शारदीय नवरात्री : लाल वस्त्र धारण करके लाल आसन पर बैठे और अपना मुख उत्तर की ओर और यंत्र के साथ देवी की फोटो पाटे पर स्थापित करें। देवी का मुख पश्चिम दिशा की ओर हो। एक लाल फूल एवं अक्षत लेकर वंदना करते हुए अर्पित करें।
गुं गुरुभ्यो नमःl गं गणेशाय नमःl
ऊँ महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमःl
फिर गुरु स्तुति करें :- अखंड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्l तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमःl
निम्न मंत्रों से भस्म को जल में घोलकर मस्तक पर लगाये :
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्द्धनम्l उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतातl
रुद्राक्ष की माला गले में धारण करें।
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फिर निम्न मंत्रों से आचमन करें :-
(कलाई के अंतिम एवं हथेली के प्रारंभ के भाग से “मणिबंध”)से जल पिए
ऐं ह्रीं क्लीं आत्मतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं विद्यातत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि स्वाहा l
शिखा बंधन करें|
हाथ में जल लेकर ये मंत्र बोलकर जल गिरा दें यंत्र के सामने
”अद्येत्यादि ममाशेष दुरित क्षयपूर्व कर्मभीष्ट फल प्राप्तयर्थं श्री त्रिशक्ति चामुण्डा प्रीतये साधनां करिष्ये”
3 बार सिर के ऊपर जल छिड़के
बायें पाँव को ३ बार पटकते हुए ”ऊँ श्लीं पशु हुं फट्” का वाचन करें।
कलश पर अपना हाथ रखकर ”अमृत मालिन्यै स्वाहा” ३ बार।
पूजा के फ़ूलों पर जल छिड़कते हुए –
”ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पकेतु राजार्हते शताय सम्यक् समन्धाय
ऐं ह्रीं क्लीं पुष्पे पुष्पे महापुष्पे सुपुष्पे पुष्पभूषिते पुष्पचया वकीर्णे हूँ फट् स्वाहा ”
‘यादेवि सर्वभूतेषु”दुर्गा सप्तशती के पुस्तक वाली पूरी स्तुति से||
ध्यान के बाद 9 बार ” नमश्चण्डिकायै ”बोंले
निम्न मंत्र पढ़ते हुए लाल पुष्प की पंखुड़ियाँ यंत्र के समीप अर्पित करें।
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” ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शाप नाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा l ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृत संजीवनि विद्ये मृतमुत्थाप योत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा l ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठंl ”
शाप विमोचन स्तोत्र का पाठ करें
यंत्र के दायें, बायें और ऊपर क्रमशः जल अर्पित करें||
”ऐं ह्रीं क्लीं भं भद्रकाल्यै नमः द्वारस्य दक्ष शाखायां l
ऐं ह्रीं क्लीं भं भैरवाय नमः द्वारस्य वाम शाखायां l
ऐं ह्रीं क्लीं लं लंबोदराय नमः द्वारस्य ऊर्ध्व शाखायां l वास्तु पुरुषाय नमः
ईशान (उत्तर-पूर्व ) दिशा में कुंकुम से त्रिकोण बनाकर |घी दीपक स्थापित करें।
दीपक का पुजन| ” ऐं ह्रीं क्लीं रक्तवर्ण द्वादश शक्ति सहिताय दीपनाथाय नमः
”ऊँ जयध्वनि मंत्र मातः स्वाहा”घंटा बजाये
भैरव प्रार्थना :
”तीक्ष्णदन्त महाकाय कल्पान्त दहनोपमl भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि ”” ऊँ रक्ष रक्ष हुं फट् ”मंत्र से भूमि पर जल गिराये। आसन के नीचे त्रिकोण का निर्माण करके त्रिकोण के मध्य जल से ” ह्रीं ”लिखें।
”ऐं ह्रीं क्लीं आधारशक्त्यै नमः” कह कर प्रणाम कर लें
अब ” गं गणपतये नमः , सं सरस्वत्यै नमः , दुं दुर्गायै नमः , क्षं क्षेत्रपालाय नमः ” ||कहकर भी समस्त देवताओं को प्रणाम करें
अब आसन को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र बोलें…|| ” ऊँ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता l त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्” अब दायें हाथ के तर्जनी- अंगुठे को मिलाकर चारों दिशा में घुमायें ” ऊँ नमः सुर्दशनाय अस्त्र फट् ” मंत्र बोलकर|
दायें हाथ में जल, पुष्प आदि लेकर संकल्प करें।
”ऊँ तत्सत् अद्य विष्णोः आज्ञया पर्वतमानस्य भरत खण्डे अस्मिन् प्रदेशान्तर्गते अस्मिन् पुण्य स्थाने शुभ पुण्य तिथौ …||(अपना नाम )||अहं श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रसाद सिद्धिद्वारा मम सर्वाभीष्ट सिध्यर्थं श्री सद्गुरुदेव सान्निध्ये नवार्ण मंत्र साधनाहं करिष्ये|
ऐसा संकल्प करके जल को यंत्र पर छोड़ दें। योनि मुद्रा को प्रदर्शित कर के गुरु आदि को प्रणाम करें।
अब हृदय पर दोनों हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का ध्यान करें : ” ऊँ शूलं कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम्” अब हृदय पर दायाँ हाथ रखकर त्रिशक्ति माँ चण्डी का हृदय में प्राण प्रतिष्ठा :
”ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं मम प्राणाः इह प्राणाः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम जीव इह जीवः स्थितः l
ह्रीं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं सोहं हंसः मम सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि l ”
अब ३ बार ” ह्रीं ”प्राणायाम करें
भूतशुद्धि शरीर के संमस्त 7 चक्र जागृत होते हैं
”मूलाधार स्थितां स्वेष्ट देवी रुपां विसतन्तु निभां विद्युत प्रभापुंज भासुरां कुण्डलिनीं ध्यात्वा, उत्थाय हृत्कमले संगतां सुषुम्णा वर्त्मना, प्रदीपकलिका कारां जीवकला मादाय , ब्रह्मरन्ध्र गतां स्मरेत्l
ऊँ हंसः सोहं इति मंत्रेण जीव ब्रह्मणि संयोज्य तत्स्थान स्थित भूतानि प्रविलापयेत्l
ऊँ भुवं जले प्रविलापयामि जलं अग्नौ, अग्निं वायौ, वायुम् आकाशे,
आकाशं अहंकारे, अहंकारं महत्ततत्त्वे , महत्ततत्त्वं प्रकृतौ,
प्रकृतिं आत्मनि, आत्मानं च शुद्ध सच्चिदानन्द रुपोहमिति भावयेत् l
ततः पाप पुरुषं विचिन्त्य, वाम नासया यं बीजेन षोडश वारमापूर्य रं
बीजेन चतुःषष्ठि वारं कुभयित्वा, पुनः यं बीजेन द्वात्रिंशद् वारं रेचकेन
भस्मीभूतं पापपुरुषं बहिः निस्सार्य,
पुनः षोडशवारं वायुमापूर्य तद् भस्म अमृत धारयाप्लाव्य, लं बीजेन
चतुषष्टि वारं कुंभकेन घनीकृत्य पुनः ईँ बीजेन द्वात्रिंशद् वारं
रेचकेन प्राणाद् उत्पाद्य कुण्डलिनी शक्तिं, सोहं |
इति मंत्रेण परमात्मनः सकाशाद् अमृतमय जीवमादाय हृत्कमले समागतां ,
तत्र जीवं संस्थाप्य सुषुम्ना मार्गेण मूलाधार गतां चिन्तयेत्”
विनियोग
” ऊँ अस्य श्रीनवार्ण मंत्रस्य ब्रह्मविष्णु महेश्वरा ऋषयः ,||गायत्री उष्णिक अनुष्टुभः छन्दांसि ,महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः।नन्दजा शाकम्भरी भीमाः शक्तयः। रक्तदन्तिका दुर्गा भ्रामर्यो बीजानि| ह्रीं कीलकम्। अग्निवायुः सूर्याः तत्त्वानि सर्वाभीष्ट मनोकामना सिद्धर्थे जपे विनियोगः”
जल गिराये
ऋष्यादिन्यासः
”ऊँ ब्रह्मविष्णु महेश्वर ऋषिभ्यो नमः शिरसि ||गायत्री उष्णिक अनुष्टुप् छन्दोभ्यो नमः| मुखेमहाकाली ,महालक्ष्मी महासरस्वती देवताभ्यो नमः हृदि।
नन्दजा शाकम्भरी भीमा शक्तिभ्यो नमः दक्षिण स्तने ||र
क्तदन्तिका दुर्गा भ्रामरी बीजेभ्यो नमः वाम स्तने| |
ह्रीं कीलकाय नमः नाभौ। अग्निवायु सूर्य तत्वेभ्यो नमः हृदिविनियोगाय नमः सर्वांगे”
करन्यास
”ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः |ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः|
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं मध्यमाभ्यां नमः ||ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अनामिकाभ्यां नमः |
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः l”
हृदयादि षडंन्यासः
” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं हृदयाय नमः |ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा|ऊँ |
ऐं ह्रीं क्लीं शिखायै वषट् ||ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कवचाय हुँ |
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट् ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अस्त्राय फट् l ”
”मत्स्य मुद्रा प्रदर्शय त्रिकोण वृत चतुरस्त्रात्मकं मण्डलं कृत्वा तदुपरि कलश स्थापनं करिष्ये”
जल से एक बनाकर उस पर एक तांबे का भरा हुआ कलश स्थापित करें और कलश के ऊपर एक नारियल रखें|
अक्षत पुष्प कलश पर छोड़े ” ऐं ह्रीं क्लीं चांमुण्डायै विच्चे कलशमण्डलाय नमः ”
* कलश के जल में सुगंधित द्रव्य तथा गंध पुष्प डालकर प्रार्थना करें
” कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितःl
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताःll
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धराl
ऋग्वेदोथ यजुर्वेदः सामवेदोप्यथर्वणःll
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशाम्बु समाश्रिताःl
सरितस्तीर्थानि च नदा ह्रदाः l
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षय कारकाःll
गंगे नर्मदे जलेस्मिन् सन्निधिं कुरुll”
षोडशोपचार पुजन
चामुण्डा का आह्वाहन करें और एक आचमनी जल यंत्र पर अर्पण करें …
” ऊँ शूल कृपाणं नृशिरः कपालं दधतीं करैः l
मुण्ड स्त्रग् मण्डिता ध्याये चामुण्डां रक्त विग्रहाम् ll
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै आह्वाहयामि मम यंत्रे स्थापयामि ”
इसके बाद षोडशोपचार प्रारंभ करें
यंत्र पर अर्पित सामाग्री ना हो उसके जगह पर जल या लाल अक्षत अर्पित करें
”ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै नमः |आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि|
आसनार्थे अक्षतानि समर्पयामि|पादयोः पाद्यं समर्पयामि…|हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि|
आचमनीयं समर्पयामि|स्नानीयं जलं समर्पयामि|… सुगंधित तैल्य स्नानं समर्पयामि…|
पंचामृत स्नानं समर्पयामि|गंधोदक स्नानं समर्पयामि|… आचमनीयं समर्पयामि|
वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि| आचमनीयं समर्पयामि|… |चंदनं समर्पयामि |
अक्षतान् समर्पयामि|… हरिद्राचूर्णं समर्पयामि|… कुंकुमं समर्पयामि|… सिन्दुरंसमर्पयामि|
बिल्व पत्राणि समर्पयामि|… धूपं आघ्रयामि||दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं समर्पयामि|
ऋतुफलं समर्पयामि\आरार्त्रिकं समर्पयामि|… प्रदक्षिणां समर्पयामि”
क्षमा प्रार्थना :
” एषा भक्त्या तव विरचिता या मया देवि पुजा l
स्वीकृत्यैनां सपदि सकलान् मेपराधान् क्षमस्व l
अनया पूजया भगवति श्री त्रिशक्ति चामुण्डायै प्रीयताम् ll ”
जल गिरा दें
नवार्ण मूलमंत्र :
” ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ”
” ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः समस्त आवरण देवताभ्यो नमः मनसा परिकल्पय पंचोपचार पूजनं समर्पयामि
ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सले l भक्त्या समर्पये तुभ्यं समस्त आवरण अर्चनम् ll
ऊँ सम्पूजिताः सन्तर्पिताः सन्तु ”
जल यंत्र पर अर्पण करें
आरती करें। पुष्पांजलि।
और आसन से उठने से पहले आसन पर थोड़ा जल डालकर प्रणाम करके उठे |
(भक्त-जनहित में संकलित एवं प्रस्तुत-पंडित विजेंद्र तिवारी )