03 नवम्बर –रूप चतुर्दशी ,यमदीप दान विधि एवं मन्त्र
रूप चतुर्दशी-स्नान मुहूर्त -05.35-06.01 सूर्योदय पूर्व ।
प्रदोष काल – 05:41 से 08:14 संध्या समय ।
यमराज की कथा:-
प्राचीन समय की बात है की एक बार यमराज ने अपने दूतो से पूछा कि प्राणियों के प्राण लाते समय तुम्हे कोई दुःख नहीं होता। तुम्हारे मन में दया भाव उतपन नहीं हुआ कि हमे प्राण नहीं लेने चाहिए ।तो वह कुछ समय सोच कर बोले नहीं महाराज ! हमे दया भाव से क्या मतलब।हम तो बस आपकी आज्ञा का पालन करने में लगे रहते है ।यमराज ने दुबारा पूछा तो उन्होंने बताया कि एक बार ऐसी घटना घटी कि जिसे सुनकर हमारा ह्रदय कांप उठा ।
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उन्होंने बताया कि एक बार एक राजकुमार के विवाह के चौथे दिन ही उसके प्राण लेन पड़े थे तो हमे दुःख हुआ था तो यमराज जी ने कहा पूरी बात बताओ तो दूत ने पूरी बात विस्तार से सुनाई, उन्होंने बताया कि एक बार हंस नाम का राजा खेलते खेलते पड़ोसी राज्य कि सीमा में पुहंच गया| भूखा प्यासा राजा हंस पड़ोसी राजा हेमराज के यही पुहंचा| हेमराज ने राजा हंस का बहुत स्वागत किया उसी दिन हेमराज के घर एक पुत्र का जन्म हुआ।
राजा हेमराज ने हंस के आने को शुभ माना ।और कुछ दिन उसको वही रहने का आग्रह दिया|पुत्र होने की ख़ुशी में जब ६ दिन बीत गए तो राजा ने एक पूजा करवाई जिस में कुछ विद्वान् पंडित भी शामिल थे ।जब पूजा चल रही थी तो कुछ विद्वानों पंडितो ने यह भविष्यबाणी की कि जब राजकुमार कि शादी होगी तब शादी के चौथे दिन ही उस राजकुमार कि मृत्यु हो जायगी । यह सुन कर सभी लोग बहुत दुखी हुए ।यह सुनकर राजा हंस ने हेमराज को राजकुमार कि रक्षा का वचन दिया| उसने राजकुमार के रहने कि विवस्था यमुना के तट पर की ।
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वह यमुना तट की गुफा में ही बड़ा हुआ| एक दिन सयोग से ही महाराजा हंस की बेटी युमना तट के आस-पास घूम रही थी ।उसने राजकुमार को देखा तो वह उसपर मोहित हो गयी| उनकी बात हेमराज को पता चली तो उसने अपने पुत्र का विवाह राज कुमारी से कर दिया । विवाह के चौथे दिन ही राजकुमार मर गया| उसको अपने प्राण हरने पड़े| अपने पति की मृत्यु देख वो नवविवाहिता बिलख-बिलख कर रोने लगी ।
उसका करुण-विलाप सुनकर हमारा हिरदय कांप उठा ।हमने जीवन में कभी ऐसी जोड़ी नहीं देखी थी ।उसके प्राण लाते समय हम अपने आंसुओं को नहीं रोक सके,यह सुनकर फिर यमराज ने कहा की क्या करे हमे विधि के विधांता का पालन करना ही होता है| हमे विधि के विधान अनुसार उसकी मर्यादा निभाकर ऐसे कार्य करने ही होते है ।तो एक यमदूत ने बड़ी उतसक्तापूर्वक यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है कि अकाल मृत्यु से बचा जा सके ।
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इस पर यमराज ने बताया कि हां उपाय तो है । उन्होंने बताया कि धनतेरस के दिन यमुना में स्नान करके यमराज और धन्वंतरि का पूजन दर्शन पूरी विधि विधान्तो के अनुसार करे और सध्या समय दीपक भी जगाये और हो सके तो यह व्रत भी रखे । जिस घर में यह पूजन होगा उस घर में कोई भी अकाल मृत्यु नहीं होगी ।
यम-दीपदान सरल विधि:
यम दीप दान प्रदोष काल में करना चाहिए ।
1-गेहूं के आटे से बनाये एक दीपक , इसके प्रज्वलित होने पर अपमृत्यु को शांत करने की क्षमता तरंगे प्रवाहित होती है ,रुई की दो लम्बी बत्तियॉं बना कर उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें।
2- सर्वप्रथम किसी साफ चौकी पर रोली से स्वास्तिक बनाए व उस स्थान पर आटे या मिट्टी का बना चौमुखी दीपक रखें। तिल के तेल से दीप भर कर काले तिल दीपक के चारो ओर 3 बार गंगा जल से आचवन करें व दीपक पर रोली से टीका लगाए ।अब दीपक पर चावल और पुष्प चढ़ाए व दीपक में थोड़ी से चीनी डाले। कुछ दाल दे ।यह पितृ दोष,काल सर्प,राहू दोष शमन करेगा । प्रदोषकाल में दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें।
3-घर के मुख्य दरवाजे के बाहर गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर खीले एवं उस पर एक दीपक इसे रखे की दीपक की वर्तिका दक्षिण दिसः में हो | दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम की है )
ॐ यमदेवाय नमः ।
यम दीपदान का मन्त्र :
मृत्युना पाश दण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीप दानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ।।
अर्थ – धनत्रयोदशी पर्व यह दीप मैं सूर्य पुत्र यम देव को को अर्पित करता हूं। मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।
कब कब करना चाहिए दीपदान?
1. सभी स्नान पर्व और व्रत के समय दीपदान करते हैं।
2. नरकचतुर्दशी और यम द्वितीया के दिन दीपदान करते हैं।
3. दीपवली, अमावस्या या पूर्णिमा के दिन करते हैं दीपदान।
4. दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।
5. पद्मपुराण के उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पांच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं।
कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च।
पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्।
अर्थात कृष्णपक्ष में रमा एकादशी से दीपावली तक 5 दिन बड़े पवित्र है। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।
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दीपदान करने के लाभ :
स्कन्द,भविष्य पूरण एवं साभार संकलित-
1. अकाल मृत्यु से बचने के लिए करते हैं दीपदान।
2. अपने मृतकों की सद्गति के लिए करते हैं दीपदान।
3. लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु को प्रसन्न कर उनकी कृपा हेतु करते हैं दीपदान।
5. यम, शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव से बचने के लिए करते हैं दीपदान।
6. सभी तरह के अला-बला, गृहकलह और संकटों से बचने के लिए करते हैं दीपदान।
7. जीवन से अंधकार मिटे और उजाला आए इसीलिए करते हैं दीपदान।
8. मोक्ष प्राप्ति के लिए करते हैं दीपदान।
9. किसी भी तरह की पूजा या मांगलिक कार्य की सफलता हेतु करते हैं दीपदान।
10. घर में धन समृद्धि बनी रहे इसीलिए भी कहते हैं दीपदान।
11. कार्तिक माह में भगवान विष्णु या उनके अवतारों के समक्ष दीपदान करने से समस्त यज्ञों, तीर्थों और दानों का फल प्राप्त होता है।