प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से बचने बनाया बर्तन बैंक

रायपुर : पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते है। वह सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते है। इसको बचाने की छोटी सी छोटी पहल भी धरती को स्वर्ग बना सकता है। ऐसी ही एक कोशिश महासमुंद जिले की स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने की है।

उन्होंने प्लास्टिक से बने बर्तनों से होने वाले दुष्परिणामों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के साथ ही बर्तन बैंक की शुरूआत की है। इस बैंक के माध्यम से वे स्टील से बने बर्तनों को शादियों और दूसरे कार्यक्रमों में उपयोग के लिए कम कीमतों पर किराए पर दे रहे हैं।

इसे भी पढ़े:छत्तीसगढ़ मनवा कुर्मी समाज के पूर्व केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ. रामकुमार सिरमौर का निधन, कल पैतृक ग्राम में होगा अंतिम संस्कार

महासमुंद जिले की गाँव रायतुम के कृष्णा विकास स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष रेश्मा साहू ने बताया कि शादी के कार्यक्रम में अवसर पर लोगों को प्लास्टिक एवं थर्माकोल से बने ग्लास और थालियां इस्तेमाल करते हुए देखते थे। जिसके बाद उन्होंने प्लास्टिक का उपयोग न हो इसके विकल्प के तौर पर स्टील के बर्तन जमा कर बर्तन बैंक बनाया है।

इसे भी पढ़े:मुख्यमंत्री बघेल के पिता नंद कुमार बघेल की तबीयत बिगड़ी, हेलीकॉप्टर से लाया जा रहा रायपुर

बिहान योजना

इसकी शुरूआत लगभग 2 वर्ष पहले बिहान योजना से जुड़ने के बाद 12 हजार रुपए की लागत से की। बर्तन खरीद कर, कम किराए पर लोगों को दिया जा रहा हैं। इसके कारण आसपास के लोग धीरे-धीरे प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल करना छोड़ रहे है।

जब भी किसी के यहां जन्मदिन, किटी पार्टी सहित धार्मिक व सामाजिक आयोजन होते हैं, तो लोग बर्तन बैंक से स्टील की थालियां, गिलास, चम्मच, कटोरियां सहित अन्य बर्तन ले जाते हैं। आयोजन के बाद बर्तनों को साफ कराकर बर्तन बैंक में जमा कर देते हैं। यदि कोई बर्तन खो जाता है तो संबंधित से उसका चार्ज लिया जाता है, ताकि जरूरत के मुताबिक दूसरा बर्तन खरीदा जा सके। गाँव भी प्लास्टिक मुक्त बन रहा है। साहू ने बताया की उनके समूह मे 8 महिलाएं है।

 इसे भी पढ़े:मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 20 नवम्बर को नई दिल्ली में ग्रहण करेंगे राष्ट्रपति से स्वच्छता अवार्ड

कोरोनाकाल के दौरान कार्यक्रम का आयोजन कम होने से उम्मीद के मुताबिक लाभ नहीं हुआ। लेकिन अब कोरोना की रफ्तार धीमी पड़ने से उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है। अब 5-6 हज़ार रुपए की आमदनी हर माह हो जाती है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा वे मशरूम, अगरबत्ती, मुरकू, बड़ी, पापड़, अचार के साथ सेनेटरी पेड आदि जरुरत की सामग्री बनाती है। जिसकी अच्छी बिक्री स्थानीय और हाट बाजार में हो जाती है।

Back to top button
error: Content is protected !!