ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा ।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु॥
सिद्धांत सार ग्रन्थ- स्वस्तिक ब्रह्माण्ड का प्रतीक।
ऋग्वेद-सूर्य का प्रतिक ।
वायवी संहिता-आठ योहिक असं में एक का प्रतीक ।
स्वस्तिक-विष्णु जी का सुदर्शन चक्र ।
इसका मध्य भाग विष्णु जी नाभि ।
स्वास्तिक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के सु उपसर्ग और अस धातु को मिलाकर हुई है। सु का अर्थ है श्रेष्ठ या मंगल, वहीं अस का अर्थ है सत्ता या अस्तित्व स्वास्तिक नाम संस्कृत शब्द स्वास्तिका से बना है जिसका अर्थ होता है– सु + अस + क से बना है। सु का अर्थ अच्छा, अस का अर्थ सत्ता या अस्तित्व और क का अर्थ कर्ता या करने वाले से है। इस प्रकार स्वास्तिक शब्द का अर्थ अच्छा या मंगल करने वाला है। अमरकोश में स्वास्तिष्क का अर्थ आशीर्वाद, मंगल या पुण्यकार्य करना लिखा है।
अमरकोश के शब्द स्वास्तिक सर्वतोऋद्व अर्थात् सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। श्रेष्ठ विजय के अर्ह के रूप में प्रयुक्त स्वास्तिक का चिह्न आर्य युग और सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुराना है।
2. स्वास्तिक अपनी शुभता की वजह से जाना जाता है और यह शांति एवं निरंतरता का प्रतीक है।
आकृति– 04 समबाहु कटान वाला, जिसमें चार भुजाएं 90 डिग्री पर मुड़े होते हैं।
सनातन तंत्र / धर्म – दक्षिणमुखी स्वास्तिक विष्णु का प्रतीक है।वाममुखी स्वास्तिक काली देवी संहारक शक्ति का प्रतीक ।
रंग – लाल और पीले रंग के स्वास्तिक श्रेष्ठ होते हैं ।
जहां-जहां वास्तु दोष हो वहां घर के मुख्य द्वार पर लाल रंग का स्वास्तिक बनायें
निर्माण–विज्ञानं प्रभाव आंकलन – स्वास्तिक का वैज्ञानिक महत्व स्वास्तिक सही तरीके से निर्मित होने पर सकारात्मक उर्जा निकलती है.
प्राचीन कालिक प्रमाण-
शुभ या मांगलिक वस्तु यह 12000 वर्ष से अधिक प्राचीन । स्वस्तिक चिन्ह पुरापाषाण काल की सभ्यता की देन है।
भारत
1,सभ्यता प्रमाण– हजारों वर्ष पूर्वसे प्रचलित स्वस्तिक चिन्ह का प्रमाण सिन्धु घाटी सभ्यता, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा, अशोक के शिलालेख है ,मौर्य साम्राज्य में स्वास्तिक का महत्व, बौद्ध धर्म स्वास्तिक
2,गुफाएं प्रमाण – उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा स्वस्तिक चिन्ह का प्रमाण हैं।
3,ग्रन्थ प्रमाण – ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक सूर्य का प्रतीक है,चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र कहागया है। रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में उल्लेख है।
विदेश-
1- यूरोप में सेल्ट सभ्यता
( जर्मनी से इंग्लैंड तक ) सूर्यदेव का प्रतीक एवं चार ऋतुओं का प्रतिक मानती थी।
2- विदेश सैन्य शक्ति में प्रमाण-
थाईलैंड में “स्वाद्दी” – अर्थ है ” नमस्ते (Hello)” ,संस्कृत शब्द “स्वास्ति” से बना है, जिसका अर्थ है शब्दों का संयोजन यानि समृद्धि, भाग्य, सुरक्षा,
जैन धर्म में स्वास्तिक सातवें तीर्थंकर का प्रतीक और अधिक महत्वपूर्ण है।
चीन, जापान और कोरिया में हमनाम (homonym) अर्थात स्वास्तिक ,सूर्य के प्रतीक के स्वरूप में मान्य एवं अर्थ संख्या– 10,000 । संपूर्ण सृजन के लिए प्रयुक्त होता है ।
ईसाई धर्म में ईसाई क्रॉस के अंकुशाकार संस्करण (hooked version) स्वास्तिक का प्रयोग है जो प्रभु ईसा मसीह की म्रत्यु पर विजय का प्रतीक है।
पश्चिमी अफ्रीका स्वास्तिक – अशांति स्वर्ण वजन (Ashanti gold weights) पर और अदिंकरा प्रतीकों (adinkra symbols) पर पाए हैं।
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इथोपिया प्राचीन चर्च में स्वास्तिक चिन्ह मिला
ग्रीक गणितज्ञ और वैज्ञानिक पाइथागोरस नेभी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग किया है।
फिनिश वायुसेना ने स्वास्तिक का प्रयोग राज्य– चिन्ह के तौर पर किया जिसकी शुरुआत 1918 में हुई थी।
रोम सुरंगों में भी स्वास्तिक चिन्ह पाया गया ,स्वास्तिक के पास zotica zotica लिखा मिला अर्थात “जीवन का जीवन”।
जर्मन उल्टा स्वस्तिक , अमेरिका पीला स्वस्तिक ध्वज प्रयुक्त हुआ ।
प्राचीन इराक (मेसोपोटेमिया)में विजय का सैन्य प्रतीक मान कर प्रयुक्त हुआ ।
उक्रेन की गुफाओं स्वस्तिक चिन्ह का प्रमाण ,दक्षिणी यूरोप में 8000 वर्ष पूर्व की सभ्यता में मिला ।
उत्तर-पश्चिमी बुल्गारिया के व्रात्स (vratsa) नगर के संग्रहालय में 7,000 वर्ष प्राचीन मिट्टी की कलाकृतियों पर स्वस्तिक का चिह्न प्राप्त हुआ है।
फारक के पारसी घर्म (Zoroastrian religion of Persia) में घूमता हुआ सूर्य , अनंत ,अनवरत और निरंतर सृजन का प्रतीक था।इसके अतिरिक्त जापान ,यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस, स्कैण्डिनेविया, सिसली आदि देशो के लिए भी अपरचित नहीं ।
मध्य एशिया में शुभ,मंगल सौभाग्य का प्रतीक मान्य कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है।
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स्वस्तिक मंगल चिन्ह के रूप में पूज्य –
धन, गृह शांति, रोग निवारण, वास्तु दोष निवारण,विश्व में मंगल चिन्ह के रूप में विख्यात ।भारत में प्रचलित नाम ‘साथिया’ या ‘सातिया’ है। विश्व में भाषा के अनुसार मिस्त्र ‘एक्टन’ , नेपाल में ‘हेरंब’नाम ,बर्मा में ‘प्रियेन्ने’ नाम प्रचलित है ।
वास्तुदोष
घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाया जाए ,द्वार के ठीक ऊपर मध्य में तांबे का स्वास्तिक लगाया जाए ,
स्वास्तिक के चिह्न की उत्पत्ति आर्यों द्वारा मानी जाती है. धार्मिक के साथ स्वास्तिका का वास्तु में भी विशेष महत्व माना जाता है. आइए जानते हैं घर में किन जगहों पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए.
स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है. इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है. स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है. ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है. इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला. स्वास्तिक को गणेश जी का प्रतीक माना जाता है. स्वास्तिक के चिह्न की उत्पत्ति आर्यों द्वारा मानी जाती है.
वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की दोनों ओर की दिवारों पर स्वास्ति चिह्न बनाने के बारे में बताया गया है. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.– वास्तु शास्त्र के मुताबिक, आंगन के बीचो-बीच मांडने के रूप में स्वस्तिक बनाना भी शुभ रहता है. पितृपक्ष में घर के आंगन में गोबर से स्वास्तिक बनाने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है. जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है.भगवान के मंदिर में स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उसके ऊपर देवताओं का मूर्ति स्थापित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. जहां पर आप अपने घर में भगवान की पूजा आराधना करते हैं.रिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस, स्कैण्डिनेविया, सिसली आदि देशो के लिए भी अपरचित नहीं ।
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स्वस्तिक मंगल चिन्ह के रूप में पूज्य –
धन, गृह शांति, रोग निवारण, वास्तु दोष निवारण,विश्व में मंगल चिन्ह के रूप में विख्यात । भारत में प्रचलित नाम ‘साथिया’ या ‘सातिया’ है। विश्व में भाषा के अनुसार मिस्त्र ‘एक्टन’ , नेपाल में ‘हेरंब’नाम ,बर्मा में ‘प्रियेन्ने’ नाम प्रचलित है ।
वास्तुदोष :
घर के मुख्य द्वार पर दोनों ओर अष्ट धातु का स्वास्तिक लगाया जाए ।द्वार के ठीक ऊपर मध्य में तांबे का स्वास्तिक लगाया जाए ।स्वास्तिक के चिह्न की उत्पत्ति आर्यों द्वारा मानी जाती है. धार्मिक के साथ स्वास्तिका का वास्तु में भी विशेष महत्व माना जाता है. आइए जानते हैं घर में किन जगहों पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए.
किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है. स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है. ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है. इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला. स्वास्तिक को गणेश जी का प्रतीक माना जाता है. स्वास्तिक के चिह्न की उत्पत्ति आर्यों द्वारा मानी जाती है.
वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की दोनों ओर की दिवारों पर स्वास्ति चिह्न बनाने के बारे में बताया गया है.
इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है,वास्तु शास्त्र के मुताबिक, आंगन के बीचो-बीच मांडने के रूप में स्वस्तिक बनाना भी शुभ रहता है. पितृपक्ष में घर के आंगन में गोबर से स्वास्तिक बनाने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है. जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है. भगवान के मंदिर में स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उसके ऊपर देवताओं का मूर्ति स्थापित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है,जहां पर आप अपने घर में भगवान की पूजा आराधना करते हैं।तिजोरी में स्वास्तिक का चिह्न बनाने से समृद्धि बनी रहती है. मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. जिससे घर में किसी प्रकार से धन की कमी नहीं रहती है.
प्रतिदिन प्रातः
जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करने के पश्चात धूप दिखाकर भगवान की पूजा करें,उसके बाद देहली की पूजा करते समय दोनों ओर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं. स्वास्तिक के ऊपर चावल की ढेरी रखें. इससे घर में मां लक्ष्मी वास करती हैं,उत्तर-पूर्व में उत्तर दिशा की दीवार में हल्दी से स्वस्तिक बनाएं, अगर आपको खूब पैसा कमाना है तो आपको घर की उत्तर की दिशा में बनी दीवार पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए। इससे आपको कभी भी पैसे की कमी नहीं होगी।आपको घर की दक्षिण दिशा में बनी दीवार पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए। इससे आपके घर में खुशियां ही खुशियां बिखर जाएंगी।
व्यवसाय :
आपको तिजोरी पर लाल रंग की रोली से स्वास्तिक बनाना चाहिए, आपको उत्तर पूर्व दिशा में यह चिन्ह बनाना चाहिए , बिजनेस -अपने घर की वेस्ट दिशा में बनी दीवार पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए, इससे आपको बिजनेस में बहुत लाभ मिलेगा।
पढ़ने वाले बच्चे हैं तो आपकेा सफेद रंग के कागज पर स्वास्तिक बना कर उसे बच्चों के पढ़ाई वाले स्थान पर रख दे। स्वस्ति मन्त्र का पाठ – ‘स्वस्तिवाचन’ है।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है, ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।
घर की इन जगहों पर बनाएं स्वास्तिक,
यथा : स्वस्ति मित्रावरूणा स्वस्ति पथ्ये रेवंति।-
स्वस्तिन इन्द्रश्चग्निश्च स्वस्तिनो अदिते कृषि।।
इसमें भी मित्र का अर्थ अनुराधा से लिया गया है, इसी प्रकार पूर्वाषाढ़ा का स्वामी वरूण है। रेवती एवं ज्येष्ठा का इन्द्र, कृत्तिका, विशाखा अग्नि और पुनर्वसु नक्षत्र का स्वामी अदिति है। रेवती से आठवां पुनर्वसु। पुनर्वसु से आठवां चित्रा, चित्रा से सातवां पू.षा. और पू.षा. से आठवां रेवती है।
अर्थात उपरोक्त ऋचा में रेवती गणना क्रम से आता है। स्वस्तिक के चिह्न से संबंधित अन्य ऋचायें वेदों में वर्णित हैं। स्वस्तिक के मध्य में जो शून्य बिंदु रख दिये जाते हैं वे अनंत ब्रह्माण्ड में अन्य तारा समूहों का संकेत करते हैं।
शान्ति हि एव शान्तिहि सा मा शान्ति हि- ऐधि॥
यतो यतह समिहसे ततो न अभयम् कुरु।
शम् नह कुरु प्रजाभ्योअभयम् नह पशुभ्यहा॥
सुशान्तिहि भवतु ।
श्रीमन् महागण अधिपतये नमह।
लक्ष्मी-नारायणाभ्याम् नमह।
उमामहेश्वराभ्याम् नमह।
मातृ पितृ चरण कमलैभ्यो नमह।
इष्ट-देवताभ्यो नमह। कुलदेवताभ्यो नमह।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमह। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमह।सुमुखह एक-दन्तह च। कपिलो गज-कर्णकह।
लम्बोदरह-च विकटो विघ्ननाशो विनायकह॥1॥
धूम्रकेतुहु-गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननह।
द्वादश-एतानि नामानि यह पठेत् श्रृणुयात-अपि॥2॥
विद्या-आरम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे च-एव विघ्न-ह-तस्य न जायते॥3॥वक्रतुण्ड महाकाय कोटि-सूर्य-समप्रभ।
निर-विघ्नम् कुरु मे देव सर्व-कार्येषु सर्वदा॥4॥
संकल्प :
(दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले )
‘ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद