राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का दूसरा दिन, विदेश और 8 राज्यों के दल ने दी मनमोहक प्रस्तुति

Ramayan Mahotsav Second Day: संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत और स्कूल मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम ने दीप प्रज्ज्वलित कर दूसरे दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर लोकगायक दिलीप षडंगी ने अपनी टीम के साथ हनुमान चालीसा की प्रस्तुति दी। महोत्सव में उपस्थित सभी लोगों ने तालियों की थाप के साथ हनुमान चालीसा का पाठ किया। मंत्री अमरजीत भगत ने महोत्सव में उपस्थित दर्शकों को सम्बोधित करते हुए स्वयं स्वागत लोकगीत गाया। संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत और स्कूल मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम का मंच पर पहुंचने पर गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया गया।

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भारत से करीब 4500 किमी की दूरी पर स्थित देश कम्बोडिया में विश्व का सबसे बड़ा विशाल अंगकोर वाट (विष्णु) मंदिर है। यहां की संस्कृति में भगवान राम घर-घर और लोगों के दिलों मे बसते हैं, यहां राम को हर आम आदमी की कहानी से जोड़कर देखा जाता है। कम्बोडिया से पहुंची 12 सदस्यीय टीम ने बताया कि यहां जिस तरह से भगवान राम को पूजते हैं, उसी तरह वहां भी राम की मान्यता है, हमारे यहां रामायण को ’’रिमकर’’ के नाम से जाना जाता है। (Ramayan Mahotsav Second Day)

यह एक कम्बोडियन महाकाव्य से उद्घृत कविता है, जो संस्कृत की रामायण से प्रेरित है। ’’रिमकर’’ यानी राम की महिमा होती है। कम्बोडिया में भी सरकार यहां की कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करती है। यहां भगवान की कहानी को आम लोगों से जोड़कर दिखाया जाता है। कम्बोडिया से आए रामकथा के एक कलाकार ने बताया कि इस तरह की प्रस्तुति देने पहली बार भारत आए हैं, लेकिन इससे पूर्व वे पारिवारिक यात्रा में भारत आ चुके हैं। (Ramayan Mahotsav Second Day)

राष्ट्रीय रामायण महोत्सव में शुभारंभ अवसर पर 1 जून को कम्बोडिया की अंतर्राष्ट्रीय रामायण टीम ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी थी। आकर्षक वेशभूषा के साथ 25 मिनट की प्रस्तुति के दौरान टीम ने दर्शकों का दिल जीत लिया। कम्बोडिया रामायण टीम द्वारा अहिरावण प्रसंग की संगीतमय प्रस्तुति की गयी, इस प्रसंग में रावण का भाई अहिरावण राम को मूर्छित कर पाताल लोक ले जाते हैं। तब हनुमान राम को लाने पाताललोक जाते हैं, जहां उनका सामना अपने ही पुत्र मकरध्वज से होता है। युद्ध में दोनों की लड़ाई होती है, लेकिन इसमें किसी जीत या हार नहीं होती। अंत में हनुमान राम को वापस लाते हैं।

कम्बोडिया की टीम ने इस प्रसंग को बड़े ही भावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति ने लोगों का मन मोह लिया। भावों को समझने भाषा आड़े नहीं आई। लोग कम्बोडिया के रामायण में भी उसी भावधारा में बहते रहे जैसे मानस कथा सुनकर अभिभूत हो जाते हैं। असम से आई टीम की प्रस्तुति में 21 कलाकार हैं। टीम में 16 कलाकार लड़कियां हैं, इनकी प्रस्तुति ने सभी को भावविभोर कर दिया। दर्शकों ने इस मंचन पर जमकर तालियां बजाई। इंडोनेशिया के बाली द्वीप से आए कलाकारों ने कहा कि श्रीराम की भूमि में आकर धन्य हुए, जिनकी कथा हम दुनिया भर में सुनाते हैं। (Ramayan Mahotsav Second Day)

भारत से लगभग साढ़े आठ हजार किलोमीटर की दूरी पर बसे इंडोनेशिया के बाली द्वीप में भी किसी लड़की का नाम पद्मा हो सकता है या फिर श्रीयानी हो सकता है यह सोचना भी चकित कर देता है लेकिन बाली द्वीप में ऐसा हो सकता है। 2000 बरस पहले यहां भारतीय उपमहाद्वीप का सांस्कृतिक प्रभाव पड़ा और बाली ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को अपना लिया। वाल्मीकि की रामायण कथा बाली द्वीप में आज भी उसी तरह से सुनी सुनाई जाती है, स्थानीय संस्कृति के अनुरूप इसका सुंदर मंचन किया जाता है। (Ramayan Mahotsav Second Day)

राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के मौके पर बाली से आए दल की सदस्य ने बताया कि मेरा नाम पद्मा है। हमारे यहां बिल्कुल वैसे ही पूजा होती है जैसे भारत में होती है। हमारे यहां भी लोग मंदिर जाते हैं और हम सब भगवान राम के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं। बाली से ही आई श्रीयानी ने बताया कि लक्ष्मी जो विष्णु जी की पत्नी हैं, उनकी विशेष पूजा बाली द्वीप में होती है, इसी वजह से बहुत सारी लड़कियों के नाम श्री से हैं जैसे श्रीयानी या पदमा। (Ramayan Mahotsav Second Day)

श्रीयानी ने बताया कि उनके दल द्वारा मंचित की गई राम कथा केवल इंडोनेशिया में ही नहीं सुनाई जाती, इसका मंचन आसपास के देशों जैसे सिंगापुर आदि में भी होता है। यही नहीं वह यूरोपियन यूनियन तथा अमेरिका में भी अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं। श्रीयानी ने बताया कि जब उनका दल राम कथा सुनाता है, तब उनकी कलात्मक प्रस्तुति और उनका वस्त्र विन्यास लोगों को बहुत भाता है। इसके अलावा श्रीराम का अद्भुत चरित्र सब को बहुत पसंद आता है। श्रीयानी ने बताया कि उन्हें रामकथा इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि श्रीराम हमेशा अपनी पत्नी सीता का ध्यान रखते हैं। जब उनका अपहरण होता है तब वह उन्हें वापस लाने लंका तक चले जाते हैं, लंका में पुल का निर्माण करते हैं। इस तरह से जब भावपूर्ण कथा की प्रस्तुति होती है, तो लोगों के लिए अद्भुत दृश्य बनता है।

श्रीयानी से जब उनके परिधानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बाली में रामकथा से जुड़ी हुई सामग्री बनाने का कुटीर उद्योग है, यहां न केवल कलाकारों के लिए मुकुट तैयार होते हैं अपितु यहां पर उनके लिए सुंदर वस्त्र भी तैयार होते हैं।
श्रीयानी ने वस्त्र दिखाते हुए कहा कि देख लीजिये, सालों से इसी तरह के वस्त्र रामकथा में पहने जा रहे हैं और इन वस्त्रों की विशेषता यह है कि ऐसे ही परिधान हमारे मंदिरों में भी देवताओं ने धारण किए हैं। अपने मुकुट की तरफ इशारा करते हुए श्रीयानी ने बताया कि इसे देखिए, यह वैसा ही है जैसे बाली के मंदिरों में बनी मूर्तियों में दिखता है।

फिर उन्होंने बताया कि यह मुकुट दुकानों में बिकते हैं। फूलों की ओर इशारा करते हुए मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि बस यह फूल ही हैं, जिन्हें हम चुनकर अपने मुकुट में लगाते हैं हमारा इतना ही काम है और फिर उसके बाद अपनी अपनी प्रस्तुति में लग जाते हैं। श्रीयानी ने बताया कि वह पहली बार भारत आई हैं। यहां आकर बहुत अच्छा लगा। यह श्रीराम का देश है। मुझे बताया गया कि रामकथा में वर्णित अरण्यकांड का स्थल दंडकारण्य ही है। यह छत्तीसगढ़ ही है, जहां मैं आई हूं। यह सोचकर ही मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, हम सब छत्तीसगढ़ में आकर और यहां हुए भव्य स्वागत से अभिभूत हैं।

खास बात है कि बाली से आई श्रीयानी ने महिला होते हुए भी श्री राम का किरदार निभाया। श्रीयानी ने इंडोनेशिया की रामकथा की बारीकी बताई। यह बैले जैसा है। इस राम कथा में वाद्य यंत्रों की खास भूमिका है। उन्होंने बताया कि इसमें सबसे खास इंस्ट्रूमेंट ड्रम है। ड्रम की ताल बदलती है और कलाकारों की थिरकन बदलती है। असम के परफोर्मिंग आर्ट्स कॉलेज डिब्रूगढ़ के कलाकारों  द्वारा अरण्य कांड की प्रस्तुति दी, जिसमें रावण द्वारा सीताहरण प्रसंग, जटायु प्रसंग और राम द्वारा वन-वन भटकने के प्रसंग की भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई। पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से आए कलाकार दल ने अरण्यकांड पर जीवंत प्रस्तुति दी। उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति ने उस दृश्य को दर्शकों के समक्ष जीवंत कर दिया जब दंडकारण्य में राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे।

राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत झारखंड से आए कलाकार दल की प्रस्तुति के साथ हुई। झारखंड के कलाकारों द्वारा अरण्यकांड पर मनमोहक प्रस्तुति दी गई। सीता हरण प्रसंग और राम द्वारा शबरी के झूठे बेर खाने के प्रसंग का मनमोहक प्रस्तुतिकरण हुआ। स्वर्ण मृग बने हिरण की कथा रामायण के सबसे प्रेरक प्रसंगों में से है। जब ऐसी घटना हो जो अप्रत्याशित लगती हो तो इस पर आगे बढ़ने से पहले कई बार विचार करने चाहिए। इस सुंदर प्रसंग को अभिव्यक्त किया गया है। लक्ष्मण रेखा का सिद्धांत भी रामायण में गहरे मायने रखता है। जीवन में सेवा कार्य जरूरी है पर संशय भाव भी होना जरूरी है।

सीता जी का अपहरण रावण कर लेता है। वो साधु बनकर आता है। संगीत बहुत करुणामय हो जाता है। बहुरूपिया दुष्ट पुरुष में बदल जाता है। इस प्रस्तुति की जितनी प्रशंसा हो उतनी कम है। गोवा से आए कलाकारों की प्रस्तुति से सभी मंत्रमुग्ध हो गए। कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र के भक्ति आंदोलन का गहरा प्रभाव हुआ। संत रामदास जैसे भक्त हुए। महाराष्ट्र के भक्ति आंदोलन जैसी सुंदर प्रस्तुति यहां भी हो रही है। महाराष्ट्र में नीलमत पुराण का गहरा प्रभाव है और कोंकण में भी।
इसमें गणपति की पूजा की परंपरा है। यही वजह है कि यहां रामकथा में गणपति भी दिखे हैं।

राष्ट्रीय रामायण महोत्सव में फिर शबरी का धैर्य दिखा। शबरी ने बरसों इंतज़ार किया और जितनी बड़ी उनकी तपस्या रही उनका पुण्य उतना ही जागृत हुआ। भगवान उनकी कुटिया में आए। सबके हिस्से में शुभ हो, मीठा हो। सर्वे भवन्तु सुखिनः के वैदिक विचार से शबरी ने मीठे बेर खिलाए। फिर एक गहन आध्यात्मिक चर्चा हुई। यह सुंदर विचार लोगों के मन में जो हजारों की संख्या में रामकथा सुन रहे हैं उनके भीतर उतर रहा है। बता दें कि दूसरे दिन 8 राज्यों के दल ने प्रस्तुति दी। (Ramayan Mahotsav Second Day)

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