सतर्क होने का समय : समुदाय तक पहुंचा ओमिक्रॉन तो संभव नहीं हो पाएगी हर किसी की जीनोम सीक्वेंसिंग

देश में कोरोना की लड़ाई खत्म नहीं हुई है। हम पिछले साल के हालात की ओर बढ़ रहे हैं, जब आरटी पीसीआर जांच के लिए रात-रात भर लैब में खड़े रहते थे। बीते तीन सप्ताह से 16-16 घंटे तक ड्यूटी चल रही रोजाना 100 से भी ज्यादा सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए आ रहे हैं।

लोग अभी भी समझ नहीं रहे हैं, जिसकी वजह से हमारी यह चुनौती और बढ़ भी रही है। इतना तो तय है कि ओमिक्रॉन अगर समुदाय तक पहुंचता है, तो हर किसी की जीनोम सीक्वेंसिंग कर पाना हमारे सिस्टम से बाहर है। यह कहना है देश की सबसे बड़ी पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) में कार्यरत वैज्ञानिकों का।

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नवंबर माह के आखिरी सप्ताह से ही रात-दिन जीनोम सीक्वेंसिंग में जुटे इन वैज्ञानिकों के पास न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि 12 राज्यों से सैंपल पहुंच रहे हैं और अंदर लैब में पीपीई किट पहनकर ये सैंपल एक -20 डिग्री बॉक्स से बाहर निकालते हैं और उसकी सीक्वेंसिंग शुरू करते हैं।

तीन सप्ताह में बढ़ा पांच गुना अधिक काम

वैज्ञानिकों का कहना है, बीते तीन सप्ताह में करीब पांच गुना काम बढ़ गया है। पहले 20 से 30 सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए प्रतिदिन आ रहे थे, अब किसी दिन यह संख्या 120 से भी अधिक हो रही है। महाराष्ट्र के अलावा गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व दिल्ली से भी सैंपल आ रहे हैं।

सैंपल तैयार करने में ही कई घंटे लगते हैं, फिर मशीन में सीक्वेंसिंग होती है, जिसे पिछले साल मार्च के महीने में ही खरीदा गया था।

प्राइवेट अस्पतालों की मांग, हमें भी मिले अनुमति

जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए सरकारी लैब सीमित हैं। ऐसे में प्राइवेट अस्पताल और डायग्नोस्टिक कंपनियां भी आरटी पीसीआर की तरह सीक्वेंसिंग के लिए अनुमति मांग रही हैं। न्यू बर्ग डायनोस्टिक्स के अध्यक्ष डॉ. जीएसके वेलू का कहना है, जेनेटिक जांच को लेकर भारत में काफी तेजी से काम हो रहा है। प्राइवेट कंपनियां खासा निवेश कर चुकी हैं। ऐसे में सरकार को इन्हें भी जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए अनुमति देनी चाहिए।

अब तक समुदाय में नहीं मिला

कोरोना वायरस के नए स्वरूप ओमिक्रॉन के जहां देश में लगातार नए मामले आ रहे हैं। वहीं अब तक यह वैरिएंट समुदाय में से किसी व्यक्ति में नहीं मिला है। यह कहना है नई दिल्ली स्थित आईजीआईबी के निदेशक डॉ. अनुराग अग्रवाल का। उन्होंने कहा, जो लोग विदेशों से भारत आए हैं या फिर उनके संपर्क में आए परिजन इत्यादि ही अब तक संक्रमित मिल रहे हैं।

डॉ. अग्रवाल ने कहा, नया वैरिएंट निचले स्तर पर प्रसारित हो सकता है, लेकिन अब भी विज्ञान के क्षेत्र में ओमिक्रॉन को लेकर साक्ष्य काफी कम हैं। हमें थोड़ा और इंतजार करना होगा लेकिन तब तक के लिए यह कहा जा सकता है कि लोगों को सतर्कता की जरूरत है।

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