कार्तिक माह की शुक्लपक्ष पंचमी, पांडव पंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पांडु एवम कुंती के पुत्र होने के कारण महाभारत के पांचों युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को पांच भाई को पांडव कहलाये। परंतु कुंती पुत्र कर्ण को पांडव नही सूर्य पुत्र राधेय कहा गया।
पाण्डु पुत्रों के जन्म की कथा
एक बार राजा पांडु अपनी पत्नियों कुंती तथा माद्री के साथ शिकार के लिए वन में गए। एक मृग के मैथुनरत जोड़े को अपने बाण से मार दिया। काल मुख मे जाते जाते, मृग ने श्राप दिया कि “राजन! क्रूर पुरुष हो, मुझे मैथुन के समय मेरे प्राण लिए। अब जब कभी भी तू मैथुनरत होगा, उसी समय तेरी मृत्यु हो जाएगी।” मृत्यु श्राप से दुखित पांडु ने रानियों से कहा, “अब मैं वासनाओं का त्याग कर इस वन में ही रहूंगा। तुम लोग हस्तिनापुर जाओ।
यह सुनकर दोनों रानियों ने कहा, “आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिए।” पांडु के द्वारा अनुरोध को स्वीकार कर लेने पर धृतराष्ट्र को राज्य देकर तीनो वन मे रहने लगे। एक दिन पांडु ने कार्तिक अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए जाते देख, ऋषि टोली से स्वयं को साथ ले चलने का निवेदन किया। ऋषि-मुनियों ने कहा, “कोई भी निःसंतान पुरुष ब्रह्मलोक जा नहीं सकता अतः आपको अपने साथ ले चलने में असमर्थ हैं।”
पांडु अपनी पत्नी से बोले, “हे कुंती मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो गया। संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण से मुक्त नहीं हो सकता। आप पुत्र प्राप्ति के लिए मेरी सहायता करो?” कुंती बोली, “ दुर्वासा ऋषि ने मुझे मंत्र दिया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान कर मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा दीजिए मैं किस देवता को पुत्र संतान के लिए बुलाऊं।
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पांडु की आज्ञा से कुंती ने सबसे पहले धर्म को आमंत्रित कर, उनके सहयोग से पुत्र प्राप्त किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा। इस दिन, कार्तिक मास की पंचमी थी जिसे आज पांडव पंचमी के नाम से मनाया जाता है। कालान्तर में, पांडु की आज्ञा से क्रमश: पवनदेव से भीम तथा इंद्र से अर्जुन दो पुत्र, कुंती के हुए। पांडु की इच्छा से कुंती ने माद्री को उस मंत्र दीक्षित किया। माद्री ने अश्वनी कुमारों को आमंत्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।
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कालांतर में एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में नदी के किनारे विहार कर रहे थे। वन का सुरमयी और शीतल मन्द सुगन्धित बयार बह रही थी। वातावरण अत्यन्त रमणीक (रोमांटिक) था। सहसा वायु के झोंके ने अपूर्व सुंदरी माद्री के वस्त्र, ऊपर उठा दिये। पांडु सौंदर्य देवी माद्री के सौंदर्य से कामासक्त हो, सुध-बुध खो बैठे। विदुषी माद्री ने पति पांडु का भरसक प्रयास प्रतिरोध किया। परंतु पांडु कामांध मैथुन में रत हुए ही थे कि श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई। माद्री शोकाकुल, पांडु के साथ सती हो गई। कुंती अंतत: पांच पुत्रों के लालन-पालन, पोषण-भरण के लिए हस्तिनापुर लौट गयी।