गांधी जयंती विशेष: सत्याग्रह में शामिल होने 2 बार छत्तीसगढ़ आए थे बापू

रायपुर न्यूज: आज राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 152वीं जयंती है, लेकिन क्या आप जानते हैं, बापू का दो बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ था। पहली बार दिसंबर सन 1920 में तथा दूसरी बार नवम्बर सन 1933 में। पहला प्रवास जल सत्याग्रह के सम्बन्ध में हुआ और दूसरी बार उनका प्रवास तिलक कोष एवं स्वराज कोष हेतु था, तब उन्हें 501 रूपये की थैली भेंट की गई थी।

1 अगस्त 1920 को उस युग के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता, लोकमान्य की जन उपाधि से विभूषित बालगंगाधर तिलक का निधन हो गया। यद्यपि महात्मा गांधी की पहचान और भारतीय राजनीति में उनका महत्वपूर्ण स्थान पहले ही बन चुका था। किंतु तिलक जी के देहावसान के बाद वे न सिर्फ कांग्रेस के वरन् भारतीय राजनीति के भी केंद्र बिंदु बन गए। कांग्रेस की बागडोर महात्मा गांधी के हाथों में आ गई।

किसान कर रहे थे सत्याग्रह 

इस बीच धमतरी जिले के कंडेल ग्राम में किसानों का सत्याग्रह छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में चल रहा था। सत्याग्रह को पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. नारायणराव मेघावाले भी समर्थन कर रहे थे। सरकार के सिंचाई महकमे ने कंडेल के किसानों पर नहर से पानी चोरी करने का आरोप लगाया था। अगस्त का महीना था, भरपूर वर्षा हो रही थी। खेतों में पर्याप्त पानी था।

किसानों पर नहर से पानी चोरी करने का आरोप मिथ्या ही था। जबर्दस्ती सिंचाई कर वसूलने के लिए दमन की नीति अपनाई गई थी। आरोप निराधार थे इसलिए किसान भी टैक्स न देने पर अड़े थे। ऐन खेती-किसानी के दिनों में उनके पशु जब्त कर लिए गए 4030 रुपए का जुर्माना भी लगा दिया गया। दोनों ही पक्ष अडिग थे। अत: आंदोलन का नेतृत्व गांधीजी को सौंपने का निश्चय किया गया।

पं. सुंदरलाल शर्मा गांधी जी को लेने 2 दिसंबर को कलकत्ता गए। वे उन्हें लेकर 20 दिसंबर 1920 को रायपुर पहुंचे। प्लेटफार्म पर पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, सखाराम दूबे आदि ने उनका स्वागत किया। गांधीजी को रायपुर में बैरिस्टर ठक्कर के बंगले में ठहराया गया। गांधीजी के साथ खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता शौकत अली और मुहम्मद अली भी आए। अली बंधुओं की माता भी साथ थीं। शाम को महात्मा गांधी ने एक विराट आमसभा को संबोधित किया। वह स्थान रायपुर में आज गांधी चौक के नाम से प्रसिद्ध है।

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किसान विरोधी आदेश वापस हुआ

21 दिसंबर 1920 को गांधीजी आजाद चौक स्थित बालसमाज वाचनालय के सामने से अब्बासभाई की मोटर से धमतरी रवाना हुए। गांधीजी के आगमन की सूचना मिलते ही सिंचाई अधिकारियों के हाथ-पैर फूल गए और उन्होंने किसान विरोधी आदेश वापस ले लिया।

धमतरी से लौट कर महात्मा गांधी ने कंकालीपारा स्थित आनंदसमाज वाचनालय के बगल के मैदान में एक महती सभा को संबोधित किया। उस स्थान पर टेनिस कोर्ट था। जिस मंच से उन्होंने सभा को संबोधित किया था उस पर एक रात्रि पूर्व ही भीष्म पितामह नामक नाटक खेला गया था। नाटक में ब्राह्मणपारा के लोगों ने अभिनय किया था।

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स्वराज फंड के लिए राशि

सभा के पश्चात् गांधीजी के प्रति श्रद्धा रखने वालों ने मंच की एक-एक ईंट स्मृति चिन्ह स्वरूप अपने पास रख ली। देखते-देखते मंच का नामोनिशान भी शेष न रहा।  रायपुर और धमतरी प्रवास के दौरान महात्मा गांधी तिलक स्वराज फंड के लिए राशि एकत्र कर रहे थे। उन्हें नकद, स्वर्ण और चांदी के आभूषण दान स्वरूप प्राप्त हुए। गांधीजी ने कहा था – ‘मैं तो बनिया हूं, इन चीजों को नीलाम करूंगा’। नीलामी में वस्तुओं की वास्तविक कीमत से कहीं ज्यादा मूल्य की प्राप्ति हुई थी।

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