यहां इस मंदिर में भालू का पूरा परिवार है माता का भक्त, देवी मां की आरती और परिक्रमा कर खाते हैं प्रसाद

Chaitra Navratri 2023 : आदिशक्ति की भक्ति का महापर्व चैत्र नवरात्रि 22 मार्च बुधवार से प्रारंभ हो चुका है। अंचल के कुल देवी मां चंडी मंदिर में भी श्रद्धालु भक्ति से सराबोर हो रहे हैं। मां चंडी के दरबार में हजारों की संख्या में ज्योति कलश अलौकिक ज्योति पुंज की तरह जगमगा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में स्थित है। भालुओं की भक्ति देखकर यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है। यहां चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भालुओं को देखने के लिए कई बार घंटों इंतज़ार करते हैं।
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Chaitra Navratri 2023 : आरती के समय आते हैं भालू
बताया जाता है कि सालों से माता के मंदिर में शाम ढलते ही इन विशेष भक्तों का आना शुरू हो जाता है। हर शाम आरती के समय भालू का पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है। माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है।
जब भालुओं का परिवार आता है तो इनमें से एक भालू मंदिर के बाहर खड़ा रहता है, फिर बाकी के भालू मंदिर में प्रवेश करते हैं। इसके बाद पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में आकर श्रद्धालुओं के साथ पूरी तरह दोस्ताना व्यवहार करते दिखते हैं जैसे कोई पालतू जानवर हों।
जामवंत का परिवार बताते हैं गांववाले
प्रसाद लेने के बाद भालुओं का पूरा परिवार चुपचाप जंगल की ओर लौट जाता है। गांव के निवासी बताते हैं कि भालू कभी भी हिंसक नहीं होते और ना ही आजतक उन्होंने किसी को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि कभी-कभी वो नाराजगी का इजहार जरूर करते हैं लेकिन कभी किसी को परेशान नहीं करते। गांववाले उन भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं।
Chaitra Navratri 2023 : कभी किसी को नहीं करते परेशान
वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि माता के मंदिर में भालुओं और इंसानों के बीच होनेवाला आमना-सामना हैरानी की बात है। उनका कहना है कि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो हमले की पूरी आशंका रहती है। श्रद्धालुओं से भालू इस तरह से पेश आते हैं जैसे घर का ही कोई सदस्य हों।
तंत्र साधना के लिए मशहूर था मंदिर
गांववाले बताते हैं कि चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था, यहां कई साधु-संतों का डेरा था। तंत्र साधना करनेवालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया। प्राकृतिक रूप से बनी साढ़े 23 फुट ऊंची दक्षिण मुखी इस प्रतिमा का विशेष धार्मिक महत्व है।