करवा करवा चौथ रविवार 24 अक्टूबर 2021 : महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और शाम को चंद्रमा दर्शन के उपरांत ही अपना व्रत तोड़ती हैं। भगवान गणेश और शिव पार्वती जी के साथ करवा माता की पूजा खासतौर से की जाती है।
करवा चौथ का इतिहास और कथा व्रत
देव और दानव के मध्य घमासान युद्ध हो रहा था। दानवों का पलड़ा भारी होता जा रहा था। भविष्य के प्रति आशंकित, दुखी, व्यग्र एवं शोक संतृप्त देवों की पत्नियां ब्रह्मा जी की शरण में गयी कातर विनम्र से याचना आग्रह किया ” हे सृष्टि के सृजक पिता। हमको भावी चिंता की आशंका के भय मुक्त करिये। हमारे पतियों को दीर्घायु एवं विजयी होने का उपाय बताइये ब्रह्मा जी द्वारा देवताओं की पत्नियों को देवताओं को दीर्घायु उनके जीवन की रक्षा के लिए के लिए चतुर्थी के इस व्रत पूजा का विधान बताया था। ब्रह्मा जी द्वारा निर्देशित विधि से, देवताओं की पत्नियों ने अपने पतियों के लिए निराहार, निर्जल व्रत किया।व्रत एवं पूजा के प्रभाव से युद्ध में सभी देव जिस दिन विजयी हुए, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आकाश में चंद्रमा निकल आया था।
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करक चतुर्थी व्रत विधान भगवान श्री कृष्ण द्वारा द्रोपदी को बताया गया महाभारत का प्रसंग है युधिष्ठिर पांसो के खेल में पराजित हुए, पांडव वनवास काल भोग रहे थे पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर गए। वनवास में अर्जुन की अनुपस्थिति में पांडवों पर संकट रोज ही आने लगे, अंततः द्रौपदी अपने एकमात्र श्रद्धेय सखा भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करती हैं भगवान श्रीकृष्ण से संकट से मुक्ति के लिए हमेशा की तरह उपाय पूछती हैं। भगवान श्री कृष्ण परामर्श देते है कि संकट एवं कष्टो से मुक्ति मिल सकती है। इसके लिए करवा चौथ का व्रत करना होगा। द्रोपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत करती है। इस व्रत के प्रभाव से नित नए आने वाले संकटो से मुक्त होकर उनके समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
करवा चौथ व्रत से मिलता हैं सुफल
- इंद्राणी ने इंद्र की आयु एवं सुरक्षा के लिए ब्रह्मा जी के परामर्श पर किया था।
- देवी पार्वती ने शिव जी को प्राप्त करने के लिए इस व्रत को किया था।
- गांधारी ने धृतराष्ट्र के लिए उनकी दीर्घायु के लिए किया था।
- कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था।
- द्रौपदी द्वारा पांडवों की रक्षा के लिए किया गया।
करवा चौथ की द्वितीय कथा
शाकप्रस्थपुर नगर में वेद धर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था, नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रमा का निकलना दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया, परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
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करवा चौथ की तृतीय कथा
एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया, स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया, वह मनुष्य करवा करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा ,उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई,मगर ने उसके पति के प्राण ले लिए। कार्वा ने मगर को बाँध दिया, मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी।
हे भगवन ! मगर ने मेरे पति का प्राण ले लिये आप मगर को दंड दीजिये , नरक में ले जाइए ,यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है , अतः इसे दंड स्वरूप मृत्यु या नरक नहीं दिया जा सकता । करवा बोली- अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं अपनी सतीत्व शक्ति से आप को श्राप दे दूँगी । अंततः सोच विचार कर यमराज ने उस पतिव्रता करवा की इच्छा के अनुसार मगर को यमपुरी भेज दिया ,करवा के पति को जीवन एवं दीर्घायु दी , हे करवा माता ! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की , वैसे मेरे पति की रक्षा करना ।
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करवा चौथ की चौथी कथा
पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए ,उनकी कोई खबर न मिलने पर द्रोपदी बहुत परेशान थीं ,द्रोपदी ने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की ,कृष्ण भगवान ने कहा , इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकर जी से किया था तब शंकरर्जी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी।
द्रोपदी ने गिज्ञासा वंश पूरा घटना क्रम जानना चाहा भगवान श्री कृष्ण ने बताया शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया, ब्राह्मण था उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी ,एक बार लड़की मायके में थी , तब करवा चौथ का व्रत पड़ा, उसने व्रत को विधिपूर्वक किया,पूरे दिन निर्जला रही,कुछ खाया – पीया नहीं , पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी , भूख लगी होगी पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी,भाइयों से न रहा गया , उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया,एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी।
तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी देखो बहन , चंद्रमा निकल आया है , पूजन कर भोजन ग्रहण करो ,बहन ने भोजन ग्रहण किया,भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई,अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी , तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं, उनसे उसका दुःख न देखा गया, ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा , तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा।
उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए , द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं कार्तिक माhह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को निराहार गणेश पूजन कर चंद्रमा को अर्धूर्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है । कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को निराहार गणेश , पूजन कर चंद्रमा को अघ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है, इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए, द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए , तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं|