दिवाली:लक्ष्मी पूजा सामग्री विधि 04 नवंबर
सामग्री:घी, तेल,दीपक, खील, बतासा, मिठाई पांच प्रकार, वस्त्र श्वेत, पीला, लाल, कौडी, शंख, रोली, इत्र, पुष्प, हार, चंदन, दूध, दही, शहद, सिंदूर, कुंकम, पान, सुपारी, दूर्वा, शर्मी, आम – पते, लौंग, इलायची, हल्दी, गांठ, चावल, साबुत, धनिया, खडा, नमक, गूगल, धूप।
दीवार पर बनाएं या लाल ,पीले कागज पर लिखे, सिंदूर एवं घी बनाएं।
ऊँ श्रीं श्रियै नमः।
लक्ष्मी पूजन विधि
संकल्प – ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः श्रीमद्धगवते महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रहाणोहि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्टविंशातितमें कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूलों के जंबुद्वीपे भरतखण्डज्ञ भारतवर्षे मध्यक्षेत्र नगरे शोभन संवत्सरे विक्रम संवत् 2071 दक्षिणायने कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे चतुर्दश परम अमावस्या तिथौ गुरुवासरे हस्त परं चित्रा नक्षत्रे….गोत्रे …नाम अहं श्रुतिः स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्ति कामनया स्थिर लक्ष्मी प्राप्ये श्री महालक्ष्मी पूजनं करिष्ये। जल पृथ्वी पर छोड दें।
लक्ष्मी पूजन मंत्रानि
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्य प्रदायिनीम्। सर्वदेवयीमीशां देवीं आवाहयाम्यहम्।
श्री महालक्ष्मयै नमः आवाहनार्थे अक्षत समर्पयामि। लाल पुष्प चढावे।
ऊँ महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि। पुष्प अर्पित करे।
ऊँ महालक्ष्मयैः नमः पाद्यं समर्पयामि। जल अर्पित करें।
ऊँ महालक्ष्मयै नमः हस्तयोरध्र्य समर्पयामि अष्टगंध सुगंध मिश्रित जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आचमनीयं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः स्नानं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः पंचामृतं स्नानं समर्पयामि पंचामृत अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः स्नानं समर्पयामि जल अर्पित करे
ऊँ महालक्ष्मयै नमः वस्त्रोवस्त्रं समर्पयामि वस्त्र आभूषण अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः गधं समर्पयामि केसर का तिलक अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः रक्तचंदनं समर्पयामि लालचंदन रोली सौभाग्य द्रव्य अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयैनमः अक्षतान समर्पयामि अक्षत, हल्दी, धनिया अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः पुष्पमाला दूर्वाकुरान समर्पयामि दूर्वा पुष्पमाला कमल पुष्प अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः धूपमाघ्रापयामि धूप दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः दीपं दर्शयामि दीप दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः नैवेद्यं निवेदयामि गुड, मिठाई भोजन का भोग दिखावें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आचमनीयं समर्पयामि जल अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः ऋतुफल समर्पयामि ऋतु फल एवं अनार अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः तांबूल समर्पयामि लगा हुआ पान अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः दक्षिणां समर्पयामि श्रीफल सहित दक्षिणा अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आरार्तिक्यं समर्पयामि 5 या 7 दीपकों से आरती उतारें
ऊँ महालक्ष्यै नमः मंत्र पुष्पांलि समर्पयामि पुष्प अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः ऋतुफल समर्पयामि ऋतु फल एवं अनार अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः तांबूल समर्पयामि लगा हुआ पान अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः दक्षिणां समर्पयामि श्रीफल सहित दक्षिणा अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः आरार्तिक्यं समर्पयामि 5 या 7 दीपकों से आरती उतारें
ऊँ महालक्ष्यै नमः मंत्र पुष्पांलि समर्पयामि पुष्प अर्पित करें
ऊँ महालक्ष्मयै नमः प्रदक्षिणां समर्पयामि परिक्रमरा करें
अनेन पूजनेन महालक्ष्मी देवी प्रीयताम नमम्।
श्री महालक्ष्म्यै नमः
दीप पूजा :
दीप मालिका पूजन मंत्र दीपको की पूजा करे त्वं ज्योतिरत्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः सर्वेषाम् ज्योतिषाम् ज्योतिर्दीपावल्यै नमो
नमः ऊँ दीपवल्यै नमः
अष्ट लक्ष्मी पूजन:
1. ऊँ आद्यलक्ष्मै नमः, 2. ऊँ विद्यालक्ष्मै नमः, 3. ऊँ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, 4. अमृतलक्ष्म्यै नमः, 5. ऊँ कामलक्ष्म्यै नमः, 6. ऊँ सत्यलक्ष्म्यै नमः, 7. ऊँ भोगलक्ष्म्ये नमः, 8. ऊँ योगलक्ष्म्यै नमः।
1,ऊँ अणिम्ने नमः (पूर्वे), 2. ऊँ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), 3. ऊँ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), 4. ऊँ लघिम्ने नमः (नैर्त्ये), 5. प्राप्त्यै नमः (पश्चिमे), 6. ऊँ प्राकाम्यै नमः वायव्ये, 7. ऊँ ईशितायै नमः उतरे8. ऊँ वशितायै नमः ऐशान्याम।
दृष्टा दृष्ट फलप्रदायै नमः सर्व अभीष्ट फलप्रदायै नमः।
सुप्रीता भव सुप्रसन्ना भव सर्व अभीष्ट फलप्रदा भव।।
मार्तनमामि कमले कमला यताश्रि।
श्री विष्णु हत कमल वासिनी विश्वमातः।।
क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भ गौरि।
लक्ष्मी प्रसीद सतंत नमतं शरण्ये।।
रोली, कुकुंममिश्रित अक्षत एवं कमल पुष्पों से निम्नांकित एक-एक नाम मंत्र पढते हुए अंगपूजा करें।
ऊँ चलायै नमः, पादौ पूजयामि।
ऊँ चंचलायै नमः, जानौ पूजयामि।
ऊँ कमलायै नमः, कटि पूजयामि।
ऊँ कात्यायिन्यै नमः, नाभिं पूजयामि।
ऊँ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि।
ऊँ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलं पूजयामि।
ऊँ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि।
ऊँ पद्माननायै नमः, मुख पूजयामि।
ऊँ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि।
ऊँ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि।
ऊँ महलक्ष्म्यै नमः, सर्वागम् पूजयामि।
पुष्पांजलि :
ऊँ धनः ऊँ कोषः ऊँ संपदा सत्यम्।
महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्रयै
च धीमहि। तन्नौ लक्ष्मी प्रचोदयात्।
ऊँ आपो ज्योति रसोमृतं लक्ष्मी स्वरोम्।
मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि।
क्षमा याचना :
मंत्र हीनम् क्रियाहीनम् भक्ति हीनम् सुरेश्वरी
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे।
भगवति हरिवल्लभे मनोजे
त्रिभुवन भूतकिरि प्रसीद मह्यम्।
अंत में –अक्षत एवं पुष्प मिटटी नहीं धातु की पाषाण की प्रतिमा पर छोडें।
मंत्र –
देवगणाः सर्वे पूजामादाय भामकीम।
ईष्ट काम समृद्ध यर्थ पुनर आगमनाय च।।
श्री लक्ष्मीजी की आरती :
ऊँ जय लक्ष्मी माता, भैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर -विष्णु धाता।।
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
दुर्गारुप निरंजनि, सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्ध धन पाता।
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि भवनिधि की त्राता।
जिस घर तुम रहती, सब सदगुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहि घबराता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता।
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहि पाता।
महालक्ष्मीजी की आरति, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता पाप उतर जाता।
हिरण्यवर्णा मिति पंचदशर्चस्य सूक्तस्य आनन्द कर्दम धीदचिक्लीता इन्दिरा सुता ऋषयः, श्री रिग्रर्देवते, आद्यास्तिस्त्रो-नुष्टुभः चतुर्थी बृहती, पंचमी षष्ठयौ त्रिष्टुभौ, ततोअष्टौ, अनुष्ठभः, अन्त्या आस्तारपड्क्तिः जपे विनियोगः।
मंत्र पढकर पृथ्वी पर जल छोड दें।
ऊँ हिरण्यवर्णा हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम्।
चन्द्राम हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
अर्थःहे लक्ष्मी आप स्वर्ण के समान कांति वाली और मनुष्यों की दरिद्रता को हरण करने वाली हैं, आपके गले में हमेशा स्वर्ण की मालाऐं शोभायमान रहती है आप प्रसत्रवदना हैं और सारे शरीर से दिव्य आभा प्रगट होती है, आप लक्ष्मी आप मेरे घर में आकर स्थापित हो, और हमेशा के लिए मेरी दरिद्रता दूर कर दें।
ताम आ वह जातवेदो लक्ष्मीनप गामिनीम।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।।
अर्थ :समस्त संसार के पालन करने वाले भगवान विष्णु आप मेरे लिए भगवती लक्ष्मी को मेरे घर में लावें, जो यहां पर स्थिर रहे, और जीवन में कभी भी मेरे घर को छोड़ कर अन्यत्र नहीं जाए, उस लक्ष्मी की कृपा से मैं स्वर्ण प्राप्त करुं, धन प्राप्त करुं, गायें, नौकर और समृद्धि प्राप्त करुं, आप दोनों की कृपा से ही समाज में मेरा नाम हो और मैं पूर्ण ऐश्वर्य भोगने में समर्थ हो सकूं।
अश्वपूर्वा रथमध्यां हस्ति नाद प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप हृये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
लक्ष्मी प्रसन्नता मंत्र:
मन्त्रः ऊँ नमो भूतनाथाय नमः मम सर्वा सिद्धि देहिं देहि श्रीं क्लीं स्वाहा।
यह मन्त्र गोपनीय होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण है, मन्त्र जप सिद्धि हो जाने पर लक्ष्मी स्वयं सामने प्रकट होती है और उसे इच्छानुसार वरदान मांगने को कहती हैं, जो भी भावना की जाती है पूरी होती है, जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता।मन्त्र सिद्ध मूंगे की माला से 51 माला नित्य मंत्र जाप 11 दिन होना चाहिए।
अंत में –अक्षत एवं पुष्प मिटटी नहीं धातु की पाषाण की प्रतिमा पर छोडें।
मंत्र – देवगणाः सर्वे पूजामादाय भामकीम।
ईष्ट काम समृद्ध यर्थ पुनर आगमनाय च।।
श्री लक्ष्मीजी की आरती
ऊँ जय लक्ष्मी माता, भैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर -विष्णु धाता।।
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।
दुर्गारुप निरंजनि, सुख सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि सिद्ध धन पाता।
तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि भवनिधि की त्राता।
जिस घर तुम रहती, सब सदगुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहि घबराता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता।
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहि पाता।
महालक्ष्मीजी की आरति, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता पाप उतर जाता।