छत्तीसगढ़ में गोबर से बिजली बनाने की पहली रिपोर्ट: 250 किलो गोबर और 500 लीटर पानी से 12 घंटे तक 150 LED बल्ब जलाने लायक बनी बिजली

छत्तीसगढ़ में गोबर से बिजली बनने का ट्रायल कामयाब रहा, इसलिए अब भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (बार्क) की टेक्नोलॉजी प्रदेश में बड़ा प्रोजेक्ट लांच करने की तैयारी में है। राजधानी से सिर्फ 50 किमी दूर बनचरौदा गांव में 250 किलो गोबर और 500 लीटर पानी का इस्तेमाल करने के बाद 1 घंटे में लगभग 4000 वॉट बिजली बनी। इससे 150 एलईडी बल्ब 12 घंटे तक जल सकते हैं।

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भास्कर टीम ने इस तकनीक का ट्रायल उस जगह देखा, जहां अब तक गोबर से गैस बन रही थी, पहली बार बिजली बनी है। गोबर से बिजली बनने की पहली तस्वीर अपने पाठकों तक पहुंचाने के लिए भास्कर टीम बनचरौदा गांव पहुंची। यहां सरंपच कृष्ण साहू ने बताया कि गांव में 600 गाय हैं, जिनके गोबर से जैविक खाद बनाई जा रही है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत लगे सेटअप का इस्तेमाल बायोगैस बनाने में हो रहा था, लेकिन अब बिजली बन रही है।

राज्य सरकार की नोडल एजेंसी अल्टनेटिव टेक्नोलॉजिस कंपनी ने मौके पर बिजली बनाने का डेमोस्ट्रेशन दिया। मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने बताया कि गोबर गैस का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो सके, यही पहला कांसेप्ट था, लेकिन बायोगैस का ट्रांसपोर्टेशन आसान नहीं है, जबकि बिजली को एक जगह से दूसरी जगह भेजना काफी आसान है। इसलिए तय हुआ कि गोबर से अब बिजली बनाई जाएगी, जिसका सफल ट्रायल बनचरौदा में हो गया है।

इससे बढ़ेगा लघु उद्योग

गोधन योजना के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. एस. भारतीदासन ने बताया कि सरकार गोठानों में तैयार होने वाली बिजली के जरिए लघु और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना चाहती है। गोबर से बिजली बनने के बाद बचे गोबर से जैविक खाद तैयार की जा रही है। बिजली और जैविक खाद के जरिए ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिलेगा। राज्य में सरकार 6 हजार गांवों में गोठानों का निर्माण करवा रही है।

बार्क तकनीक का इस्तेमाल

गोबर से बिजली बनाने की टेक्नोलॉजी को जानने के लिए विशेषज्ञों का एक प्रतिनिधिमंडल भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) गया। वहां की टेक्नोलॉजी से राज्य में बिजली बनेगी। सरकार और बीएआरसी में जल्द अनुबंध भी हो सकता है।

3 गोठानों का हुआ चयन

गोबर से बिजली बनाने के लिए शुरू में बेमेतरा के ग्राम राखी, दुर्ग के सिकोला और रायपुर के बनचरौदा गोठान का चयन हुआ है। इनमें से बनचरौदा में 100 प्रतिशत सिस्टम स्थापित हो चुका है और बिजली बन रही है।

इस तरह बनाई जा रही है बिजली

1. 250 किलो गोबर और 500 लीटर पानी को एक टैंक में डाला जाता है। गोबर एक पैक फ्लोटिंग टैंक में भेज दिया जाता है।

2. बिजली बनाने के लिए शुद्ध मिथेन गैस की जरुरत पड़े, तो यह यह टैंक में फॉर्मालेशन से तैयार रहती है। इसे बलून में पहुंचाते हैं।

3. बलून से मीथेन गैस स्क्रबर में पहुंचती है। वहां जहां सल्फर, कार्बन डाइऑक्साइड और नमी को पृथक किया जाता है।

4. निर्धारित दबाव से गैस जनरेटर तक पहुंचती है और बिजली पैदा होने लगती है। इससे स्ट्रीट लाइट तक जलाया जा सकता है।

(जैसा निजी कंपनी के हेड शोहित सिंह, रवि राउत और विनोद सिंह बैस ने बताया)

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