श्राद्ध (पितर) पक्ष : पक्षीराज गरुड़ ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- हे प्रभु ! लोग पितरों का श्राद्ध भोज करते है। क्या पितृ लोक से आकर श्राद्ध में भोजन करते पितर के दर्शन किसी को हुए है?
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे गरुड़ ! तुम्हारी शंका समाधान के लिए त्रेता की घटना सुनिए। पुत्र के वियोग में महाराजा दशरथ निष्प्राण हो गए। संयोग वश, वनवास काल में श्राद्ध पक्ष में श्रीराम ने पुष्कर तीर्थ में पुष्कर में पहुँच गए। पिता का श्राद्ध का उत्तम अवसर था, इसलिए राम ने श्राद्ध क्रिया संपन कर भोज की सामग्री एकत्र की। देवी सीता ने जी ने भोजन तैयार किया। फल को सिद्ध करके श्रीराम जी के सामने उपस्थित किया।
‘कुतुप मुहूर्त ‘ दिन का आठवां मुहूर्त अथवा दोपहर हो चुकी थी। निमंत्रित ऋषि पधार चुके थे। सीता देवी भोजन परोसने लगी। भोजन परोसते – परोसते अचानक ही सीता जी, वहां से दूर जा लज्जित एवं दुखी भाव से लताओं के मध्य चली गयीं।
श्रीराम ने देखा – ऋषि गण एवं ब्राह्मणों को भोजन परोसते परोसते, अचानक सीता जी एकान्त में जा बैठी। अंततः श्रीराम जी ने स्वयं उन ब्राह्मण –ऋषि गणों को भोजन कराया। देवी सीता के अप्रत्याशित व्यवहार की बात उनके मन को मथ रही थी।
आमंत्रित पूज्य ऋषि एवं ब्राह्मणगण के प्रस्थित होने के पश्चात् व्यग्र, व्याकुल श्री राम ने, रुष्ट भाव से सीताजी से पूछा – “ऋषि एवं ब्राह्मणों को भोजन परोसते परोसते, अचानक तुम लताओं की ओट में क्यों छिप गई थीं? यह उचित नहीं था, इससे ऋषिगण कुपित भी हो सकते थे?”
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अश्रुपूरित नेत्रों से सीता जी रुंधे, भर्राए गले के स्वर से बोलीं – “श्राद्ध में उपस्थित ब्राह्मणों की प्रथम पांत में राजा से प्रतीत महापुरुष को देख मैं विस्मित हुई और ध्यान से तभी देखा तो पूज्य स्वसुर, आपके पिताश्री के बैठे हुए दिखे। स्वसुर जी को देख हतप्रभ हो गयी। लज्जित मैं, पेड़ों की छाल केवल्कल और मृगचर्म धारण करके मैं अपने स्वसुर के सामने कैसे रूकती? जिनके दास चंडी ताम्बे के पात्र में भोजन करने वाले स्वसुर जी को, मिट्टी और पत्तों आदि के पात्रों में अन्न कैसे देती? लज्जा और दुःख के कारण मैं वापस आ गई।
गरुड़ जी बोले-‘हे भगवन आपने मेरी शंका का समाधान कर दिया (निर्मूल कर दिया) कि श्रद्धा में पितृगण प्रकट होते हैं और वे श्राद्ध का भोजन को उपस्थित होकर ग्रहण करते हैं। (श्राद्ध में पितर उपस्थित होते है, गरुण पुराण)
आलेख : पं. विजेन्द्र कुमार तिवारी ज्योतिषाचार्य
(श्राद्ध (पितर) पक्ष पर यह दसवीं पौराणिक कथा)