
(संदर्भ ग्रंथ कूर्म पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, पद्म पुराण से साभार)
गौ पालकों का पर्व, गौशाला का महोत्सव दिन
संक्षिप्त में वैदिक काल के प्रथम चरण में इंद्र ही सर्व देव प्रमुख पूज्य थे परंतु द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के उपरांत एवं उनके द्वारा इंद्र की मनमानी एवं इगो को समाप्त कर नई परंपराओं का प्रारंभ हुआ।
सर्वसामान्य को ज्ञात है की कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तक श्री कृष्ण भगवान ने गाय, गो, गोप एवं गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत की छत्रछाया प्रदान की थी। सबको इंद्र के भय से मुक्त कर उनकी रक्षा की ।
कब से कैसे गौ पालको का पर्व गोपाष्टमी प्रारंभ हुआ?
प्रात: कालीन स्वयंभू इंद्र की वर्षा से गोप गोपियों की सतत 7 दिन गोवर्धन पर्वत उठाकर रक्षा कर रहे श्री कृष्णा के पास
आठवें दिन अर्थात कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन तत्कालीन स्वयंभू सर्व प्रमुख देवेंद्र को अपने अहम ,अपने अन्याय ,अपने अहंकार की त्रुटि का ज्ञान हुआ । भगवान श्री कृष्ण की शरण में उपस्थित होकर क्षमा याचना की। इसलिए गौ पालको द्वारा, सात दिन तक प्राण भय की चिंताऔर आठवा दिन चिंता मुक्ति के उपलक्ष मे विजय, संतोष एवम हर्ष उल्लास से व्यतीत किया। इसलिए कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व, गौ पालको द्वारा मनाया जाने लगा।
भगवान श्री कृष्ण का नाम गोविंद कैसे पड़ा?
देवराज इंद्र के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के समक्ष उपस्थित होकर क्षमा याचना करने के पश्चात उस दिन ही उस समय समुद्र मंथन से प्रकट सर्व कामना पूर्णी गौ,कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया। कामधेनु के द्वारा भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किए जाने के कारण उनका नाम गोविंद पड़ा।
यह हैं विधि विधान
कार्तिक कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी को प्रातः समय गायों को स्नान करा कर, उनको गंध, पुष्प, वस्त्र से श्रृंगार कर, पूजन करें। गायों को गो ग्रास देकर उनकी परिक्रमा करना चाहिए। गाय के साथ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर 5 या 10 कदम चलना चाहिए। इससे सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि या मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
संध्या समय गोपाष्टमी के दिन गाय जब चर कर वापस आ जाएं या घर पर भी हो उनका स्वागत, अभिवादन, आतिथ्य एवं पंचोपचार पूजन कर उनको भोजन प्रस्तुत करना चाहिए। गाय के चरणों की रज को (धूल को) मस्तक पर धारण करें। इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। यह गौशालाओं के लिए विशेष महत्व का पर्व होता है। कुछ स्थानों पर मेले भी आयोजित होते हैं।
गोपाष्टमी के दिन गाय के दर्शन एवम नमन सुख शांति समृद्धि प्रद पुराण मे उल्लेखित है।
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श्रङ्गो दक का महत्वगाय के सीगो से स्पर्श जल को गंगा जल के समान पावन माना गया है। यह जल शरीर पर छिड़कने एवं मस्तक पर लगाने से यश एवं विजय प्राप्त होती है।
अशरीरी शक्तियां, नकारात्मक ऊर्जा, भूत-प्रेत राक्षस आदि से भी (इस जल को शरीर पर छिड़कने से मंगल होता है) रक्षा होती है दुख और क्लेश का नाश होता है।
निर्धनता निवारक प्रयोग- शुक्ल अष्टमी
गोपाष्टमी के दिन एवं प्रत्येक माह की अष्टमी शुक्ल पक्ष के दिन गाय के घी को एक पात्र में रख,उसमें अपना मुख मंडल देखें इससे दुख दरिद्रता, निर्धनता, निराकृत होती है।
गौ ग्रास : स्वर्ग साधन
गो ग्रास देने का महत्व पुराणों में उल्लेखित है (विशेष रुप से विष्णु धर्म पुराण में ) कि गाय को दुखी रखने वाला उनका अपमान करने वाला सदैव दुखी रहता है।
नर्क की प्राप्ति होती है । यदि आज की जीवनशैली में आपके घर गाय नहीं हैं तो दूसरे की गाय को भी भोजन देना पुण्य पर माना गया है ।जो शीत ऋतु में दूसरे की गाय को भी ग्रास प्रदान करता है ,वह व्यक्ति 600 वर्ष तक स्वर्ग का उपभोग करता है ।
जो प्रतिदिन 6 महीने तक गाय का ग्रास प्रथम रूप से निकालकर, गाय को प्रदान कर उसके पश्चात ही भोजन ग्रहण करता है उसे भी मृत्यु उपरांत स्वर्ग प्राप्त होता है। गौ व्रत सहज नही कर सकते इसलिए यहाँ विवरण नही दिया जा रहा।
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लोक परलोक सुख : गो प्रदक्षिणा
गाय की प्रदक्षिणा का विशेष महत्व है। इसकी भी विशेष विधि है। सामान्य रूप से श्रेष्ठ समय वत्स या बच्चे को जन्म देते समय यदि गाय की प्रदक्षिणा की जाती है तो ऐसा व्यक्ति लोक परलोक में सदैव सुखी रहता है। अन्यथा गाय की प्रदक्षिणा, सूर्योदय से प्रथम घंटे के पूर्व या पश्चात चतक करना चाहिए।
संध्या समय गाय को स्पर्श कर प्रदक्षिणा एव्ं नमन करना चाहिए। गाय को नमन सदैव उसको स्पर्श कर करना चाहिए। गो का एक अर्थ पृथ्वी भी है और धार्मिक ग्रंथों में पृथ्वी को गौ स्वरूप ही मान्यता प्राप्त है।
प्रदक्षिणा मंत्र :
- गवाम दृष्ट्वा नमस्कृत्य कूर्या च एव प्रतिक्षणम।
- प्रदक्षिण कृता तेन सप्त द्विपा वसुंधरा।
- मातरा: सर्व भूता नाम गाव: सर्व सुखप्रदा :।
- बुद्धिम आकांक्क्षता नित्यम गाव: कार्या: प्रदिक्षिणा:।