श्राद्ध (पितर) पक्ष : श्राद्ध पक्ष में पितर के लिए दैनिक प्रार्थना मंत्र, इससे मिलता हैं पितरों का आशीर्वाद

श्राद्ध (पितर) पक्ष : श्राद्ध पक्ष में पितरों की दैनिक प्रार्थना की जाती हैं। पितरों की प्रार्थना से उनका आशीर्वाद, कृपा एवं प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है :-

श्राद्ध पक्ष पर पितृ गायत्री मंत्र :-

1. ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्। परो रजसे सवदोम।
2. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्। परो रजसे सवदोम।
3. ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि। शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
ओम् देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्यः एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।
(देवताओं, पितरों, महायोगियों,स्वाहा एवं स्वधा को सदा नमस्कार है)

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पितृ प्रणाम स्त्रोक्त -मार्कंडेय पुराण (94/3)

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।

प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

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पितरों को मेरा सदा नमस्कार

  • जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मेरा सदा नमस्कार है।
  • जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो कोमेरा सदा नमस्कार है।
  • जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
  • नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो देवता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
  • जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
  • प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
  • सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
  • चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मेरा सदा नमस्कार है। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
  • अग्निस्वरूप अन्य पितरों कोमेरा सदा नमस्कार है, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोम मय है।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधा भोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों।

आलेख : पंडित विजेन्द्र कुमार तिवारी

पंडित वी. के. तिवारी

 

(श्राद्ध (पितर) पक्ष पर आधारित यह सातवीं जानकारी हैं।)

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