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धनतेरस मंगलवार 2 नवम्बर 2021 : भगवान विष्णु के बारहवें अवतार धन्वन्तरी, धनतेरस पर क्या खरीदने की हैं परंपरा, पढ़ें पूरी कथा

धनतेरस मंगलवार 2 नवम्बर 2021 : धन तेरस, भगवान विष्णु के बारहवें अवतार भगवान धन्वन्तरी का हैं। धनवंतरि (विष्णु जी के 12 वे अवतार अंश, चिकित्सा प्रवर्तक)। मंत्र : निरोग्यता मन्त्र, प्रिय धातु पीतल है। इसीलिये धनतेरस को पीतल खरीदने की परंपरा हैं। मुहूर्त वृषभ काल – 06:25 से 08:23 ।

शहरों में धनत्रयोदशी मुहूर्त : संध्याकालीन

  • वृषभ काल – 06:25 से 08:23
  • 06:25-18:14 -भोपाल।
  •  06:47 से 08:32 – पुणे।
  •  06:17 से 08:11 – नई दिल्ली।
  •  06:29 से 08:10 – चेन्नई।
  •  06:25 से 08:18 – जयपुर।
  •  06:30 से 08:14 – हैदराबाद।
  •  06:18 से 08:12 – गुरुग्राम।
  • 06:14 से 08:09 – चण्डीगढ़।
  •  05:42 से 07:31 – कोलकाता।
  •  06:50 से 08:36 – मुम्बई।
  •  06:40 से 08:21 – बेंगलूरु।
  •  06:45 से 08:34 – अहमदाबाद।
  •  06:16 से 08:10 – नोएडा

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पौराणिक कथा के अनुसार :  

समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए| उनके प्रकट होने के ही उपलक्ष में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।

धन्वन्तरी कथा

हरिवंश पुराण (साभार) धनवंतरि के अवतीर्ण होने पर भगवान नारायण ने साक्षात दर्शन देकर उनसे कहा,‘तुम अप अर्थात जल से उत्पन्न हो, इसलिए तुम्हारा नाम होगा अब्ज।’ इस पर अब्ज धनवंतरि ने कहा, ‘प्रभु आप मेरे लिए यज्ञ भाग की व्यवस्था कीजिए और लोक में कोई स्थान दीजिए।’ भगवान बोले,‘तुम देवताओं के बाद उत्पन्न हुए हो, इसलिए यज्ञ भाग के अधिकारी नहीं हो सकते। किंतु अगले जन्म में मातृ गर्भ में ही तुम्हें आणिमादि संपूर्ण सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाएंगी। इंद्रियों सहित तुम्हारा शरीर जरा और विकारों से रहित रहेगा और तुम उसी शरीर से देवत्व को प्राप्त हो जाओगे। द्वापर युग में तुम काशीराज के वंश में उत्पन्न होकर अष्टांग आयुर्वेद का प्रचार करोगे।’ इतना कह कर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।

धन्वंतरि वैद्य भगवान की जन्म कथा

भगवान धन्वंतरि ‘धनतेरस’ के दिन जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण में उल्लेख है। देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए।

भगवान धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसा पूर्व के बीच अवतरित हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।

उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं।

मंत्र – 01

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये, अमृत कलश हस्ताय।
सर्वामय विनाशाय, त्रैलोक्य नाथाय महाविष्णवे नम:।।1।।

मंत्र – 02

ऊं नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधयेश्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी
स्वरूपश्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय स्वाहा
अर्थ- परमेश्वरविश्व पालन भगवान् , जिन्हें सुदर्शन, वासुदेव ,धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए, सर्व भय,नाशक, सर्व रोग नाश करते हैं। तीनों लोकों के स्वामी है और लोक निर्वाह करते हैं,उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

धन्वंतरि स्तो‍त्र :

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधद अमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यां शुक परिविलसन् मौलिमंभोजनेत्रम॥
काल उम्भोद उज्ज्वलम अंगम कटितटविलसच्चारू पीतांबर आढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

कथा एवं के मंत्र

एक समय भगवान विष्णु मृत्यलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे| लक्ष्मी जी ने भी उनके साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु जी ने लक्ष्मी से कहा जो बात मैं तुम्हे कहुँ अगर वो बात तुम मानोगी तो चलना मेरे साथ। लक्ष्मी जी ने उनकी बात स्वीकार कर ली और भगवान विष्णु के साथ भू मंडल आ गयी। कुछ देर बाद एक जगह जाकर भगवान विष्णु जी रुक गए।  और उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा की जब तक मैं ना आऊं तब तक तुम यहीं पर रहना। यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की और गए।

विष्णु जी के जाने बाद लक्ष्मी जी ने सोचा ,एसा क्या है, दक्षिण दिशा में जो मुझे मना किया आने के लिए? लक्ष्मी जी रहस्य जानने के लिए चुपचाप पीछे-पीछे चल पड़ी। कुछ ही दूर जा के सरसो के खेत में फूल दिखा ,उनने फूल तोड़ अपने बालों में लगा लिया। फिर उनको गन्ने का खेत दिखा, उन्होंने चार गन्ने तोड़े और गन्ने चूपने लगी। उसी समय विष्णु जी आये और क्रोधित हो के शाप देते हुए कहा” मैंने तुम्हे मना किया था और तुमने मेरी बात नहीं मानी और किसान के खेत में चोरी करने का अपराध किया। अब तुम इस किसान की १२ साल सेवा करोगी“

विष्णु भगवान उन्हें छोड़ के क्षीरसागर चले गए। किसान बहुत ही गरीब था। लक्ष्मी ने, किसान कि पत्नी से कहा अगर तुम स्नान करके मेरी बनाई गयी मूर्ति कि पूजा करोगी और फिर रसोई घर में प्रवेश करोगी तो तुम्हे जो तुम चाहोगी वही मिलेगा। किसान कि पत्नी ने निदेशों का पालन किया तो – किसान का घर धन,अन्न रत्न,स्वर्ण से भर गया| लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया।किसान के 12 साल बहुत ख़ुशी से अच्छे से बीत गए। 12 साल हो जाने पे लक्ष्मी जी को भगवान विष्णु लेने के लिए आ गए। किसान ने उन्होंने भेजने से इंकार कर दिया।

भगवान ने कहा की लक्ष्मी जी को कौन जाने देता है लेकिन यह तो चंचला है यह कहीं नहीं ठहरती। इनको मेरा शाप था इसलिए इन्होने 12 साल तुम्हरी सेवा की है। किसान नहीं माना वह कहने लगा नहीं मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। लक्ष्मी जी ने कहा अगर तुम मुझे नहीं जाने देना चाहते तो जो मैं कहूँगी तुम्हे वही करना होगा तो किसान ने उनकी बात मान ली| लक्ष्मी जी ने कहा की कल तेरस है तुम अपने घर को अच्छे से सफाई करके घर की लीप-लपाई करना| शाम को पूजन के बाद रात्रि को दीप जला के रखना और एक तांबे के कलश मै मेरे लिए रूपये भर के रखना। मै उस कलश में प्रवेश करुँगी और पूजा के समय तुम्हे दिखाई नहीं दूगी। इस दिन की पूजा के बाद पुरे एक वर्ष तक में तुम्हारे घर से नहीं जाऊगी। अगले दिन किसान ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार सब कुछ किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया| इसी कारन धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।

कथा – 02 

एक समय की बात है की भगवान विष्णु ने राजा बलि से देवताओ को मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था और उनसे भिक्षा मांगनी शुरू की। लेकिन को भगवान विष्णु की चाल का पता चल गया। गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को वामन बेष में आये भगवान विष्णु को भिक्षा देने से इंकार कर दिया। लेकिन राजा बलि ने ऐसा नहीं किया| राजा बलि ने वामन वेष में आये भगवान विष्णु को दान देने का संकल्प किया। भगवान विष्णु ने एक पग में सारी धरती और दूसरे पग में सारे आकाश को नाप दिया। तो राजा बलि ने उनसे आग्रह किया की वह अपना तीसरा पग उनके सिर पे रख दे ताकि उनका वचन पूरा हो सके। इस प्रकार भगवान विष्णु ने अपनी माया से राजा बलि का निर्धन कर दिया। उन्होंने फिर से देवताओ का यश और वैभव वापिस लौटाया। इस लिए इसी ख़ुशी में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।

  •  ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी कुबेराय मम गृह स्थिरो ह्रीं ॐ नमः
  •  ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये।
  •  धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
  •  ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥
  •  ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
  •  ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

भगवान धन्वंतरि की आरती 

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