दुर्गा प्रबोधन :आपत्ति विपत्ति आपदा दुर्गति आदि से रक्षा के लिए शक्ति स्वरूपा देवियों की स्थिति प्रार्थना की जाती है। प्रत्येक युग मे नवदुर्गा उपासना का प्रमुख स्थान रहा है।
- सतयुग में चैत्र शुक्ल पक्ष में नव दुर्गा की उपासना श्रेष्ठ मानी गई।
- त्रेता में आषाढ़ शुक्ल पक्ष में नवदुर्गा उपासना फलदाई रही।
- द्वापर में माघ शुक्ल पक्ष नव देवियों की उपासना का प्रचलन एवं प्रभाव रहा।
- कलियुग में अश्वनी शुक्ल पक्ष नवरात्र पूजा प्रमुख एवं महिमा कहीं गई है।
(संदर्भ ग्रंथ महाकाल संहिता)।
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उपरोक्त विवरण से एक बात उद्घाटित होती है कि नव दुर्गा की उपासना के लिए शुक्ल पक्ष को ही प्रमुख माना गया है। कृष्ण पक्ष में नवदुर्गा नवरात्र पूजा की महिमा का वर्णन दृष्टिगोचर नहीं होता है। वर्ष में चार बार नवरात्र अर्थात नव देवियां की स्तुति के अवसर आते हैं।
वर्ष में चार बार ऋतु के आधार पर व्रत निर्धारण एवं पूजा निर्धारण हैं :-
- शिशिर ऋतु माघ मास में नंदा देवी या भद्रकाली प्रमुख पूज्य है।
- चैत्र मास में वासंतिक नवरात्र कहलाते हैं। इसमें महालक्ष्मी, रक्त चामुंडा, भुवनेश्वरी देवी प्रमुख हैं।
- आषाढ़ मास में महासरस्वती, कौशिकी देवी प्रमुख हैं।
- शारदीय नवरात्रि में नवदुर्गा उपासना।
इस प्रकार वर्ष में चार अवसर पर शक्ति अर्थात नव देवियों की उपासना किए जाने के विधान प्रचलित हैं। शारदीय नवरात्र विशेष उल्लेखनीय एवं अन्य से समरूप नहीं है । इस समय सूर्य दक्षिणायन होते हैं ।वैदिक ग्रंथों के अनुसार शरद ऋतु में देवताओं की रात्रि होती है । इस अवधि में देवताओ का शयन काल है।
रात्रि एवं शयन काल के कारण देवता जागृत होने का प्रश्न नहीं है। इसलिए यह आवश्यक होता है कि आपात स्थिति में ही उनका प्रबोधन, उद्बोधन या जागृत या उनके जगाने का प्रयास प्रथम तह किया जावे। देवी के जाग जाने के पश्चात ही पूजा विधान करना उचित होता है । आकस्मिक रूप से किसी भी सोते हुए को उसके शयन समय मे उठाना पौराणिक वर्जना है। इस आधार पर देवताओं के लिए भी या शक्ति की आधार देवियों की “एकाएक स्तुति,प्रार्थना पूजा कर उनके शयन मे विघ्न” उपन्न करना अनुचित है। देवी को जगाना सामान्य रूप से उचित नहीं है। अतः शारदीय नवरात्रि के अवसर पर देवी के उद्बोधन के पश्चात ही पूजा चुनाव की जाना उचित कर्म है।
त्रेता युग के महापंडित रावण के लिए वध के लिए, भगवान श्री राम द्वारा ब्रह्मा जी को आचार्य नियुक्त किया गया था। ब्रह्मा जी ने भगवती देवी को उनके शयन काल में अकाल उठाया था। यह उल्लेख बाल्मीकि रामायण में प्राप्त होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी उल्लेख प्राप्त होता है कि समय-समय पर देवताओं द्वारा असुर एवं राक्षसों से अपनी सुरक्षा के लिए देवी भगवती को उनके चयन काल में आपदा उपस्थित होने पर आकस्मिक रूप से जगाया या प्रबोधित किया था।
देवी भगवती को भगवान राम द्वारा प्रबोधक ब्रह्मा जी के द्वारा करवाया गया था परंतु यह तिथि अश्वनी कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि साईं काल का समय था जबकि भद्रकाली कल्पनाएं उल्लेख है कि अश्वनी कृष्ण चतुर्दशी को देवी भगवती का प्रबोधन किया जावे इस वर्ष 5 अक्टूबर को देवी दुर्गा को उनके सनकाल से उद्बोधन या उनको जगाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
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देवी चामुंडा के दोनों और नागराज विद्यमान रहते हैं। नागराज के जागरण के लिए “ओम चामुंडायै विच्चे “मंत्र का जाप करना चाहिए। देवी को उठाने के लिए गीत संगीत वाद्य के साथ, प्रार्थना :-
रावणस्य बध अर्थाय रामस्य अनुग्रह च।
अकाले ब्रह्मणा बोधो देव्यास्त्वयि कृत्ता पुरा।
अहम् अपि अश्विने कृष्णे नवभ्यां बोध यामि अहम्।
मंत्रः- ‘‘ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति महोग्र चंडिके दुर्गे उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ निद्रां जहि जहि प्रति बुध्यस्व-बुध्यस्व मम शत्रून् हन् हन् पात्तय-पात्तय स्वाहा।‘‘
सुगंध, हल्दी, तैल दवी के शस्त्र या अंगों में लगाऐं। देवी के बांऐ हाथ में धागा बांधे। श्वेत सरसों आठों दिषाओं में फेंकर रक्षा मंत्र पढ़े।
“उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ देवी मम अभिरक्षय- अभिरक्षय पालय पालय, सर्व सुख सौभाग्यम देहि मे नम:।
“शिवा रूप “में उनकी अभय मुद्रा ,का ध्यान करते हुए देवी से उठने की प्रार्थना अपने कल्याण, सुरक्षा, प्रगति ,विजय के लिए करना चाहिए।
देवी को शयन से उठाने का मुहूर्त
5 अक्टूबर 11:48 से 12:32 बजे तक, 14:22 से 14:45 बजे तक का समय उपयुक्त है।
आलेख : पं. विजेंद्र कुमार तिवारी – ज्योतिषाचार्य