहीं से लौट गया था। इन राजाओं की संधि अधिक दिनों तक नहीं चल सकी और गांगेयदेव ने परमार और चोल की सहायता लेकर गोदावरी तट के चालुक्य राजा जयसिंह को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार किया। इस विजय के बाद गांगेयदेव के नाम में “तेलंगन” शब्द जुड़ गया।
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गांगेयदेव ने उत्कल के राज्य पर आक्रमण कर सोमवंशी राजा इन्द्ररथ को पराजित कर “त्रिकलिंगाधिपति” की उपाधि धारण किया था। उस युद्ध में हैहय/कलचुरी वंश की दक्षिण कोसल शाखा के राजा कमलराज ने सहायता किया था। तब उसकी राजधानी तुम्माण में थी। कालांतर में कलचुरियों की राजधानी तुम्माण से स्थानांतरित होकर रतनपुर आ गई। छत्तीसगढ़ के लोक गीतों में “गंगा ले गोदावरी जाबो, आठ नांगर पागा, कलिहार सिंग राजा” के रूप में कलचुरी राजाओं का वैभव चिरस्मरणीय स्थापित है। गांगेय देव के उत्कल विजय अभियान में राजा कमलराज को साहिल्ल नामक योद्धा मिला था, जिसके वंशज जगपाल देव प्रसिद्ध सामंत हुआ। सामंत जगपाल देव का राजिम के इतिहास से गहरा संबंध है। राजा गांगेय देव ने बनारस को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था और वहीं अपना प्राण त्यागा और उसकी 100 रानियां सती हुई थी।
गांगेयदेव की मित्रता परमार राजा भोज से अधिक दिनों तक नहीं रही। मदन बालसरस्वती कृत “पारिजातमंजरी” नाटक में गांगेयभंगोत्सव मनाए जाने का उल्लेख है। इसी के आधार पर माना जाने लगा कि परमारों की राजधानी धार नगरी में गांगेय और चालुक्य तैलप आक्रमण किये लेकिन विफल रहे, तब भोज के किसी दरबारी कवि ने मुहावरा बनाया था “कहां राजा भोज और कहां गांगेय तैलप”।
कालांतर में वही मुहावरा अपभ्रंश होकर ” कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली ” के रूप में प्रचलित हो गया। राजा भोज के दरबारी कवि मेरुतुंगाचार्य ने प्रबंधचिंतामणि में भोज की प्रशंसा में लिखा है “चौड़ का राजा समुद्र की गोद में प्रवेश कर रहा है और आंध्र पति पर्वत की खोह में निवास कर रहा है, कर्नाटक के राजा पट्ट बंध नहीं करता है, गुर्जर का राजा निर्झर का आश्रय लेता है, चेदि (गांगेय देव) अस्त्रों से म्लान हो गया है और राजाओं में सुभट समान कान्यकुब्ज कुबड़ा हो गया है। हे भोज! तुम्हारे मात्र सेनातंत्र के प्रसार के भय से ही सभी राजा लोग व्याकुल हो रहे हैं।” इसी कथन के आधार पर मान लिया गया कि राजा भोज ने गांगेय देव को भी पराजित किया था। महमूद गजनवी के साथ भारत आये अरबी साहित्यकार अबू रैहान इब्न मुहम्मद उर्फ अलबेरुनी ने गांगेयदेव को डाहल-नरेश त्रिपुरी (तिऔरी) राजधानी के रूप में उल्लेख किया है। छत्तीसगढ़ के कलार और कसार जाति के लोग स्वयं को कलचुरी वंशीय होने का दावा करते हैं। प्रचलित मुहावरे के आधार पर ही तेली/साहू समाज भी गांगेय देव उर्फ गंगू तेली (Gangu Teli) को अपना पूर्वज मानने लगा है। इस अवसर पर कोसल के प्रतापी चक्रवर्ती राजा गांगेय देव को सादर श्रद्धांजलि।
आलेख :
प्रोफ़ेसर घनाराम साहू रायपुर (छत्तीसगढ़)